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भू-जल की कमी से जूझ रहे बिहार के किसान, मुनाफा कम और बढ़ रही खेती की लागत

पटना : खरीफ में मॉनसून की अस्थिरता और औसत से भी कम बारिश होने से इस साल रबी सीजन में बिहार के किसान भू जल की कमी से जूझ रहे हैं. इसकी वजह से खेती की लागत बढ़ गयी है. किसान का मुनाफा कम होता जा रहा है. कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक उत्तरी और दक्षिणी […]

पटना : खरीफ में मॉनसून की अस्थिरता और औसत से भी कम बारिश होने से इस साल रबी सीजन में बिहार के किसान भू जल की कमी से जूझ रहे हैं. इसकी वजह से खेती की लागत बढ़ गयी है. किसान का मुनाफा कम होता जा रहा है.
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक उत्तरी और दक्षिणी बिहार में समान रूप से भूमि की नमी में जबरदस्त कमी आयी है. सर्दियों में भी भूमि में नमी की कमी देखी जा रही है. डॉ राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के आधिकारिक अध्ययन के मुताबिक बिहार की सभी प्रकार की मिट्टियों में नमी की मात्रा में 25-30 फीसदी की कमी आयी है. उदाहरण के लिए बिहार की क्ले सॉयल में बारिश के सीजन में एक मीटर की गहराई तक की जल ग्रहण क्षमता 200 साै मिली लीटर है.
रबी सीजन में यह क्षमता सौ मिलीलीटर होनी चाहिए. अब यह क्षमता 70 मिलीलीटर से भी कम रह गयी है. जाहिर है कि इससे नमी में कमी आयी है. दक्षिण बिहार में तो इसकी क्षमता 50 मिलीलीटर तक खिसक गयी है.
इसकी वजह यह है कि इस साल रबी की बुआई में किसानों को अतिरिक्त सिंचाई करनी पड़ी. हालात यह है कि गेहूं में चार सिंचाई की जगह पांच से छह सिंचाई करनी पड़ रही है. खासतौर पर पिछले दस सालों में सात बार हथिया नक्षत्र में बारिश की कमी के चलते रबी की खेती प्रभावित हुई है.
गोपालगंज : मौसम की मार से बेहाल किसान बदल रहे खेती की नीति
मौसम को भी लेकर किसान सशंकित हैं. 1969 के बाद दिसंबर में पहला मौका है कि अब तक कोहरा नहीं पड़ा है. गेहूं की फसल के लिए कोहरा काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. इसबार प्रतिकुल मौसम होने से न सिर्फ किसानों की मेहनत जाया जाने की संभावना बनी है, बल्कि कृषि कार्य करने को मजबूर किसान कर्ज के जाल में फंसते जा रहे हैं.
वर्तमान आंकड़े गवाह हैं कि विगत दस साल में आठ साल मौसम किसानों के प्रतिकुल रहा है. मौसम के बदलते मिजाज का असर दूर दराज तक खेत खलिहानों तक पड़ा है. इस वर्ष पर नजर डालें तो पूरा साल किसानों के विपरीत रहा है. बारिश नहीं होने से खरीफ की फसल खत्म हो गयी.
रबी की बुआई किसानों को पटवन कर करनी पड़ी है. वर्तमान में मौसम में आये बदलाव पर सिपाया कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक रामकृष्णा राव ने बताया कि वर्तमान में जो मौसम है, वह रबी की फसल के लिए लाभदायक है.
बक्सर : कृषि कार्य हुआ है प्रभावित
इन दिनों अपेक्षाकृत सर्दी कम पड़ रही है. धुंध का प्रभाव अभी क्षेत्र पर नहीं पड़ा है. मौसम परिवर्तन को लेकर काफी भिन्नता आ गयी है, जिसका असर मानव
जीवन के साथ ही खेतों में उपजनेवाली फसलों पर भी देखा जा रहा है. मौसम के कारण फसलों पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है, जिसको लेकर कृषि वैज्ञानिक भी मौसम के अनुकूल फसलों के इजाद करने में जुट गये हैं, जिससे विपरीत मौसम में उन फसलों को आसानी से उगाया जा सके.
