Advertisement
बिहार : बहुआयामी कृषि रोडमैप से किसानों की माली हालत में आयेगा सुधार
नीतीश कुमार मुख्यमंत्री, बिहार 2008 में पहली बार एक कृषि रोड मैप की परिकल्पना हमलोगों ने की. खेती के विकास के लिए जब कृषि रोडमैप हमलोगों ने बनाना शुरू किया, उस समय स्थिति यह थी कि हमारी ऊपज भी कम थी और उत्पादकता भी कम थी. जब हम 2005 में मुख्यमंत्री बने थे, उसके एक […]
नीतीश कुमार मुख्यमंत्री, बिहार
2008 में पहली बार एक कृषि रोड मैप की परिकल्पना हमलोगों ने की. खेती के विकास के लिए जब कृषि रोडमैप हमलोगों ने बनाना शुरू किया, उस समय स्थिति यह थी कि हमारी ऊपज भी कम थी और उत्पादकता भी कम थी. जब हम 2005 में मुख्यमंत्री बने थे, उसके एक डेढ़ साल के अंदर दिल्ली में प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के स्तर पर उनके सरकारी आवास पर एक मीटिंग हुई थी. मुझे याद है कि वह बैठक कृषि प्रक्षेत्र पर आयोजित हुई थी.
बैठक में एक विशेषज्ञ थे, वह प्रस्तुतिकरण कर रहे थे. देश में कृषि की स्थिति की समस्या पर प्रस्तुतीकरण चल रहा था और प्रस्तुतीकरण करते–करते उनकी नजर जो मुझ पर पड़ी तो मुझको देखते हुए मुस्कुराते हुए उन्होंने कहा कि बिहार में उत्पादकता बहुत कम है. हम जान ही रहे थे कि हमारे यहां उत्पादन और उत्पादकता बहुत कम है. मुझे महसूस हुआ कि मेरी तरफ मुस्कुराते हुए जैसे लोग मेरा मजाक उड़ा रहे हैं. हमने भी मुस्कुराते हुए उनको जवाब दिया कि स्थिति में सुधार आ जायेगा, बदलाव आ जायेगा और यह मेरा संकल्प है.
एक भरी सभा में एक विशेषज्ञ मेरी तरफ मुस्कुराते हुए देख कर बिहार की स्थिति का वर्णन कर रहा है और इस अंदाज से बता रहा है कि बिहार की हालत इतनी खराब है. ये तो चुनौती है. हमलोगों ने उस चुनौती को स्वीकार किया और कृषि की ऊपज और उत्पादकता दोनों में वृद्धि के लिए हमलोगों ने काम शुरू किया.
पहला कृषि रोडमैप 2008 में तैयार किया और हमने कहा कि ऐसे नहीं होगा, हमलोगों को बहुत व्यवस्थित और संगठित रूप से इस क्षेत्र में काम करना होगा. इसके लिए हमलोगों ने विशेषज्ञों से भी राय ली. अधिकारियों के साथ भी बैठक की. इस क्षेत्र में कृषि विभाग के जो लोग होते है, जो कृषि वैज्ञानिक है उनके साथ भी बैठक की. जो लोग कृषि क्षेत्र में काम कर रहे हैं उनके साथ भी चर्चा की, इसके साथ ही मेरा अपना भी तजुर्बा था. केंद्र में कृषि मंत्री बने थे तो देश में पहली बार कृषि नीति बनी थी और उस पर काफी बातचीत हुई थी.
इस बात की हमने यहां चर्चा की. हमने कहा कि सिर्फ चर्चा से बात पूरी नहीं होगी. हमलोगों को किसानों से बातचीत करनी चाहिए और श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में दिनांक 17 फरवरी 2008 को किसान पंचायत का आयोजन किया गया. सुबह 9 बजे से शुरु करके रात के 9–10 बजे तक यह आयेाजन चला. इसी हॉल में लोगों की बात सुनते रहे और तब जाकर चार वर्षों के लिए 2008 से 2012 के लिए कृषि रोडमैप बनाया. हमने देखा कि कुछ चीजों पर गौर करना पड़ेगा. सबसे बड़ी समस्या थी बीज की. अच्छे बीज उपलब्ध नहीं हैं.
