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पंथ निरपेक्षता का राजनीति में हो रहा इस्तेमाल

– संविधान विशेषज्ञ डॉ सुभाष सी कश्यप ने कहा, सत्ता प्राप्ति के लिए अपनायी जा रही तुष्टीकरण की नीति – ‘भारतीय संविधान–पंथ निरपेक्षता विषय पर सेमिनार पटना : संविधान विशेषज्ञ डॉ सुभाष सी कश्यप ने कहा कि देश में पंथ निरपेक्षता को राजनीति के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. सत्ता प्राप्ति के लिए तुष्टीकरण […]

– संविधान विशेषज्ञ डॉ सुभाष सी कश्यप ने कहा, सत्ता प्राप्ति के लिए अपनायी जा रही तुष्टीकरण की नीति

भारतीय संविधानपंथ निरपेक्षता विषय पर सेमिनार

पटना : संविधान विशेषज्ञ डॉ सुभाष सी कश्यप ने कहा कि देश में पंथ निरपेक्षता को राजनीति के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. सत्ता प्राप्ति के लिए तुष्टीकरण की नीति अपनायी जा रही है. समाज को बांटने की कोशिश हो रही है.

लोकतंत्र में बहुसंख्यक या अल्पसंख्यक का कोई स्थान नहीं है. उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर प्रकरण में केंद्र राज्य सरकार की भूमिका पंथ निरपेक्षता के नाम पर घिनौना रूप देखने को मिला. ये बातें उन्होंने रविवार को सिन्हा लाइब्रेरी में डॉ सच्चिदानंद सिन्हा स्मृति संस्थान समिति की ओर से आयोजित भारतीय संविधानपंथ निरपेक्षता विषयक सेमिनार में कहीं. डॉ कश्यप ने कहा कि सत्ता की प्राप्ति के लिए संप्रदायवाद का सहारा लिया जा रहा है. भले ही इससे आतंकवाद घुसपैठ पनपे. राजनीतिक दलों का ध्येय मात्र अपना वोट बैंक वोटरों की संख्या बढ़ाना रह गया है.

गरीबी हटाओ की तरह हो रहा प्रयोग

उन्होंने कहा कि संविधान में जाति मजहब के नाम पर किसी को कोई विशिष्ट अधिकार नहीं दिया गया है. सब समान हैं. संविधान की उद्देशिका में सेकुलर शब्द का जिक्र नहीं है.

हालांकि, कई बार कोशिश की गयी कि पंथनिरपेक्ष शब्द उद्देशिका का अंग बने, पर संविधान सभा के सदस्यों ने बहुमत से संबंधित प्रस्ताव को खारिज कर दिया. डॉ भीमराव आंबेडकर ने कहा था कि संविधान में सभी वर्गो के लिए अलगअलग अधिकार दिये गये हैं, लेकिन सेकुलर शब्द कदापि नहीं जोड़ा जायेगा.

जाति या पंथ के नाम पर किसी को विशिष्ट अधिकार नहीं दिया जा सकता. डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का भी यही विचार था. अंगरेजी में बने संविधान में दो स्थानों पर सेकुलर शब्द का जिक्र किया गया है. मूल संविधान के अनुच्छेद 25 में यह शब्द हैं. लेकिन, हिंदी में इसका अनुवाद एक स्थान पर पंथ निरपेक्ष, तो दूसरी जगह पर लौकिक कार्यकलाप है. दोनों शब्दों में अंतर है.

लौकिक का अर्थ धर्म के दायरे से बाहर की गतिविधियां हैं. आपातकाल के दौरान संविधान में संशोधन कर सेकुलर को जोड़ा गया. गरीबी हटाओ के नारे की तरह ही पंथ निरपेक्षता का प्रयोग किया गया. इंदिरा गांधी ने इसे अपने हिसाब से उपयोग किया.

डॉ कश्यप ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में पंथ निरपेक्षता को लेकर कई निर्णय दिये. मजहब या जात के आधार पर किसी को विशिष्टता प्राप्त होती है, तो वह समानता के अधिकार का हनन है. राज्य किसी पंथ विशेष के प्रति आशक्त नहीं हो सकता. संविधान के मूल तत्व में ही समानता की बात कही गयी है. राजनीति में इसका इस्तेमाल अलगअलग तरीके से किया जाता है.

चुनाव में जाति संप्रदाय का खुलेआम दुरुपयोग संविधान का खुला परिहास है. मजाकिया लहजे में कानून के विद्यार्थी ने कहा था कि यह कैसी पंथ निरपेक्षता है कि एक आदमी को एक बीबी रखने की इजाजत हो, तो दूसरा चारचार पत्नी रख सकता है. शाहबानो मामले में संविधान का कोई मतलब नहीं था. यह महज राजनीति थी. समानता के अधिकार का यह खुला उल्लंघन है.

लोकतंत्र की जड़ें गहरी

उन्होंने कहा कि जब भी बिहार आता हूं, यहां की भूमि को नमन करता हूं. बिहार में लोकतंत्र की जड़ें गहरी हैं. यूनान और पश्चिमी देशों में लोकतंत्र बाद में आया. प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल के बिहार तक, यह महान लोगों की धरती है. इन्हीं महान विभूतियों में से एक डॉ सच्चिदानंद सिन्हा भी हैं.

बिहार को अलग राज्य बनाने में इनकी अहम भूमिका रही. बिहार को ब्रिटिश उपनिवेशवाद के साथ आंतरिक उपनिवेश से मुक्ति के लिए संघर्ष करना पड़ा. डॉ सिन्हा ने शिक्षा जगत के अलावा पत्रकारिता में भी नाम कमाया. पटना विवि के संस्थापक कुलपति के रूप में वे याद किये जायेंगे. वे पहले भारतीय थे, जो सबसे ऊंचे पद पर गये.

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