प्रतिनिधि, नवादा कार्यालय जिले में 34540 कोटि में नियुक्ति तीन शिक्षकों का शैक्षणिक प्रमाणपत्र फर्जी मिला है. शैक्षणिक प्रमाणपत्रों की विभाग अपने स्तर से जांच करा रही है. विभागीय जांच में यह उजागर हुआ है कि तीन शिक्षक फर्जी शैक्षणिक प्रमाणपत्र के आधार पर बहाल हैं. मामले की पुष्टि के बाद शिक्षा विभाग ने इनके विरुद्ध कार्रवाई करने का आदेश जारी कर दिया है, जिससे जिले के शिक्षा महकमे में हड़कंप मच गया है. जांच रिपोर्ट के अनुसार पहला मामला मो. मकसूद अंसारी से जुड़ा है, जो वर्तमान में उत्क्रमित मध्य विद्यालय रूपाय, प्रखंड सिरदला में बहाल हैं. जांच के दौरान प्राथमिक शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय, बुंडू (रांची) के प्राचार्य से प्राप्त प्रतिवेदन में यह स्पष्ट हुआ कि सत्र 1991/93 में इस नाम से कोई नामांकन ही नहीं पाया गया, बावजूद इसके संबंधित शिक्षक बहाल पाये गये. वहीं दूसरा मामला मो मुशतक अली अंसारी का है, जो उत्क्रमित मध्य विद्यालय कझिया, प्रखंड अकबरपुर में शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं. जांच में सामने आया कि प्राथमिक शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय, बुंडू (रांची) में सत्र 1990/92 के दौरान उनका कोई नामांकन नहीं था. इतना ही नहीं, जांच में यह भी उजागर हुआ कि संबंधित शिक्षक ने फर्जी अंक प्रमाणपत्र और महाविद्यालय से फर्जी परित्याग प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया था. जबकि, तीसरा मामला मो इरशाद से संबंधित है, जो उत्क्रमित मध्य विद्यालय करमाटांड़, प्रखंड कौआकोल में बहाल हैं. जांच प्रतिवेदन में प्रखंड प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान, गोरुमहिसिनी, मयूरभंज (ओड़िशा) के प्राचार्य ने स्पष्ट किया है कि प्रमाणपत्र में दर्ज रोल नंबर 03 एबी 119 से संबंधित व्यक्ति न तो इस महाविद्यालय का छात्र रहा है और न ही यहां से स्नातक उत्तीर्ण किया है. इस प्रकार प्रस्तुत प्रमाणपत्र पूरी तरह फर्जी पाया गया.
क्या कहते हैं जिला कार्यक्रम पदाधिकारी
इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए जिला कार्यक्रम पदाधिकारी (स्थापना) शिव कुमार वर्मा ने बताया कि नवादा जिले में 34540 कोटि की शिक्षक नियुक्ति प्रक्रिया के अंतर्गत बहाल सभी शिक्षकों की शैक्षणिक प्रमाणपत्रों की विभाग अपने स्तर से जांच करा रही है, जहां भी अनियमितता या फर्जीवाड़ा पाया जायेगा, वहां कठोर विभागीय व कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित की जायेगी. तीनों मामलों के सामने आने के बाद शिक्षा विभाग की साख पर गंभीर सवाल खड़े हो गये हैं. वहीं, विभाग की इस सख्ती को शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता और योग्य अभ्यर्थियों के अधिकार की रक्षा की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है.
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