हमारे यहां बीज निगम बना हुआ था, वह बीज निगम बंद होने के कगार पर था बल्कि व्यवहारिक रुप से बंद हो चुका था. बहुत सारी समस्याएं थीं और इसके बाद प्रारंभ से जो मेरी बात समझ में रही है, वो थी कि हम अपने पैदावार में बहुत ज्यादा केमिकल, उर्वरक का प्रयोग करते हैं उसकी तुलना में हमें लोगों को ऑर्गेनिक ढंग से खेती को बढ़ावा देना चाहिए. बहुत सारी बातें थी, वर्मी कंपोस्ट में क्या नहीं है, गाय के गोबर में, उसके मूत्र में क्या–क्या गुण हैं सबको मालूम है. लेकिन उसका हम ठीक ढंग से उपयोग नहीं करते थे.
वर्मी कंपोस्ट कोई नई चीज नहीं थी. लेकिन हमलोगों ने पहले कृषि रोडमैप में बीज विस्थापन दर, वर्मी कंपोस्ट जैसी चीजों पर बहुत जोर दिया और इसका बहुत अच्छा नतीजा आया. चार साल के अंदर जो काम हुआ उससे हमारे अनाज के उत्पादन में चाहे धान हो, गेहूं हो, मक्का हो तीनों के उत्पादन में वृद्धि हुई और उत्पादकता में वृद्धि हुई. लोग इतने प्रेरित हुए और कहीं–कहीं तो किसानों ने ऐसा काम किया कि दुनिया भर में प्रशंसा मिली. नालंदा के एक किसान ने इस तरह से काम किया कि जो दुनिया में धान की उत्पादकता में चीन का विश्व रिकॉर्ड था उसको भी तोड़ दिया. वर्ष 2011–12 में नालन्दा जिले के दरवेसपुरा गॉव में धान की 22.4 टन प्रति हेक्टेयर तथा आलू की 72.9 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादकता दर्ज की गई जो कि एक नया विश्व कीर्तिमान था. इस तरह से उत्साह पैदा हुआ. इससे उत्साहित होकर हमलोगों को ये लगा कि ये जो कृषि रोडमैप का तरीका है इसको और व्यापक बनाना चाहिए.
पहले कृषि रोड मैप की सफलता से उत्साहित होकर हमनें दूसरे कृषि रोड मैप को तैयार करने के लिए अप्रैल 2011 में कृषि की मंत्रिपरिषदीय समिति का गठन किया जिसे कृषि कैबिनेट के रूप से जाना गया. इसका विस्तार बढ़ाते हुये 18 विभागों को सम्मिलत किया गया एवं 14 उप समितियों का गठन किया गया.
इन समितियों ने 12वीं तथा 13वीं पंचवर्षीय योजना में कृषि विकास के लिए रोड मैप का खाका तैयार किया. कृषि रोड मैप के प्रारूप को 04 फरवरी 2012 को आयोजित किसान समागम में किसानों के समक्ष उनके सुझाव हेतु रखा गया. इस प्रारूप पर सुझाव आमंत्रित करने के लिए वेबसाइट पर डाला गया. कृषि रोड मैप पर बिहार विधानसभा तथा बिहार विधान परिषद में विचार–विमर्श किया गया. सभी आवाश्यक सुझावों को सम्मिलित करते हुये कृषि रोडमैप का अनुमोदन कैबिनेट द्वारा किया गया. इस रोडमैप में 2017 तक के लिए विस्तृत कार्यक्रम तथा 2022 तक के लिए सांकेतिक लक्ष्य निर्धारित किये गये.
दूसरे कृषि रोडमैप से भी उत्पादन एवं उत्पादकता में व्यापक प्रगति हुई. बीज विस्थापन दर बढ़ा. जैविक खेती, यांत्रिकरण, बागवानी एवं वृक्ष आच्छादन में विस्तार हुआ. दुग्ध, मछली और अंडा उत्पादन में भी वृद्धि दर्ज की गई.
खाद्य प्रसंस्करण की अनेक प्राथमिक इकाईयां स्थापित हुई, पर अभी भी आगे काम करना है इसीलिये पॉच साल पूरे होने के बाद हमलोग अगले पॉच साल के लिए कृषि रोडमैप को अंतिम रुप दे चुके हैं. 2012 से 2017 का कृषि रोडमैप को जब अंतिम रूप दिया जा रहा था तब भी दिन भर किसानों के साथ चर्चा हुई, किसान समागम हुआ. इस बार किसानों के साथ विमर्श हुआ. दो किसान रोड मैप का विमर्श तो श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल में हुआ था किन्तु इस बार का विमर्श सम्राट अशोक कन्वेंशन केन्द्र स्थित ज्ञान भवन में हुआ था.
