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13 साल के टीआर गायब
1984 से 1999 तक के कई सेंटर कोड के टीआर संस्कृत शिक्षा बोर्ड से हैँ गायब पटना : संस्कृत शिक्षा बोर्ड से परीक्षा दी. पास भी कर गये, लेकिन अब मार्क्स वेरिफिकेशन में छात्र को फर्जी बताया जा रहा है. अगर आप बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड के छात्र रहे हैं और आपके मार्क्स के वेरिफिकेशन […]
1984 से 1999 तक के कई सेंटर कोड के टीआर संस्कृत शिक्षा
बोर्ड से हैँ गायब
पटना : संस्कृत शिक्षा बोर्ड से परीक्षा दी. पास भी कर गये, लेकिन अब मार्क्स वेरिफिकेशन में छात्र को फर्जी बताया जा रहा है. अगर आप बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड के छात्र रहे हैं और आपके मार्क्स के वेरिफिकेशन के लिये बोर्ड के पास भेजा जाये तो हो सकता है, आपके मार्क्स को आपका बोर्ड फर्जी करार दे दे. क्योंकि, संस्कृत शिक्षा बोर्ड से 13 सालों के टीआर गायब हाे गये हैं. ऐसे में नौकरी और उच्च शिक्षा में लगायी गयी मध्यमा के अंकपत्र जांच में फेल हो जा रही है. बोर्ड के पास जो भी मार्क्स वेरिफिकेशन के लिये मामले आते हैं, तो यह कह कर बोर्ड मुहर लगा दे रही है कि यह छात्र फर्जी है. ऐसे में अब संस्कृत के डिग्री ही अब सवालों के घेरे में आ गये हैं.
बोर्ड में मौजूद टीआर से ही होता है वेरिफिकेशन : किसी भी बोर्ड का टीआर यानी टेबुलेशन रजिस्टर काफी महत्वपूर्ण होता है. भविष्य में
मार्क्सशीट भुला जाने या डूप्लीकेट मार्क्स शीट बनाने में टीआर की
मदद ली जाती है. अगर किसी छात्र को मार्क्स वेरिफिकेशन की नौबत आती
है, तो इसे टेबुलेशन रजिस्टर के
माध्यम से ही मिलाया जाता है. लेकिन, संस्कृत शिक्षा बोर्ड के पास वर्ष 1984 से लेकर 1999 के बीच सिर्फ 1993, 1994 और 1995 के ही टीआर उपलब्ध हैं. बाकी सालों के टीआर गायब हैं. सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार 13 सालों का कई सेंटर कोड का टीआर गायब है. इससे हजारों छात्र का भविष्य अब अधर में है.
बोर्ड ने बनायी जांच कमेटी, नहीं आयी अब तक रिपोर्ट : टीआर गायब होने के बाद संस्कृत शिक्षा बोर्ड की
ओर से तीन सदस्यीय एक कमेटी भी बनायी गयी थी. 2008 में बनायी गयी कमेटी की अब तक कोई रिपोर्ट नहीं आयी है. कमेटी को टीआर नहीं है, टीआर कैसे और क्याें नहीं है. इसकी जांच करने की जिम्मेवारी दी गयी थी. लेकिन, कमेटी ने इतने सालों के बाद भी कोई रिपोर्ट बोर्ड को नहीं सौंपी है. ज्ञात हो कि 84 सेंटर कोड के टीआर गायब हैं.
सबसे अधिक टीआर गायब हुए 1989 में
संस्कृत शिक्षा बोर्ड से सबसे ज्यादा टीआर 1988 वर्ष के गायब हैं. 1988 के 20 सेंटर के टीआर गायब हो गये हैं. ज्ञात हो कि एक सेंटर पर ढाई से तीन सौ परीक्षार्थी परीक्षा देते हैं. ऐसे में सैकड़ों छात्र इसमें फंस चुके हैं. इसकी जानकारी छात्रों को उनकी जरूरत के वक्त पता चलती है.
हाइकोर्ट भी लगा
चुकी है फटकार
कई बार यह भी बात सामने आयी है कि बोर्ड के कुछ कर्मचारियों की मदद से मध्यमा की फर्जी डिग्री का कारोबार चल रहा है. इसको लेकर हाइकोर्ट में याचिका भी दायर की गयी है. अभी 29 ऐसे छात्रों का मामला भी हाइकोर्ट में चल रहा है. जिन्हें बोर्ड ने फर्जी कह कर वापस कर दिया है. हाल में एक याचिका डाक विभाग में नौकरी को लेकर भी हाइकोर्ट में दायर हुई है. इसमें कहा गया है कि दस सालों से बोर्ड की फर्जी डिग्री पर नौकरी लेने का कारोबार चल रहा है.
इन वर्षों (सेंटर कोड) के टीआर हैं गायब
– 1984 :17- 1985 : 33, 38, 46, 65, 67 – 1986 : 05 – 1987 : 46 – 1988 : 9, 24, 26, 35, 48, 52, 82, 73, 82, 83, 90, 92, 96, 143,104, 112, 116, 117, 119, 124 – 1989 : 27, 28, 30, 31, 32, 49, 109, 120, 248, 256 – 1990 : 92, 95, 135, 182, 210, 216, 236, 277, 346, 404, 443 – 1991 : 84, 116, 113, 127, 147, 208, 234, 244, 316, 317, 328, 344, 347, 353, 392, 416, 414 – 1992 : 01, 106 से 118 तक, 210, 124 – 1996 से 97 : 38, 49, 48 – 1998 : 03, 05, 07, 17, 28, 74 – 1999: 92
मुझे नहीं जानकारी
इस मामले की जानकारी मुझे नहीं है. बोर्ड का काम बंटा हुआ है. इस संबंध में परीक्षा नियंत्रक को जानकारी होगी. सत्यापन का सारा काम उन्हीं के पास से होता है. टीआर कैसे गायब हो गये.
मिलिंद कुमार सिन्हा, सचिव, बिहार
संस्कृत शिक्षा बोर्ड
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