संजय कुमार झा
चालीस साल बाद शुरू हो रहा पश्चिमी कोसी नहर का निर्माण कार्य
करीब चालीस साल बाद राज्य की अति महत्वपूर्ण योजनाओं में शामिल पश्चिमी कोसी नहर परियोजना का निर्माण कार्य फिर से शुरू हो रहा है. 1971 में शुरू हुई पश्चिमी कोसी नहर परियोजना के अंतिम चरण के सात निर्माण कार्यों का शिलान्यास मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 16 नवंबर, 2019 को मधुबनी में किया. इस परियोजना के चालू हो जाने से मधुबनी एवं दरभंगा जिले में अब तक उपलब्ध सिंचाई सुविधा को दो लाख एक हजार 25 हेक्टेयर से बढ़ा कर दो लाख 34 हजार आठ सौ हेक्टेयर करने का राज्य सरकार का लक्ष्य पूरा हो सकेगा. परियोजना के चालू होने से मिथिलांचल के किसानों को सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता होगी. साथ ही बाढ़ की समस्या से भी निजात मिलेगी.
पहली बार 1953-54 में परियोजना की नींव रखी गयी, जिसे कोसी परियोजना नाम दिया गया. उस परियोजना के प्रस्ताव में पश्चिमी कोसी नहर का कोई उल्लेख नहीं था. प्रारंभ में परियोजना के जो नक्शे प्रकाशित किये गये थे, उसमें भी पश्चिमी कोसी नहर का जिक्र नहीं था.
1950 के दशक के अंत में जब बीरपुर के पास कोसी बराज का निर्माण कार्य शुरू हुआ, तो भविष्य में पश्चिमी नहर बनाने की संभावित योजना को ध्यान में रखते हुए कई कदम उठाये गये. 1963 में कोसी बराज का निर्माण कार्य पूरा होने के बाद पूर्वी और पश्चिमी कोसी नहर प्रणालियां विकसित की गयी. बाद में पश्चिमी कोसी नहर परियोजना के तहत मधुबनी और दरभंगा जिले में सिंचाई सुविधाएं विकसित की गयी.
नहर का शिलान्यास तत्कालीन केंद्रीय मंत्री जगजीवन राम ने 1957 में दूसरे लोकसभा चुनाव के ठीक पहले कर दिया. इससे किसानों में उम्मीद जगी. लेकिन, पश्चिमी कोसी नहर के साथ परिस्थितियां इसके ठीक विपरीत थी. कोसी बराज भारत-नेपाल सीमा से शुरू होकर पूरी तरह से नेपाल में बना हुआ है. इस बराज से लगी हुई नदी के दायें तट पर पश्चिमी कोसी नहर का हेड-वर्क्स है, जो नेपाल में स्थित है.
पश्चिमी कोसी नहर की परियोजना रिपोर्ट के मुताबिक दरभंगा-मधुबनी जिले का सम्मिलित क्षेत्रफल 5,780 वर्ग किलोमीटर है, जिनमें से अधिकतर जमीन पर खेती होती है.
इस इलाके में धान की फसल के लिए हथिया नक्षत्र का पानी आवश्यक माना जाता है. अक्तूबर में कोसी का औसत प्रवाह 30,700 क्यूसेक रहता है. पूर्वी कोसी मुख्य नहर में उसकी जरूरत का 17,000 क्यूसेक पानी डाल देने के बाद भी बाढ़ से सुरक्षित इलाकों में और उसके आगे भी सिंचाई लायक पानी बच जाता है.
परियोजना का डीपीआर 1962 में तैयार हुआ था.वर्षों से लंबित पड़ी परियोजना के निर्माण कार्य कई स्थानों पर क्षतिग्रस्त भी हो चुके हैं और नहर के तलों में गाद जमा हो चुका है.
परियोजना के लिए 9232.69 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया जाना था. 8615.33 एकड़ का अधिग्रहण हो चुका है, जबकि 617.55 एकड़ जमीन का अधिग्रहण होना बाकी है. उम्मीद है, अब भू-अर्जन की प्रक्रिया में नागरिकों द्वारा सरकार को सहयोग मिलेगा और यह विकास परियोजना अपने निर्धारित उद्देश्यों को हासिल करने में कामयाब होगी.
(लेखक राज्य के जलसंसाधन विभाग के मंत्री हैं.)