दिन भर चर्चा हुई और इन सब चीजों को समाहित करते हुए कृषि रोडमैप को अंतिम रुप दिया गया. पिछली बार भी जब कृषि रोडमैप बना था तो उसकी शुरुआत करवायी थी, तत्कालीन आदरणीय राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी जी से और इस बार भी हमलोगों ने तय किया है कि इस नए कृषि रोडमैप का भी हमलोग शुरुआत करवाएंगे आदरणीय राष्ट्रपति जी से. ये ऐसे राष्ट्रपति हैं जो हमारे बिहार के गवर्नर भी रह चुके हैं. उन्होंने हमारे अनुरोध को स्वीकार किया है और 9 नवंबर का दिन निर्धारित हुआ है और उस दिन कृषि रोडमैप जो 2017 से 2022 तक का है लांच किया जाएगा. हमलोगों ने सबसे चर्चा की और उसको अंतिम रुप दिया और लक्ष्य निर्धारित किया.
2017 से 2022 का ये कृषि रोडमैप सिर्फ फसल के उत्पादन तक सीमित नहीं है बल्कि मत्स्य पालन, पशु पालन, सहकारिता, राजस्व विभाग और सभी क्षेत्रों में तरक्की करायेगा. सबसे महत्वपूर्ण है खेती कीजिए. आप जानते हैं कि हमारे यहां छोटे किसानों की संख्या बहुत ज्यादा है. छोटी जोत वाले किसान सबसे ज्यादा हैं. राष्ट्रीय औसत से भी ज्यादा हमारे यहां लघु कृषक हैं और सीमांत कृषक हैं. तो ऐसी स्थिति में बिहार के लिए कृषि रोडमैप का महत्व बहुत ज्यादा है. ये जो भूमि से संबंधित भू–राजस्व का मामला है, यह एक बड़ी समस्या है.
अब क्या कीजिएगा समाज में जो परिपाटी है, तुरंत बंटवारा होता है. पहले संयुक्त परिवार होता था. आजकल तो बड़ा जल्दी बंटवारा हो जाता है. एक भाई का ब्याह हुआ नहीं कि तुरंत बंटवारा की बात शुरु हो जाती है. खेत–खेत का बंटवारा कर लेता है. आप जरा देखिए कितना छोटा–छोटा खेत हो गया है. कमाल की क्षमता वाले किसान हैं जो इतने छोटे–छोटे खेत में भी काम कर लेते हैं, खास कर के सब्जी का उत्पादन कर लेते हैं. ये अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण बात है. भूमि संबंधी समस्या का खेतीबारी पर बहुत बड़ा कुप्रभाव पड़ता है.
100 साल से भी ज्यादा पहले हमारे यहां सर्वे सेटलमेंट का काम हुआ था. हमलोगों का लक्ष्य है कि नये ढ़ंग से, नये सिरे से पूरे बिहार में खेत का, भूमि का फिर से सर्वे हो जाय और उसके बाद बहुत बड़ी सहूलियत होगी और तब लोगों को बड़ा फायदा होगा. इस काम में भी हम लगे हुए हैं.
हमलोगों ने उसके लिए नया कानून बनाया. एरियल सर्वे करके उसको फिर जमीन पर, सतह पर वस्तु स्थिति के साथ उसको मिलान करते हुए जो काम करना है और जितने लोगों को ऐतराज है, आपत्ति है उसकी सुनवाई का एक त्वरित तरीका निकाला. हमलोंगों ने ये सोचा कि तीन साल में सर्वे सेटेलमेंट का काम पूरा हो जाएगा और इसके बाद कौंसिलिडेशन का काम हो जाएगा. हमलोगों ने तो उस समय कर दिया लेकिन जो एरियल सर्वे हो रहा है उसमें कई जगहों से परमिशन लेना है. चूंकि उसका संबंध देश की सुरक्षा से है.
एरियल तस्वीर जो यूज करना चाहते हैं उसके लिए कई तरह का क्लियरेंस लेना पड़ता है, स्वीकृति लेनी पड़ती है और इसमें काफी वक्त लगा. अब उस सारी समस्या का समाधान हो गया. हमलोगों ने सोचा था कि जितने दिनों में पूरा कर लेंगे उतने दिन तो सब क्लियरेंस लेने में लग गया. अब तेजी से काम हो रहा है. ये जो सर्वे सेटेलमेंट का काम हो जाएगा तो जमीन विवाद से छुटकारा मिल जाएगा. आप जानते हैं कि सबसे ज्यादा झगड़ा जमीन विवाद को लेकर है. जब हमने ”जनता के दरबार में मुख्यमंत्री का कार्यक्रम“ शुरू किया था तो हम देखते थे सबसे अधिक राजस्व से संबंधित, भूमि विवाद से संबंधित समस्यायें आती थीं. कानून भी बनाया और अब जब लोक शिकायत निवारण कानून बनाया और उसको लागू किया गया तो हम एक राउंड पूरा बिहार का भ्रमण कर चुके है. जहां भी गए लोक शिकायत निवारण केंद्र पर गए. हमने देखा कि लोक शिकायत निवारण केन्द्रों पर सबसे अधिक शिकायत जमीन विवाद को लेकर ही है.
