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कर्ज की माफी से नहीं लागत का डेढ़ गुना देने पर दूर होगा कृषि संकट: नीतीश कुमार

पटना. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने देश के अलग-अलग हिस्सों में चल रहे किसान आंदोलनों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जबरदस्त हमला बोला है. उन्होंने किसानों के लिए राष्ट्रीय नीति नहीं बनाये जाने को लेकर केंद्र सरकार की तीखी आलोचना की. उन्होंने कहा कि देश के ज्यादातर हिस्से में कृषि संकट चल रहा है. फसलों […]

पटना. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने देश के अलग-अलग हिस्सों में चल रहे किसान आंदोलनों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जबरदस्त हमला बोला है. उन्होंने किसानों के लिए राष्ट्रीय नीति नहीं बनाये जाने को लेकर केंद्र सरकार की तीखी आलोचना की. उन्होंने कहा कि देश के ज्यादातर हिस्से में कृषि संकट चल रहा है. फसलों की उत्पादकता बढ़ी है, फिर भी कृषि व किसान संकट में हैं.

किसानों के फसल उत्पादन की लागत में तो वृद्धि हो रही है, लेकिन उत्पादन के उचित दाम नहीं मिल पा रहे हैं. इसलिए सिर्फ कर्ज माफी कर देने से कृषि संकट दूर नहीं होगा. किसानों को फसल की लागत में 50 फीसदी मुनाफा जोड़ कर न्यूनतम समर्थन मूल्य देने से ही काफी हद तक इस संकट का निदान किया जा सकता है. वह सोमवार को लोक संवाद कार्यक्रम के बाद पत्रकारों के सवालों का जवाब दे रहे थे.

नीतीश कुमार ने केंद्र सरकार पर फसल बीमा, जीएम सरसों और दाल के आयात को लेकर भी हमला बोला. कहा कि फसल बीमा योजना किसानों के लिए नहीं, बल्कि बीमा कंपनियों के हित में लायी गयी है. उन्होंने कहा कि 2014 लोकसभा चुनाव के पहले प्रधानमंत्री पद के भाजपा उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने और भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में वादा किया था कि उनकी सरकार बनी, तो किसानों को फसल की लागत में 50% मुनाफा जोड़ कर न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जायेगा. यह वाद पूरा कर दें, तो देश में कृषि संकट का समाधान हो जायेगा. कर्ज माफी या बाकी काम से कुछ इलाकों की समस्या का निदान हो सकता है, लेकिन कृषि संकट दूर नहीं हो सकता है.

मुख्यमंत्री ने पूछा कि क्या जिन किसानाें ने कर्ज नहीं लिया है, वे संकट में नहीं हैं? केंद्र सरकार जो किसान कर्ज से संकट में हैं और जो किसान बिना कर्ज लिये संकट में हैं, उनकी समस्या का समाधान करें. मुख्यमंत्री ने कहा कि कृषि संकट दूर करने के लिए केंद्र सरकार को बेहतर नीति बनाना होगी, सिर्फ प्रचार-प्रसार से कोई फायदा नहीं होने वाला है. केंद्र सरकार को पहल करनी चाहिए. कृषि मंत्रालय का नाम बदल देने से किसानों का लाभ नहीं होने वाला है. किसानों की आमदनी इतनी कम है कि अगर इस पर राष्ट्रीय स्तर पर उनके परिवार व स्वास्थ्य के बारे में नहीं सोचेंगे और कोई राष्ट्रीय नीति नहीं बनायेंगे, तो और दिक्कत होगी. देश में कृषि संकट का इससे बड़ा प्रमाण कोई और नहीं हो सकता है कि मराठा, जाट, पाटीदार जो कृषि में संपन्न माने जाते थे, वे आर्थिक व शिक्षा के क्षेत्र में पीछे हो गये हैं. वे अब आरक्षण मांगने को मजबूर हैं.

बीमा कंपनियों के लिए है फसल बीमा योजना
मुख्यमंत्री ने स्वायल हेल्थ कार्ड व फसल बीमा योजना का भी विरोध किया. कहा कि स्वायल हेल्थ कार्ड किसानों को दे दें और पता चले कि उसमें ये कमियां हैं, तो बिना उन्हें दूर किये इसका कोई फायदा नहीं है. वहीं, फसल बीमा योजना किसानों के लिए नहीं, बल्कि बीमा कंपनियों के लिए है. बीमा कंपनियों को केंद्र सरकार, राज्य सरकार व किसान राशि देते हैं, लेकिन कितने किसानों को मुआवजा मिलता है? सीएम ने एक बार फिर जीएम बीज का विरोध किया. कहा कि जीएम बीज पर जोर दिया जा रहा है. जीएम बीज लाते हैं, तो सिर्फ उत्पादकता को देखते हैं, लेकिन इसका क्या प्रभाव पड़ रहा है, कैसे नयी प्रकार की बीमारियां आ रही हैं, उसे नहीं देखते हैं. जीएम बैगन के बाद अब सरसों लाया गया है. जीएम बीज आने से मल्टीनेशनल कंपनियां आयेंगी. बाजार में उनका एकाधिकार होगा और उनका मुनाफा व किसानों पर दबाव होगा.
दाल आयात कर ली, अब किसानों को नुकसान
मुख्यमंत्री ने कहा कि दाल आयात करके रख ली गयी, जिससे दलहन उत्पादकों को अब नुकसान होने जा रहा है. दाल तो ज्यादा दिन रख नहीं सकते हैं. अब जब दलहन उत्पादन के बाद दाल बाजार में आने वाली है तो आयात की गयी दाल को बाजार में उतारा जा रहा है. इससे दाल की कीमत कम हो जायेगी और किसानों को दाल का उचित मूल्य नहीं मिल सकेगा.

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