किसान मौसम के बदलाव में भिन्नता के कारण परेशान व विवश दिख रहे हैं. जिले में सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने के कारण किसान लाचार हैं और वातावरण की अनुकूलता पर ही निर्भर हैं.
छपरा : दो दशकों में दिसंबर के तापमान में चार डिग्री बढ़ोतरी
जलवायु परिवर्तन का प्रतिकूल असर खेती के साथ-साथ आम जनों एवं जीवों पर पड़ा है. वैज्ञानिक के अनुसार विगत 20 साल के तापमान तथा आज के तापमान में लगभग चार डिग्री सेल्सियस का अंतर आया है.
जबकि खासकर रात का तापमान एक डिग्री सेल्सियस परिवर्तित होता है तो इसका असर पौधों में निषेचन क्रिया पर पड़ता है. सरकार ने किसानों को जलवायु के अनुकूल खेती करने के उद्देश्य से जलवायु समुत्थानशील कृषि पर राष्ट्रीय नवोन्वेषण (निकरा) सारण में चला रही है.
भागलपुर : खेतों में नमी की कमी, अच्छी पैदावार पर है संदेह
इस बार सुखाड़ ने किसानों की कमर तोड़ दी है. बारिश नहीं होने से खेतों में नमी की कमी बरकरार है. वैज्ञानिकों ने किसानों को इसे ध्यान में रखते हुए खेती करने की सलाह दी है. कृषि वैज्ञानिकों का अनुमान है कि खेतों में नमी की कमी कम होने से सभी फसलों के पैदावार में कमी आ सकती है.
कम नमी वाले खेतों में दलहन व तेलहन की खेती उपयुक्त होगी. मौसम के तेवर से फसलों पर रोग बढ़ेंगे ठंड अधिक होने से आलू, सरसों, मसूर व चना की फसलों पर रतुआ रोग का आक्रमण हो सकता है.
इससे बचाव के लिए दवा का छिड़काव जरूरी होगा. ठंड में फसल पर पाला, लाही का भी असर होता है. इस पर भी घ्यान देते रहना चाहिए. कुल-मिलाकर इस साल भी अच्छी पैदावार होने पर संदेह ही है.
गया : ऐसे ही बनी रही स्थिति तो घटेगा उत्पादन
मौसम में बदलाव का असर फिलहाल फसलाें पर देखने काे नहीं मिल रहा.
लेकिन, ऐसी ही स्थिति एक सप्ताह से ज्यादा दिनाें के लिए बनी रही, ताे असर पड़ सकता है. इसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ सकता है.
कृषि विभाग के अधिकारी व कृषि वैज्ञानिक की मानें, ताे जब लगातार कई दिनाें तक घना काेहरा के साथ बदली छायी रहेगी आैर बारिश भी हाे गयी, ताे रबी फसलाें में खास कर दलहनी फसल, आलू व शहजन (मुनगा) के फल पर इसका असर देखने काे मिलेगा. इसके लिए किसान पहले से ही सतर्क, सावधान रहें.
बिहारशरीफ : फसलों को नहीं मिल पा रहा आदर्श तापमान
जिले में फसलों पर बदलते मौसम का असर देखने को मिलने लगा है. रबी की फसल हो या खरीफ की सभी पर मौसम का कुछ न कुछ असर दिख रहा है. बुआई के समय जो तापमान मिलना चाहिए वह नहीं मिल रहा है. मसलन गेहूं की बुआई 15 नवंबर से शुरुआत हो जाती है.