जमीन के विवाद का निबटारा तभी होगा जब नए सिरे से सर्वे और सेटलमेंट का काम पूरा होगा. इसमें हमलोग लगे हुए हैं. अब आप सोच लीजिए कि कृषि के लिए जो बुनियादी चीज है खेत, उसमें कोई आपसी विवाद न बचे इसके लिए यह भी काम किया गया. कृषि रोडमैप कोई मामूली चीज नहीं है और यह कोई तात्कालिक समस्या को ध्यान में रखकर नहीं बनाया गया है.
किसानों का जो कष्ट है उससे हम वाकिफ हैं. कभी फसल होगी खूब अच्छा, कभी नुकसान. कितने बड़े पैमाने पर बाढ़ आयी. पहले क्या होता था बताइये जब फ्लड आता था.
नवंबर के बाद 25 किलो अनाज देने के लिए लिस्ट बनता था. बाढ़ आती थी जुलाई–अगस्त में और लिस्ट बनता था नवंबर में आकर कितना परिवार प्रभावित है. उसको 25 किलो अनाज दिया जाएगा. लेकिन हमलोगों के समय में याद कीजिए 2007 में जब 22 जिले प्रभावित हुए, बाढ़ से ढाई करोड़ लोग प्रभावित हुए थे, तो हमलोगों ने घर–घर एक क्विंटल अनाज पहुंचाया. इस बार जो बाढ़ आया विचित्र किस्म का और जो इसमें क्षति हुई है, इसके बारे में हम निरंतर चर्चा करते रहे हैं. जैसे फ्लैश फ्लड से नुकसान होता है. हमलोगों के यहां क्या हालत हुआ. 90 साल का आदमी भी बता रहा है कि ऐसा तो हम देखे ही नहीं किशनगंज एरिया में, अररिया में, चंपारण में अनेक जगहों पर फिर भी उस स्थिति से निपटने में जो भी संभव हुआ हमलोगों ने किया.
जो भी पीडि़त परिवार थे उन सबों को 6 हजार रुपए प्रति परिवार के हिसाब से हमलोगों ने बैंक के अकाउंट में सीधे ट्रांसफर कर दिये, उसको मॉनिटर किया गया. यही नहीं जो फसलें बर्बाद हुईं उसके लिए अगली फसल लगाने के लिए इनपुट सब्सिडी के तौर पर अभी हाल ही में जो सर्वे हुआ है, राज्य सरकार ने 900 करोड़ रुपए की मंजूरी दे दी और वो पैसा भेज दिया ताकि लोगों को मिल जाए. इसके बाद जिसका घर बर्बाद हुआ उसको भी पैसा देकर मदद करेंगे. जो हमारा सिंचाई का तंत्र है, चाहे बांध हो, नहर हो, जो नुकसान हुआ उसके लिए भी 300 करोड़ रुपए की राशि की स्वीकृति हमलोगों ने दे दी. उसके अलावा जितनी सड़कें बर्बाद हुईं ये सब काम हमलोग कर रहे हैं.
हमारे जो किसान हैं वो तो कई चीजों को झेलते हैं, कौन ऐसा साल बीतता है, कभी बाढ़, कभी सूखा, कभी दोनों. जिस स्थिति से बिहार गुजरता है उन सब चीजों को ध्यान में रखकर ही हमलोगों ने कृषि रोडमैप बनाया. सब कुछ करने के बाद भी कुदरत का जो खेल है, आप कैसे परिकल्पना कर सकते हैं किन्तु जो भी समस्या है उनका समाधान करना होगा.
जो कृषि रोडमैप है वह ये सोचकर बनाया गया है कि आगे की परिस्थिति ऐसी हो कि किसानों की माली हालत सुधरे. हमलोगों का पहला लक्ष्य है किसानों की आमदनी बढ़े और किसान का मतलब कौन ? किसान का मतलब सिर्फ खेत का मालिक नहीं, किसान का मतलब है खेतवाला हो या खेत में काम करने वाला. सब किसान चाहे वो पशु पालन करता हो, मत्स्य पालन करता हो, वो फल की खेती करता है, वो फूल की खेती करता है, वो कुछ भी करता है कृषि से संबंधित, हर कोई किसान है. तो उन तमाम लोगों की आमदनी बढ़नी चाहिए और हमारे लिए तो यह बड़ा महत्व रखता है. बिहार की आबादी का 76 प्रतिशत हिस्सा आज भी आजीविका के लिए कृषि पर आधारित है. तो हमारे लिए कृषि का विकास नहीं होगा, तो हमारे लिए 76 प्रतिशत आबादी का विकास कैसे होगा.
