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विश्व एनटीडी दिवस आज : बिहार के 9 करोड़ लोगों को आज भी इन रोगों की जद में आने का जोखिम

लेखक श्री मंगल पांडेय स्वास्थ्य मंत्री बिहार सरकार नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीजेस खत्म करना प्राथमिकता हर व्यक्ति की आकांक्षा होती है कि वह एक ऐसे देश में रहे जहां बगैर किसी भेदभाव के उसे उत्कृष्ट स्वास्थ्य सेवाओं का बुनियादी अधिकार मिले. नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजी़जे़स में कुछ ऐसे रोग शामिल हैं जो न केवल मरीज को अत्यंत […]

लेखक
श्री मंगल पांडेय
स्वास्थ्य मंत्री बिहार सरकार
नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीजेस खत्म करना प्राथमिकता
हर व्यक्ति की आकांक्षा होती है कि वह एक ऐसे देश में रहे जहां बगैर किसी भेदभाव के उसे उत्कृष्ट स्वास्थ्य सेवाओं का बुनियादी अधिकार मिले. नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजी़जे़स में कुछ ऐसे रोग शामिल हैं जो न केवल मरीज को अत्यंत दुर्बल कर देते हैं बल्कि उनकी वजह से मरीज समाज से कट भी जाता है. इन रोगों की मार सबसे ज्यादा बेहद गरीब व समाज के सबसे कमज़ोर तबके के लोगों पर पड़ती है. इन रोगों में शामिल हैं- लिम्फाटिक फिलारियासिस (हाथी पांव), विसरल लीशमैनियासिस (कालाजार), लेप्रोसी (कुष्ठ रोग), डेंगू आदि.
आज भी बिहार के 9 करोड़ लोगों (कुल आबादी का 88.21 प्रतिशत) को इन रोगों की जद में आने का उच्च जोखिम है. राज्य का स्वास्थ्य मंत्री होने के नाते मेरा मानना है कि जब तक व्यवस्थित तरीके से इन ’उपेक्षित उष्ण कटिबंधीय रोगों’ या एनटीडी का मुकाबला नहीं किया जायेगा, तब तक बिहार के स्वास्थ्य लक्ष्यों को हासिल नहीं किया जा सकेगा.
एनटीडी के दायरे में आने वाले रोगों का पूरी तरह इलाज संभव है. 2014 में पोलियो, 2015 में टेटनस और 2016 में याज जैसी बीमारियों को भारत से खत्म कर दिया गया. अब वक्त आ गया है कि हम शेष एनटीडी के उन्मूलन पर अपना ध्यान केन्द्रित करें. बिहार एनटीडी का बहुत ज्यादा बोझ सहन करता है.
वर्ष 2019 में बिहार में लिम्फोडेमा के 2,19,175 और हाइड्रोसील के 1,75,214 एवं काला-अज़ार के 2,409 मामले दर्ज किए गये थे. हालांकि भारत ने 2005 में कुष्ठ रोग को जन स्वास्थ्य समस्या के तौर पर समाप्त कर दिया था और हर 10,000 की जनसंख्या पर एक से भी कम मामले के लक्ष्य को प्राप्त कर लिया था.
पर 2017 में कुष्ठ रोग के मामलों में थोड़ी सी वृद्धि देखने में आयी. हर साल कुष्ठ रोग के 16 प्रतिशत नये मामले दर्ज हो रहे हैं जिसके चलते इसके फैलाव की दर प्रति 10,000 की जनसंख्या पर 1.10 मामले हो गयी है. यह चिंता की बात है कि नये मामले अभी भी सामने आते जा रहे हैं.
एनटीडी को परास्त करने की दिशा में बिहार सरकार लगातार कदम उठा रही है. बिहार भारत का पहला ऐसा राज्य है जिसने नई ’ट्रिपल-ड्रग थेरपी’ सफलतापूर्वक शुरू कर दी है. बिहार सरकार ने जन स्वास्थ्य की एक अन्य चुनौती काला-अज़ार पर काबू पाने में भी बड़ी उपलब्धि पायी है. वर्ष 2014 में जहां 130 प्रखंडों में काला-अज़ार के 8028 मामले सामने आये थे, वहीं 2019 में 21 प्रखंडों में सिर्फ 2409 मामले ही दर्ज हुए.
30 जनवरी यानी आज पहला ’विश्व एनटीडी दिवस’ मनाया जा रहा है. समय आ गया है कि हम अपनी आकांक्षाओं को हकीकत में बदलें. एनटीडी से हर मोर्चे पर मुकाबला किया जाये. यही वक्त है एकजुट होकर एनटीडी को शिकस्त देने का.

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