उस समय गेहूं के अंकुरण के लिए तापमान 22-25 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए, जबकि तापमान के आंकड़े के अनुसार 30 नवंबर तक भी आदर्श तापमान नहीं मिल पाता है. दूसरी ओर पिछले बीस साल के वर्षापात के आंकड़े को देखने से पता चलता है कि जिले में औसत से भी कम बारिश हो रही है.
इसके कारण भूगर्भीय जल का स्तर भी गिरता जा रहा है. इसका असर फसलों के उत्पादन पर पड़ रहा है. साथ ही पशुओं तक को जल की कमी का सामना करना पड़ रहा है.
खेती में टिकाऊपन की समस्या उत्पन्न हो रही है. ससमय फसलों की बुआई संभव नहीं हो पा रही है, जिसके चलते पूरा फसल चक्र प्रभावित हो रहा है. एेसी स्थिति में कम पानी चाहने वाली फसल की बुआई किसानों के द्वारा की तो जा रही है, परंतु इन फसलों से किसानों को उचित लाभ नहीं मिल पा रहा है.
मुजफ्फरपुर : किसानों को फसल की लागत निकलना भी मुश्किल
मौसम में आये बदलाव के कारण फसलों पर इसका काफी बुरा असर पड़ रहा है. फसलों के उत्पादन में कमी आ रही है. किसानों को काफी नुकसान हो रहा है. उनकी लागत के अनुसार फसल की पैदावार नहीं हो रही है. किसानों का खरीफ फसल में धान का उत्पादन कम हुआ.
खेतों में नमी नहीं होने के कारण किसान गेहूं व मक्का की खेती कम कर रहे है. मौसम में आये बदलाव के कारण कुछ किसान पारंपरिक खेती को छोड़ कर आधुनिक तरीके अपना रहे हैं. वहीं, कई किसान मुख्य फसल को छोड़ कर सब्जी की खेती कर रहे हैं. किसान कम वर्षा को लेकर अधिक चिंतित हैं. सब्जी की खेती करने के पीछे किसानों का तर्क है कि कम पानी में भी इसकी खेती पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा.
हालांकि, जिला कृषि कार्यालय के आंकड़ों पर गौर करें तो यहां रबी फसल में गेहूं की बुआई में बहुत कमी नहीं आयी है. 95 हजार हेक्टेयर में गेहूं बुआई करने का लक्ष्य था. अभी तक 86 हजार 762 हेक्टेयर (91 प्रतिशत) में बुआई की गयी है. लेकिन, मक्का की बुआई पर कम वर्षा व मौसम का काफी असर दिखा है. जिले में 21 हजार हेक्टेयर में मक्का बुआई का लक्ष्य था. जबकि, 10 हजार 829 हेक्टेयर (52 प्रतिशत) में ही मक्का की बुआई अभी तक हो पायी है.
पिछली बार मक्का की बाली में दाना नहीं आने से किसानों को काफी नुकसान हुआ था. दो बार इसकी जांच भी हुई थी. लेकिन, कृषि विभाग यह तय नहीं कर पाया कि इसके पीछे की वजह मौसम था यह मक्का का बीज. किसानों को अभी तक इसका मुआवजा भी नहीं मिल पाया है. परेशान किसान इस बार मक्का की खेती नहीं कर रहे है.
मौसम आधारित खेती करने की सलाह
डॉ राजेंद्र प्रसाद कृषि विश्वविद्यालय के नोडल पदाधिकारी डॉ ए सत्तार ने बताया कि किसानों को मौसम आधारित खेती करनी चाहिए. किसानों को ऐसी खेती करनी चाहिए कि उच्च व निम्न तापमान, कम बारिश में भी पैदावार अच्छी हो.
बदलते मौसम को ध्यान में रख कर खरीफ व रबी फसल की बुआई की तिथि में बदलाव करना चाहिए. रबी मौसम में मक्के की बुआई अक्टूबर में नहीं कर 15 नवंबर से 25 नवंबर के बीच करनी चाहिए. गेहूं की एक नवंबर से 20 नवंबर तक बुआई कर लेनी चाहिए.

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