नयी दिल्ली / पटना : बिहार के नियोजित शिक्षकों को समान काम के बदले समान वेतन देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई बुधवार को भी पूरी नहीं हो सकी. सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को भी सुनवाई जारी रखेगा. बुधवार को सुनवाई के दौरान अदालत ने राज्य सरकार से तीखे सवाल किये. सुनवाई के दौरानअदालत ने सरकार से पूछा कि वेतन निर्धारण और नियमावली का आदेश कौन देता है, सरकार या पंचायत? साथ ही कहा कि सरकार के पास पैसे नहीं है, तो स्कूलों को बंद कर देना ही बेहतर होगा.
सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने अदालत के समक्ष अपना पक्ष रखते हुए कहा कि वर्ष 2002 से अब तक शिक्षकों के वेतन में करीब 15 गुना की बढ़ोतरी हुई है. शुरुआत में शिक्षकों की नियुक्ति 1500 रुपये मासिक पर हुई थी.राज्य सरकार ने कहा कि वेतन बढ़ाये जाने से सरकार पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा. वहीं, अदालत ने राज्य सरकार से पूछा कि वेतन निर्धारण और नियमावली का आदेश कौन देता है, सरकार या पंचायत? साथ ही कहा कि सरकार के पास पैसे नहीं है, तो स्कूलों को बंद कर देना ही बेहतर होगा. अब इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को भी सुनवाई होगी.
मालूम हो कि समान काम के बदले समान वेतन देने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एएम स्प्रे और जस्टिस यूयू ललित की पीठ मामले की सुनवाई कर रही है. राज्य के करीब तीन लाख 70 हजार नियोजित शिक्षक सुप्रीम कोर्ट के फैसले का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. नियोजित शिक्षकों के मामले में पटना हाईकोर्ट ने 31 अक्टूबर, 2017 को नियोजित शिक्षकों के पक्ष में फैसला सुनाया था. हालांकि, बाद में राज्य सरकार ने 15 दिसंबर, 2017 को सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी.
पूर्व में 29 जनवरी 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने मामले की पहली सुनवाई के दौरान राज्य सरकार से पूछा था कि शिक्षकों का वेतन चपरासी से भी कम क्यों है. राज्य सरकार का कहना है कि नियोजित शिक्षक नियमत: शिक्षकों की श्रेणी में नहीं आते. इसके बाद भी अगर नियोजित शिक्षकों को समान काम, समान वेतन के आधार पर वेतन दी जाती है तो राज्य के खजाने पर 36 हजार 998 करोड़ रुपये का बोझ बढ़ेगा. इस मामले में केंद्र सरकार ने भी बिहार सरकार के स्टैंड का समर्थन किया है. केंद्र का कहना है कि अगर बिहार में नियोजित शिक्षकों को समान कार्य के बदले समान वेतन दिया जाता है तो दूसरे राज्यों से भी ऐसी मांग उठेगी.