हम कृषि रोडमैप में 76 प्रतिशत लोग जो कृषि पर आधारित हैं उन सबकों किसान मानते हैं और उनकी आमदनी बढ़ाना चाहते हैं. हमलोगों का लक्ष्य उत्पादकता बढ़ाना तो है ही दूसरी सबसे बड़ी बात है हमलोगों का एक सपना है कि हर हिंदुस्तानी की थाली में बिहार का एक व्यंजन हो. कुछ न कुछ बिहार का उत्पादित कोई न कोई पदार्थ भारतीय की थाली में हो, तो यह कृषि रोडमैप इसको देखकर बनाया गया है.
हमने राजस्व की बात कही, सहकारिता की बात की, पशुपालन की बात की. हमारे कृषि रोडमैप में सिंचाई, पथ निर्माण जो गांव से संपर्क कराता है, खेती के लिए बिजली मिले, एग्रीकल्चर की पढ़ाई पढ़ें, इन सब बातों पर गौर किया गया है. आजादी के बाद कितने इंस्टीच्यूशनस बिहार में बने और हमारे कार्यकाल के इतने सीमित अवधि में जो हर क्षेत्र में काम किया गया है, उसे आप देख लीजिए. कृषि के क्षेत्र में डुमरांव में एग्रीकल्चर कॉलेज खुला, किशनगंज में शानदार एग्रीकल्चर कॉलेज खुला है, जिसका नाम डॉ कलाम साहब के नाम पर रखा गया है.
पूर्णिया में भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय तथा सहरसा में मंडन भारती कृषि महाविद्यालय स्थापित किये गये हैं. नालंदा में हॉर्टिकल्चर कॉलेज और यही नहीं एक नया विश्वविद्यालय बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर बना और जो साठ के दशक में राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय बना था, हमलोगों ने पहल की, वो केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय बन गया. बिहार कृषि विश्वविद्यालय के अलावे हमलोगों ने पशु विज्ञान विश्वविद्यालय की भी स्थापना की. अभी हाल ही में स्थापना हुई है, वाईस चांसलर बने है और सारा काम हो रहा है.
हर ओर विकास का काम हो रहा है. एक–एक चीज किया गया, हर क्षेत्र में अगर सड़क को ही देखे तो प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत 1000 तक की आबादी को जोड़ने का लक्ष्य था. पहले तो हमलोगों ने शुरू किया कि मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 500 तक की आबादी को जोड़ेंगे.
तब प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में प्रावधान बदल गया कि अब 500 तक की आबादी को जोड़ेंगे तो हमलोगों ने कहा कि हम 250 तक की आबादी को मुख्यमंत्री ग्राम सम्पर्क योजना के अंतर्गत जोड़ेंगे. पहले केंद्र की प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में जिसमें नक्सल प्रभावित जो जिले हैं जिसको आईएपी जिला कहा जाता है, उसमे 11 जिले हैं उसमे था कि 250 तक की आबादी को जोड़ेंगे तो हमने कहा कि जो गैर आईएपी जिले हैं उसमे 250 तक की आबादी को जोड़ेंगे तो बाद में पता चला कि केंद्र ने नीति बदल दी और कहा कि हम 250 तक की आबादी वाला नहीं जोड़ेंगे तो अब जाकर निर्णय लेना पड़ा जो 11 आईएपी जिले हैं उसमें भी जो 250 तक की आबादी की बसावटें है उसकों मुख्यमंत्री ग्राम सम्पर्क योजना के तहत जोड़ा जाएगा.
और वही तक नहीं हैं हमलोग इस बार सात निश्चय योजना में टोला निश्चय योजना जिसमे गांव जुड़ जाता है लेकिन गांव का टोला जिसमे गरीब–गुरबा रहता है जिसमे अनुसूचित जाति, जनजाति, अतिपिछडे वर्ग के लोग रहते हैं वो नहीं जुड़ा रहता था तो उसकों भी टोला निश्चय योजना के तहत जोड़ा जा रहा है इसलिए अब गांव ही नहीं हर टोला भी जोड़ा जाएगा और यही नहीं अब गांव के अंदर पक्की गली और नाली का निर्माण हो रहा है. वैशाख में भी गांव ऐसे थे जहां ठेठ गर्मी के महीने में भी कीचड़ रहता था और लोग घर से निकलते थे तो पैर गंदा होता था तो हमने कहा कि गांव में रहनेवाले कीचड़ में क्यों चलेंगें ?
