पटना : मुख्य सचिवालय स्थित सभाकक्ष में बिहार में कार्यरत 45 माइक्रो फिनांस संस्थाओं के प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा कि उपरोक्त संस्थाओं के ऋण वितरण के मामले में तमिलनाडु और कर्नाटक के बाद तीसरे स्थान पर बिहार है. मगर, यहां रिकवरी दर देश में सबसे बेहतर है. बिहार के गरीब ईमानदार हैं. इसी का परिणाम है कि महाराष्ट्र और तमिलनाडु में जहां माइक्रो फिनांस संस्थाओं की एनपीए दर सात प्रतिशत रही, वहीं बिहार में मात्र 0.3 फीसदी है.
संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने बताया कि बिहार के 40 लाख को 13 हजार करोड़ से ज्यादा का कर्ज और 10 हजार लोगों को रोजगार मुहैया कराया गया है. 2018-19 में 32 संस्थाओं द्वारा राज्य के 39 लाख लोगों को 7,991 करोड़ का ऋण दिया गया. 20 से 25 प्रतिशत ब्याज दर होने के बावजूद इनकी रिकवरी दर 99.7 प्रतिशत है. वहीं, बैंकों द्वारा राज्य के 8 लाख 72 हजार स्वयं सहायता समूह को मात्र चार प्रतिशत ब्याज दर पर दिये गये 8,281 करोड़ के ऋण की वापसी दर भी 98 से 99 फीसदी है.
सुशील मोदी ने कहा कि आरबीआई के कानून से नियंत्रित माइक्रो फिनांस संस्थाएं चिट फंड कंपनियों से बिल्कुल अलग हैं. ये जमा नहीं लेती, बल्कि जरूरतमंदों को कर्ज देने का काम करती हैं. इनकी वजह से सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों के गरीबों को बिना किसी मॉरगेज के 25 से 40 हजार तक के छोटे कर्ज आसानी से मिल जाते हैं, जो उनकी आमदनी बढ़ाने में मदद करता है.
राज्य स्तरीय बैंकर्स कमेटी की बैठक में माइक्रो फिनांस संस्थाओं से दो प्रतिनिधियों को शामिल करने और इनके ऋण पर ब्याज अनुदान दिलाने के लिए भारत सरकार से पहल का उपमुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया. बैठक में वित्त विभाग के प्रधान सचिव डॉ एस सिद्धार्थ, नाबार्ड के सीजीएम अमिताभ लाल, ग्रामीण विकास विभाग के सचिव अरविंद चौधरी और महिला विकास निगम की निदेशक एन विजय लक्ष्मी आदि शामिल थे.