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पटना : प्रतिस्पर्धा से ही बचेगा रिटेल बाजार, छोटे कारोबारियों के हित में बने पॉलिसी

पटना : रिटेल बाजार प्रतिस्पर्धा करके ही ऑनलाइन बाजार के बड़े प्लेयरों के मुकाबले में खड़ा हो सकता है. इसके लिए रिटेल बाजार को अपनी सेवा और गुणवत्ता बढ़ाने की जरूरत है. यही नहीं, तकनीक का इस्तेमाल कर भी छोटे कारोबारी अपनी ताकत बढ़ा सकते हैं. सरकार को चाहिए कि वह ऑनलाइन बाजार के फ्रॉड […]

पटना : रिटेल बाजार प्रतिस्पर्धा करके ही ऑनलाइन बाजार के बड़े प्लेयरों के मुकाबले में खड़ा हो सकता है. इसके लिए रिटेल बाजार को अपनी सेवा और गुणवत्ता बढ़ाने की जरूरत है. यही नहीं, तकनीक का इस्तेमाल कर भी छोटे कारोबारी अपनी ताकत बढ़ा सकते हैं.
सरकार को चाहिए कि वह ऑनलाइन बाजार के फ्रॉड (धोखाधड़ी) पर कड़ी नजर रखे और छोटे कारोबारियों को संरक्षण दे. उक्त बातें बुधवार को बिहार चैंबर ऑफ कॉमर्स में ‘ऑनलाइन कारोबार और लोकल बाजार’ विषय पर आयोजित विचार-विमर्श में वक्ताओं ने कहीं. प्रभात खबर और बिहार चैंबर ऑफ कॉमर्स की ओर से संयुक्त रूप से आयोजित इस कार्यक्रम में लघु व मध्यम उद्योग से जुड़े कई व्यवसायियों ने हिस्सा लिया.
एमओपी फिक्स करें कंपनियां : कारोबारियों ने कंपनियों के स्तर पर भी मार्केटिंग ऑपरेटिव प्राइस (एमओपी) फिक्स किये जाने की मांग उठायी. उन्होंने कहा कि अगर कंपनियां नहीं चेतीं तो उनका भी बहिष्कार किया जायेगा. रियल इस्टेट, लेंस और फुटवियर बाजार से जुड़े कारोबारियों ने ऑनलाइन मार्केटिंग से फायदे की बात कही.
इससे पहले प्रभात खबर के संपादक (बिहार) अजय कुमार ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए विषय प्रवेश कराया. प्रभात खबर के वाइस प्रेसिडेंट विजय बहादुर ने बताया कि किस तरह जोमैटो और स्विगी जैसी ऑनलाइन कंपनियों के आने से रेस्तरां-होटल व्यवसाय में फुटफॉल घटा नहीं, बल्कि उनका व्यवसाय बढ़ा ही है. कार्यक्रम की अध्यक्षता बिहार चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष पीके अग्रवाल ने की. इस मौके पर परसन कुमार सिंह, संदीप सर्राफ, उषा झा, अशोक कुमार वर्मा, राजेश खेतान, कमन नोपानी, मुकेश जैन, बिनोद कुमार सहित दर्जनों कारोबारी मौजूद रहे.
प्रभात खबर और बिहार चैंबर ऑफ कॉमर्स के संवाद कार्यक्रम में जुटे कारोबारी
पॉलिसी के स्तर पर बड़े बदलाव करे सरकार
ऑनलाइन व्यवसाय को लेकर कारोबारियों की अलग-अलग राय रही. किसी ने इसे भविष्य का मार्केट कहा, तो किसी ने मीठा जहर. कारोबारियों ने पूछा कि ऑनलाइन कंपनियां आखिर कैसे एमआरपी पर 37 फीसदी तक की छूट दे सकती हैं. कहीं, यह टैक्स की चोरी तो नहीं? ऑनलाइन के बढ़ते बाजार से छोटे कारोबारी बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं. सरकार को इनके संरक्षण को लेकर पॉलिसी के स्तर पर बड़े बदलाव करने होंगे.

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