इसलिए हर गांव में पक्की गली और नाली का निर्माण ताकि घर से निकले और बिना पैर गंदा किये जहां जाना हो चले जाए. यह एक–एक चीज सभी कृषि रोड मैप का हिस्सा है, चाहे जमीन सम्बन्धी सारे मामले का निपटारा करना हो, चाहे सिचाई का मामला हो, चाहे बिजली का मामला हो या गांव को जोड़ने का मामला हो, कोल्ड स्टोरेज या अनाज के भंडारण की बात हो. पहले बहुत बुरी स्थिति थी और अब तो बहुत काम हुआ है.
भंडारण में 65 लाख मेट्रिक टन लक्ष्य के विरूद्ध 28.2 लाख मेट्रिक टन क्षमता सृजित की जा चुकी है तथा 5.24 लाख मेट्रिक टन क्षमता निर्माणाधीन है. अब तो कहीं–कहीं इतना भंडार बन गया है कि अनाज रखने के बाद भी जगह उपलब्ध है. अब इस नये रोडमैप में हमने खासतौर पर जोर दिया है आर्गेनिक फामिंर्ग को बढ़ावा देने के लिए. आप जानते है कि नालंदा के दो गांव में सब्जी की जो खेती हुई वह कितना जबर्दस्त हुआ है ?
वहां जो फूलगोभी होती है और आप रासायनिक खाद से जो उत्पादन करते हैं उससे खूब बड़ा, खूब सख्त और देखने में भी सफेद. आलू का साइज देखिये जो इस तरह की खेती से आलू का साइज हो रहा है, हमने तो तत्कालीन कृषि मंत्री को बुलवाया और आलू पकडवाकर फोटो खिंचवाया और उसे अखबार को रिलीज कर दिया, जिसको ऑर्गेनिक फार्मिंग के जरिये उत्पादित किया गया था. नोबेल पुरस्कार विजेता जोसेफ स्टिगलेट अमेरिका से आये और नालंदा घुमने खंडहर के नीचे एक गांव में चले गए. वहां उनकी रूचि जग गई.
वहां उन्होंने देखा कि भाई एक जगह बहुत ही अच्छी फूलगोभी है और वहीं दूसरी जगह ठीक नहीं है तब उन्होंने कहा कि भाई आप इतना अच्छा ऑर्गेनिक फार्मिंग कर रहे है तो आपके बगल वाले आपसे क्यों नहीं सीख रहे हैं? तब उस किसान ने कहा कि वह भी मेरा ही खेत है और हम देखना चाहते थे कि ऑर्गेनिक फार्मिंग से किस तरह का फर्क आता है, यह कारगर है या नहीं है, हम संतुष्ट होना चाहते थे. वो नोबेल विजेता जोसेफ स्टिगलेट इतने प्रभावित हुए और तत्काल बयान दिया कि बिहार के किसान तो साइंटिस्ट से भी ज्यादा सोचते है. इस कृषि रोडमैप में हम उसी खेती को बढ़ावा देना चाहते हैं.
सब्जी के लिए सब्जी उत्पादकों का सहकारी संगठन को–ऑपरेटिव सोसाइटी हम बहुत दिनों से बनाने का सोच रहे थे. सब्जी की खेती होती है और आप जानते ही हैं कि वह बहुत जल्दी खराब होने की स्थिति में रहता है इसलिए किसान जितना जल्दी हो उसे बाजार भेजकर किसी भी कीमत पर बेचने को विवश होता है. इसलिए हमलोगों ने कहा कि इसके लिए सहयोग समितियां बननी चाहिए और अब तो सब कुछ हो गया. कैबिनेट से भी पास हो गया और प्रारम्भिक तौर पर कुछ जिलों में सहयोग समितियां बने ऐसा मत समझिएगा कि वही अंतिम है.
