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अंतरजातीय विवाह प्रोत्साहन योजना पर खर्च होंगे सात करोड़
पटना : अंतरजातीय विवाह करने वाले जोड़ों के लिए राज्य सरकार ने इस साल सात करोड़ रुपये प्रोत्साहन राशि की व्यवस्था की है. पिछले साल इसका बजट पांच करोड़ रुपये था, लेकिन तीन करोड़ 89 लाख रुपये ही खर्च के लिए विभाग को मिले. अब साल 2017-18 में पिछले साल के मुकाबले दो करोड़ रुपये […]
पटना : अंतरजातीय विवाह करने वाले जोड़ों के लिए राज्य सरकार ने इस साल सात करोड़ रुपये प्रोत्साहन राशि की व्यवस्था की है. पिछले साल इसका बजट पांच करोड़ रुपये था, लेकिन तीन करोड़ 89 लाख रुपये ही खर्च के लिए विभाग को मिले. अब साल 2017-18 में पिछले साल के मुकाबले दो करोड़ रुपये की बढ़ोतरी की गयी है. इसका मूल मकसद दहेज प्रथा खत्म करना और जाति प्रथा मिटाना है. इस योजना के तहत प्रोत्साहन राशि के रूप में इस समय एक लाख रुपये वधू के नाम फिक्स डिपोजिट किये जाते हैं. तीन साल बाद वह इस रकम को वापस निकाल सकती हैं.
इनको मिलेगा लाभ
अंतरजातीय विवाह करनेवाली महिलाओं को आर्थिक दृष्टिकोण से सबल बनाने के लिए इस योजना को लागू किया गया है. इसमें विवाहित दंपती में से किसी एक का बिहार का निवासी होना आवश्यक है. कोई भी ऐसी महिला, जिसने दूसरी जाति से शादी की हो उसे शादी के एक साल के भीतर इस लाभ के लिए जिला स्तर पर सहायक निदेशक बाल संरक्षण के यहां आवेदन करना होगा.
क्या कहती हैं मंत्री
समाज कल्याण विभाग की मंत्री कुमार मंजू वर्मा ने कहा कि राज्य की नीतीश सरकार आधी आबादी के कल्याण के लिए प्रयासरत है. अंतरजातीय विवाह को प्रोत्साहन मिलने से दहेज प्रथा में कमी आयेगी. जातिप्रथा भी खत्म होगी. जात-पात समाज के विकास में
बड़ी बाधा है. देखा जा रहा है कि अब राज्य के लोगों में जागरूकता आयी है. लोग कास्ट लाइन को बायकाट कर रहे हैं.योजना का लाभ कितनों को मिला, जानकारी विभाग को नहीं
अंतरजातीय विवाह के संबंध में समाज कल्याण विभाग के प्रधान सचिव अतुल प्रसाद ने कहा कि पिछले एक साल में इस अंतरजातीय विवाह योजना का लाभ बिहार में कितने लोगों को मिला इसका लेखा-जोखा अभी विभाग के पास नहीं है. इसका संकलन किया जा रहा है. जल्द ही इस काम को पूरा कर लिया जायेगा.
प्रमाणपत्र हैं आवश्यक
आवेदक को जन्म प्रमाणपत्र, आवास प्रमाणपत्र, जाति प्रमाणपत्र, शादी निबंधन प्रमाणपत्र देना होता है. यह राशि लेने के लिए आवेदक को शादी के एक साल के भीतर आवेदन करना पड़ता है. अधिकतर मामलों में प्रमाणपत्र नहीं होने के कारण लोग लाभ से वंचित हो जाते हैं.
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