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राष्ट्रीय युवा दिवस: इन बिहारी युवाओं ने प्रतिभा से बनायी देशभर में पहचान, जानिए इनके बारे में

पटनाः ‘उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये’ का संदेश देने वाले स्वामी विवेकानंद जी का जन्मदिवस राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में हर साल 12 जनवरी को मनाया जाता है. स्वामी विवेकानंद के संदेश को आत्मसात करते हुए बिहारी युवाओं की टोली ने अपनी मेहनत से न […]

पटनाः ‘उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये’ का संदेश देने वाले स्वामी विवेकानंद जी का जन्मदिवस राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में हर साल 12 जनवरी को मनाया जाता है. स्वामी विवेकानंद के संदेश को आत्मसात करते हुए बिहारी युवाओं की टोली ने अपनी मेहनत से न केवल अपनी पहचान बनायी है बल्कि ये सभी बिहार की प्रतिभा का डंका भी बजा रहे हैं. आज उन्हीं युवाओं पर डालते हैं एक नजर

पंकज त्रिपाठी: लंबे संघर्ष के बाद मिली प्रसिद्धि
नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज मिर्जापुर में कालीन भैया के किरदार से सुपर हिट हुए बिहार के गोपालगंज के पंकज त्रिपाठी पटना में कॉलेज के दिनों सक्रिय रूप से रंगमंच से जुड़े थे. बाद के दिनों में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा दिल्ली में थियेटर करने के बाद पंकज त्रिपाठी मुंबई गए, जहां उन्होंने काफी संघर्ष किया. इसके बाद उन्होंनेबर्लिन फिल्म फेस्टिवल में भी दस्तक दी. उन्होंने अबतक 35 से ज्यादा फिल्मों में अभिनय किया है. 2004 में फिल्म रन से शुरुआत कर पंकज त्रिपाठी ने गैंग्स ऑफ वासेपुर की दोनों सीरीज में सुल्तान कुरैशी की भूमिका निभाई. मसान में उन्होंने सत्याजी का किरदार निभाया.
कन्हैया कुमार पर फोर्ब्स की भी नजर
जेएनयूएसयू के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार युवा राजनेता और वक्ताओं में प्रमुख स्थान रखते हैं. फोर्ब्स ने इसी सप्ताह लिखा कि वह भविष्य में भारतीय राजनीति में शक्तिशाली पहचान बनाने की कोशिश कर रहे हैं. अगले दस सालों तक उनपर नजर रहेगी. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के 32 वर्षीय नेता कन्हैया कुमार जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में छात्र राजनीति का चेहरा उस समय बन गये, जब 2016 में देशद्रोह के आरोपों का जवाब दिया था.
राजनीतिक रणनीतिकारहैं प्रशांत किशोर
जदयू नेता प्रशांत किशोर भी बतौर राजनीतिक रणनीतिकार 2014 से देश को अपनी प्रतिभा दिखा रहे हैं. वह भी फोर्ब्स की उस सूची में शामिल हैं जिनपर अगले दस सालों तक चर्चा के केंद्र में रहेंगे. मैगजीन ने प्रशांत किशोर के बारे में लिखा- वे 2011 से एक राजनीतिक रणनीतिकार हैं. उन्होंने भाजपा को गुजरात विधानसभा चुनाव जीतने में मदद की. 2014 में नरेंद्र मोदी, 2015 में नीतीश कुमार और 2019 में आंध्र प्रदेश में वाइएसआर जगन मोहन रेड्डी और महाराष्ट्र में शिवसेना के लिए पिछले साल रणनीतिक अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी.
राजेश किसानों को सहजन उपजाने की दे रहे ट्रेनिंग
साराभाई वर्सेस साराभाई फेम मशहूर टीवी कलाकार अपने गांव बरमा के काया पलट में लगे हुए हैं. बिजली लाने के बाद वे किसानों को सहजन उपजाने के गुर सीखा रहे हैं. अक्तूबर 2017 में काम शुरू करने वाले राजेश ने 25 एकड़ में सहजन लगवाया. वे किसानों को नासिक ले जाकर प्रशिक्षण भी कराते हैं. किसानों को एक साल से समझाने में लगे हैं कि धान गेहूं की खेती से जहां आपको 50 हजार रुपये की कमाई होती है वहीं सहजन से आप एक एकड़ में 10 लाख रुपये की कमाई कर सकते हैं.
कल्पना शक्ति के धनी हैं सुबोध गुप्ता
पटना के खगौल में जन्मे और पले-पढ़े सुबोध गुप्ता पूरी दुनिया में कंटेपरेरी आर्ट के ग्लोबल ब्रांड हैं. कल्पना शक्ति के धनी सुबोध अपने निजी इतिहास और रोजमर्रा के उपयोग वाली चीजों को काम में लेकर उन्हें सामाजिक बदलाव के प्रतीक के रूप में तब्दील कर देते हैं. सुबोध का पिछले दो दशक का काम बदलाव के दौर से गुजर रहे देश की सांस्कृतिक जटिलताओं को पूरी तरह से खोलकर रख देता है और सियासत को बरक्स ला खड़ा करता है. उन्हें इंडिया टुडे ने 2014 में भारत में करीब 30 करोड़ के मध्यवर्ग की तेजी से बढ़ती आकांक्षाओं का प्रतीक बताया था.
सोशल एंटरप्रेन्योरशिप और शिक्षा को बढ़ावा दे रहे रंजन
कंकड़बाग के रहने वाले 23 वर्षीय रंजन मिस्त्री शिक्षा और सोशल एंटरप्रेन्योरशिप में योगदान दे रहे हैं. मूल रूप से गया निवासी रंजन बताते हैं कि उनका इलाका नक्सल बेल्ट में था तो उन्होंने गांवों में बच्चों को पढ़ाई के लिए टीचर्स को मुहैया करवाया था.
ग्रामीण महिलाओं को आगेला रहीं नमिता
26 वर्षीय नमिता प्रिया एक सामाजिक उद्यमी हैं. महिलाओं की कहानियों को सभी के सामने लाने के लिए वुमनिया स्टोरी नाम से पेज बनाया है. वे विभिन्न गांवों से जुड़ी महिलाओं के उद्यमिता और उनकी उपलब्धियों पर स्टोरी लिखती है और वुमनिया पर शेयर करती हैं.
धारणा को तोड़ने पर कामकर रहे बशर
पटना बीट्स के फाउंडर बशर हबीबुल्लाह बताते हैं, बिहार को लेकर बिहार के बाहर लोगों में कई तरह की भ्रांतियां है. हम सभी एक ही देश के रहने वाले हैं तो बिहारी को उपेक्षा के नजर से क्यों देखा जाता है. बाहर जाने पर बिहारी होने को छिपाना पड़ता है.
Prabhat Khabar Digital Desk
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