सभी जगहों पर जहाँ सब्जी की खेती होती है, सहयोग समितियां होंगी, यह चम्पारण और अन्य सभी जगहों पर गठन होगा लेकिन इसके लिए तत्काल कही से तो काम शुरू करना पड़ेगा. अभी यह शुरुआत है उधर के जो किसान हैं वह पता करते रहते हैं कि जो ट्रक का ट्रक सब्जी है कहाँ निकलकर जाता है ? कभी जयनगर जाएगा, कभी सिलीगुड़ी जाएगा, कभी पटना जाएगा, कभी कोलकाता जाएगा, ऐसे में अगर सहयोग समितियां बन जायेगी और फिर तीन–चार जिलों को मिलाकर यूनियन और फिर इस तरह का यूनियन कई जगह बनेगें और उसके ऊपर फेडरेशन होगा तो फिर चिंता नहीं करनी पड़ेगी. किसान को लोकल बाजार उपलब्ध कराया जाएगा ताकि वहां जो बिक रहा है बेच दे और जो बचा उसे ठीक ढंग से आगे भेजने का उपाय सहकारी समितियों के माध्यम से होगा. यह पूरी समिति जो बनाई जा रही है सरकार के सहयोग से बनाई जा रही है और जो भी खर्चा होगा सहयोग समितियों के आधारभूत संरचना के निर्माण में वह राज्य सरकार खर्च करेगी.
हमारे यहाँ भी किसानों में बहुत क्षमता है और सब्जी के उत्पादन में तीसरे नम्बर पर हैं, बहुत जल्दी दूसरे नम्बर पर पहुँच जायेंगे. हमारा लक्ष्य है सब्जी उत्पादन में एक नम्बर पर पहुंचने का. उसके हर पहलू को ध्यान में रखते हुए कृषि रोडमैप को तैयार करने का संकल्प है. जैविक कोरिडोर का भी निर्माण होगा. उत्पादन, उसका भंडारण, प्रसंस्करण और उसका विपणन करने में हमारे किसान सक्षम हो यह कृषि रोडमैप का हमारा लक्ष्य है.
गंगा के तटीय इलाकों में जैविक कॉरिडोर बनाने की जो बात हमने कही वह तो है ही और यही नहीं हमलोग किसान को अनुदान यांत्रिकीकरण में, यंत्र को बढ़ावा देने के लिए जिसमे आईएसआई मार्का वगैरह लिखा रहता है तो हमने कहा है कि जो स्थानीय स्तर पर कृषि यंत्र बनाया जाता है वैसे कृषि यंत्र निर्माताओं को प्रोत्साहित किया जाएगा और उसे भी सर्टिफाई किया जाएगा और उनसे जो किसान खरीदेंगे उन्हें भी सब्सिडी दी जाएगी. हमलोग धान का प्रोक्युमेंर्ट करते हैं, अब पैक्स की गतिविधि और आमदनी बढ़ गयी है. अब जो दिक्कत आती है कि जो धान का प्रोक्युमेंर्ट होता है वह बाद में शुरू होता है जबकि नवम्बर से ही धान होना शुरू हो जाता है कई जिलों में, और अगर उसकी अधिप्राप्ति नहीं होगी समय से तो किसी भी कीमत पर वह धान बेच देगा. ऐसा क्यूँ होता है
उसका कारण है धान की नमी, और केंद्र सरकार साफ कहती है कि अगर 17 प्रतिशत से ज्यादा धान में नमी होगी तो उसकी अधिप्राप्ति नहीं होगी. चूॅकि हमारा अधिप्राप्ति विकेंद्रीकृत है क्योंकि जो राज्य सरकार कर रही है वह एफसीआई के बदले में कर रही है, वह मंजूर नहीं करता है इसलिए दिक्कत आती है और इस बार उसी विभाग के केन्द्रीय मंत्री श्री रामविलास पासवान जी है उनसे एक दिन की चर्चा हुई है. उन्होंने मुझे आश्वस्त किया है और मुझे पूरा भरोसा है कि इस बार जो नमी वाली बात है उसको छोड़ेंगे और 19 प्रतिशत तक भी धान में नमी होगी तो उसकी अधिप्राप्ति होगी. अगर फरवरी और मार्च में अनुमति मिलती है उसका कोई फायदा नही है, नमी वाली अनुमति तो नवम्बर और दिसम्बर में चाहिए. हमलोग सजग है और मुझे पूरा भरोसा है जैसा कि बात हुई है और हमारे अधिकारियों ने भी पत्र लिखा है. इस बात का पूरा भरोसा है कि इसका कोई रास्ता निकलेगा और इस बार नमी समस्या शायद न रहे.
अधिप्राप्ति के साथ ही हर तरह के काम को ध्यान में रखते हुए कृषि रोड मैप तैयार किया गया है. दूध, मछली, अंडा उत्पादन और जो पैक्स है उसका हमलोग कम्प्यूटराइजेशन भी करवा रहे हैं. अब नमी की मात्र के बारे में लोग सोचते होंगे कि भाई पंजाब वगैरह में यह कैसे हो जाता है, पंजाब वगैरह में तो अड़हतिया लेता है और ड्रायर रखता है ड्रायर से धान को सुखा दिया और एफसीआई को दे दिया. हमारे यहां तो सीधे विकेंद्रीकृत प्रोक्योरमेंट है और पैक्स के माध्यम से करते हैं.
