किसानों के फसल उत्पादन की लागत में तो वृद्धि हो रही है, लेकिन उत्पादन के उचित दाम नहीं मिल पा रहे हैं. इसलिए सिर्फ कर्ज माफी कर देने से कृषि संकट दूर नहीं होगा. किसानों को फसल की लागत में 50 फीसदी मुनाफा जोड़ कर न्यूनतम समर्थन मूल्य देने से ही काफी हद तक इस संकट का निदान किया जा सकता है. वह सोमवार को लोक संवाद कार्यक्रम के बाद पत्रकारों के सवालों का जवाब दे रहे थे.
नीतीश कुमार ने केंद्र सरकार पर फसल बीमा, जीएम सरसों और दाल के आयात को लेकर भी हमला बोला. कहा कि फसल बीमा योजना किसानों के लिए नहीं, बल्कि बीमा कंपनियों के हित में लायी गयी है. उन्होंने कहा कि 2014 लोकसभा चुनाव के पहले प्रधानमंत्री पद के भाजपा उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने और भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में वादा किया था कि उनकी सरकार बनी, तो किसानों को फसल की लागत में 50% मुनाफा जोड़ कर न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जायेगा. यह वाद पूरा कर दें, तो देश में कृषि संकट का समाधान हो जायेगा. कर्ज माफी या बाकी काम से कुछ इलाकों की समस्या का निदान हो सकता है, लेकिन कृषि संकट दूर नहीं हो सकता है.
मुख्यमंत्री ने पूछा कि क्या जिन किसानाें ने कर्ज नहीं लिया है, वे संकट में नहीं हैं? केंद्र सरकार जो किसान कर्ज से संकट में हैं और जो किसान बिना कर्ज लिये संकट में हैं, उनकी समस्या का समाधान करें. मुख्यमंत्री ने कहा कि कृषि संकट दूर करने के लिए केंद्र सरकार को बेहतर नीति बनाना होगी, सिर्फ प्रचार-प्रसार से कोई फायदा नहीं होने वाला है. केंद्र सरकार को पहल करनी चाहिए. कृषि मंत्रालय का नाम बदल देने से किसानों का लाभ नहीं होने वाला है. किसानों की आमदनी इतनी कम है कि अगर इस पर राष्ट्रीय स्तर पर उनके परिवार व स्वास्थ्य के बारे में नहीं सोचेंगे और कोई राष्ट्रीय नीति नहीं बनायेंगे, तो और दिक्कत होगी. देश में कृषि संकट का इससे बड़ा प्रमाण कोई और नहीं हो सकता है कि मराठा, जाट, पाटीदार जो कृषि में संपन्न माने जाते थे, वे आर्थिक व शिक्षा के क्षेत्र में पीछे हो गये हैं. वे अब आरक्षण मांगने को मजबूर हैं.