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पटना : आईजीआईएमएस में सेमिनार शुरू
पटना : दवा परीक्षण (क्लीनिकल ट्रायल) के तौर-तरीकों पर आईजीआईएमएस के डॉक्टरों ने चिंता जतायी है. आईजीआईएमएस के फार्माकोलॉजी विभाग की ओर से तीन दिवसीय 10वां एनुअल कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडियन सोसाइटी ऑफ रेटिनल फार्माकोलॉजी कार्यशाला की शुरुआत शुक्रवार को हुई. कार्यशाला का उद्घाटन कार्यक्रम मुंबई से आयी डॉ नीलिमा क्षीरसागर व आईजीआईएमएस के डायरेक्टर डॉ […]
पटना : दवा परीक्षण (क्लीनिकल ट्रायल) के तौर-तरीकों पर आईजीआईएमएस के डॉक्टरों ने चिंता जतायी है. आईजीआईएमएस के फार्माकोलॉजी विभाग की ओर से तीन दिवसीय 10वां एनुअल कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडियन सोसाइटी ऑफ रेटिनल फार्माकोलॉजी कार्यशाला की शुरुआत शुक्रवार को हुई.
कार्यशाला का उद्घाटन कार्यक्रम मुंबई से आयी डॉ नीलिमा क्षीरसागर व आईजीआईएमएस के डायरेक्टर डॉ एनआर विश्वास ने किया. कार्यक्रम के पहले दिन 200 डॉक्टरों को दवाओं की शोध व गुणवत्ता के लिए ट्रेनिंग दी गयी. आईजीआईएमएस के ट्रेनिंग लिये डॉक्टर शोध के लिए जूनियर डॉक्टर व मेडिकल पीजी की पढ़ाई करने वाले छात्रों को भी सुरक्षित दवा परीक्षण व शोध के लिए ट्रेंड करेंगे.
दवाओं की लिस्ट के लिए नयी गाइड लाइन : सभा को संबोधित करते हुए आईजीआईएमएस फार्माकोलॉजी विभाग के हेड डॉ हरिहर दीक्षित ने कहा कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने मरीज को लिखने वाले पर्ची पर दवाओं की लिस्ट की नयी गाइड लाइन जारी की है जो 2019 से लागू होगी. अगर डॉक्टर इसे लेकर अपडेट नहीं रहे तो उन्हें आने वाले दिनों में बड़ी चुनौती स्वीकार करनी होगी. डॉक्टर को दवा लिखते समय उसके कंपोजिशन, गुणवत्ता व साफ सुधरे राइटिंग में दवा लिखनी होगी.
हालांकि इस चुनौती को देखते हुए आईजीआईएमएस संस्थान ने अपने मेडिकल छात्रों को प्रिसक्रिप्शन स्क्लि डेबल्पमेंट करने का काम शुरू कराया है. इसमें दवाओं के इफेक्ट और साइड इफेक्ट का भी टिप्स दी जा रही है.
डॉ नीलिमा क्षीरसागर ने भारतीय परिवेश में शोध दवा, विधि और जरूरी दवाओं के लिस्ट के बारे में जानकारी दी. फार्मा उद्योग के कार्य पर भी चर्चा की. उन्होंने बताया कि मेडिकल की पढ़ाई में परीक्षा में पास करने के लिए दवाओं की पर्ची का प्वाइंट भी बहुत जरूरी है.
छात्रों को दिये गये टिप्स
– डॉक्टरों को मरीजों की बात पूरी गंभीर से सुननी है
– दर्द सुनने के दौरान दिमाग में बीमारी को लेकर सर्च करना है
– दवा पर्ची पर में डॉक्टर का सही हस्ताक्षर होना है
– दवाएं भी ऐसी लिखनी है जो सस्ती और असरदार हों
– मरीज की पूरी बात सुनने के बाद निर्णय लेना है कि उसे परेशानी बीमारी है
– इसके बाद जांच कर बीमारी की पुष्टि कर लेनी है
– जांच के आधार और अपने अनुभव से दवा लिखना है
– दवा का डोज और नाम के साथ उनकी स्पेलिंग साफ-साफ होनी चाहिए
– किसी भी मरीज पर अतिरिक्त लोड दवाओं का नहीं होना चाहिए
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