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Friday, March 29, 2024

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सोशल मीडिया में वायरल हो रहा फैज की कविता ”हम देखेंगे…” का भोजपुरी संस्करण, RJD सांसद ने किया साझा, पूछा…

पटना : उत्तर प्रदेश के कानपुर स्थित आईआईटी के छात्रों द्वारा जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों के प्रति समर्थन व्यक्त जताते हुए 17 दिसंबर को मशहूर शायर फैज अहमद फैज की कविता ‘हम देखेंगे’ गाये जाने के मामले में एक समिति जांच कर रही है कि कविता ‘हिंदू विरोधी’ है या नहीं. इसी बीच, फैज […]

पटना : उत्तर प्रदेश के कानपुर स्थित आईआईटी के छात्रों द्वारा जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों के प्रति समर्थन व्यक्त जताते हुए 17 दिसंबर को मशहूर शायर फैज अहमद फैज की कविता ‘हम देखेंगे’ गाये जाने के मामले में एक समिति जांच कर रही है कि कविता ‘हिंदू विरोधी’ है या नहीं. इसी बीच, फैज की कविता ‘हम देखेंगे’ का भोजपुरी संस्करण ‘हमहू देखब…’ भी सोशल मीडिया में अब वायरल होने लगा है.

फैज की कविता ‘हम देखेंगे’ का भोजपुरी संस्करण ‘हमहू देखब…’ को आरजेडी के राज्यसभा सांसद मनोज कुमार झा ने साझा किया है. उन्होंने ट्वीट कर कहा है कि फैज की कविता ‘हम देखेंगे…’ अब भोजपुरी में आ गया है. अब लोग क्या करेंगे. साथ ही उन्होंने कहा है कि फैज पर सवाल खड़ा करेंगे… फैज से मुहब्बत करनेवाले लोग लाखों-करोड़ों सवाल लेकर खड़े हो जायेंगे…. अभी तो ये महज शुरुआत है.

मालूम हो कि उत्तर प्रदेश के कानपुर स्थित आईआईटी के छात्रों द्वारा जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों के प्रति समर्थन व्यक्त जताते हुए 17 दिसंबर को मशहूर शायर फैज अहमद फैज की कविता ‘हम देखेंगे’ करीब 300 छात्रों ने परिसर के भीतर प्रदर्शन किया था. धारा 144 लागू होने के कारण बाहर जाने की इजाजत नहीं थी. प्रदर्शन के दौरान एक छात्र फैज की कविता ‘हम देखेंगे’ गायी. इसके खिलाफ वासी कांत मिश्रा और 16 अन्य लोगों ने आईआईटी निदेशक के पास लिखित शिकायत कर दी थी. उनका कहना था कि वीडियो में साफ नजर आ रहा है कि कविता में कुछ दिक्कत वाले शब्द हैं, जो हिंदुओं की भावनाओं को प्रभावित कर सकते हैं. इसके बाद आईआईटी कानपुर के उपनिदेशक मनिंद्र अग्रवाल के नेतृत्व में छह सदस्यों की एक समिति गठित कर दी गयी.

फैज अहमद फैज की कविता ‘हम देखेंगे’

हम देखेंगे

लाज़िम है कि हम भी देखेंगे

वो दिन कि जिसका वादा है

जो लोह-ए-अज़ल में लिखा है

जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गरां

रुई की तरह उड़ जाएंगे

हम महकूमों के पांव तले

ये धरती धड़-धड़ धड़केगी

और अहल-ए-हकम के सर ऊपर

जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी

जब अर्ज-ए-ख़ुदा के काबे से

सब बुत उठवाए जाएंगे

हम अहल-ए-सफ़ा, मरदूद-ए-हरम

मसनद पे बिठाए जाएंगे

सब ताज उछाले जाएंगे

सब तख़्त गिराए जाएंगे

बस नाम रहेगा अल्लाह का

जो ग़ायब भी है हाज़िर भी

जो मंज़र भी है नाज़िर भी

उट्ठेगा अन-अल-हक़ का नारा

जो मैं भी हूं और तुम भी हो

और राज़ करेगी खुल्क-ए-ख़ुदा

जो मैं भी हूं और तुम भी हो

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