हमने तो यह भी किया है कि पैक्स के पास जितने भी राइस मिल है उन सबको ड्रायर भी उपलब्ध कराया जाय ताकि वह नमी की मात्र को ठीक कर ले.
इन सारी बातों पर ऐसा कुछ भी नहीं है जिस पर नजर नहीं रहती है और जिसपर कोशिश नहीं करते हैं. जो आर्गेनिक फामिंर्ग करेंगे उसके लिए नगर विकास विभाग के तरफ से सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट जो लग रहा है, उस ट्रीटेड पानी को नदी में नहीं डालकर और भी जो जरूरी ट्रीटमेंट है उसे करके उसे सिचाई के मकसद से इस्तेमाल किया जाएगा. इसके लिए नगर विकास विभाग, जल संसाधन विभाग और कृषि विभाग को हमने यह जिम्मेवारी सौपी है ताकि पानी की बर्बादी न हो.
इस बार का जो कृषि रोड मैप है उसमे कई विलक्षण चीजें है जिससे किसानों को लाभ मिलेगा.बिजली की उपलब्धता के लिए अलग फीडर बनाना शुरू हो गया. नौबतपुर के फीडर का काम शुरू हो गया है. हमने कह दिया है उसका भी उदघाटन राष्ट्रपति जी से करा देंगे ताकि सबको पता चल जाए कि काम शुरू हो गया है और अलग फीडर हम देते है तो उसके हर पहलू को हम देख लेते है सिर्फ कहने से काम नहीं चलेगा अगर ठीक ढंग से जमीन पर उसको उतारने के लायक आप नहीं है तो वैसा काम करने का कोई मतलब नहीं है.
हर तरह से सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए अलग–अलग क्षेत्रों की जो समस्याएं है दियारा क्षेत्र की अलग समस्यायें हैं टाल क्षेत्र की अलग समस्याएं है. एक लाख सात हजार हेक्टेयर का पूरा का पूरा टाल है, फतुहा से लेकर बड़हिया तक 1016 वर्ग किलोमीटर में उसकी समस्या अलग है.
दियारा क्षेत्रें की समस्या अलग है, चम्पारण की समस्या अलग है, किशनगंज, अररिया में समस्या अलग है, रोहतास, कैमूर, गया, बांका में समस्या अलग है, हर जगह अलग–अलग तरह की समस्या है जिसको ध्यान में रखते हुए सिचाई की वैसी ही प्रणाली विकसित किया जाए यह हमारा लक्ष्य है और इसके लिए हमलोगों ने कई प्रोजेक्ट को मंजूरी भी दी है. इसके लिए सिचाई विभाग को अन्दरुनी तौर पर दो हिस्से में बांटा, एक हिस्सा बाढ़ नियंत्रण का काम देखेगा और एक हिस्सा सिचाई परियोजनाओं का काम देखेगा. पहले क्या होता था मालुम है सारा इंजीनियर बाढ़ नियंत्रण में लग जाता था. सब सोचता रहता था कि हम बाढ़ नियंत्रण में रह जाय और सिचाई परियोजना का काम पड़ा रह जाता था.
आप जान लीजिये कि पहली बार यह निर्णय लिया और सिंचाई की परियोजनाएं भी अब पूरी होने लगी हैं. इस तरह से हर पहलू को गौर करते हुए कृषि रोडमैप तैयार किया गया है.
किसान की संख्या सर्वाधिक है और भले ही देश के जीडीपी में उनका योगदान 14 प्रतिशत है और हमारे यहां राज्य के जीडीपी में उनका योगदान 18 प्रतिशत है लेकिन हम चाहते हैं कि यह और ज्यादा बढ़े. किसान की माली हालत में सुधार आये इसके लिए जो कुछ हम योजना बनाते हैं और उसको क्रियान्वित करते हैं और उसके क्रियान्वयन में अगर त्रुटि है तो उसका लाभ तो नहीं मिलेगा लेकिन उसकी जानकारी तो मिलनी चाहिए, इसी को कहते है फीडबैक.
सिर्फ बता दीजिये ताकि उसपर कार्रवाई हो सके. कृषि के क्षेत्र में कृषि रोड मैप में जो तय कार्यक्रम है योजनायें हैं उसके क्रियान्वयन में जमीनी स्तर पर कही कोई कमी हो, त्रुटि हो अगर इसकी जानकारी मिल जाए तो तत्काल इसका समाधान हो जाएगा.
(यह आलेख मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भाषण का अंश है.)
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement