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मार्केटिंग के बिना महिलाओं का उत्साह पड़ रहा ठंडा

मुहिम. लहठी,चूड़ियों की खनक से संवर रही ग्रामीण महिलाओं की जिंदगी महिलाएं समूह बना कर दुल्हन सेट, थ्री सेट व नाग सेट लहठी चूड़ी का निर्माण कर रहीं चूड़ियों का सेट बाजार में 35 रुपये से लेकर 800 रुपये में जीविका की मदद से लहठी-चूड़ी निर्माण में जुटी हैं महिलाएं बिहारशरीफ : घर के कामों […]

मुहिम. लहठी,चूड़ियों की खनक से संवर रही ग्रामीण महिलाओं की जिंदगी

महिलाएं समूह बना कर दुल्हन सेट, थ्री सेट व नाग सेट लहठी चूड़ी का निर्माण कर रहीं
चूड़ियों का सेट बाजार में 35 रुपये से लेकर 800 रुपये में
जीविका की मदद से लहठी-चूड़ी निर्माण में जुटी हैं महिलाएं
बिहारशरीफ : घर के कामों से फुरसत मिलने के बाद गांव की महिलाएं बेकार बैठने और गप्पे हांकने की जगह अब अपना और अपने परिवार की खुशहाली के बारे में सोचने लगी है. इसकी-उसकी शिकायत करने के बजाय महिलाएं अपना उद्यम खुद करने में जुटी है और यह सब संभव जीविका के माध्यम से हो सका है. गिरियक प्रखंड के तख्तरोजा व आदमपुर गांव की महिलाएं लहठी-चूडि़यों की खनक से अपनी जिंदगी संवारने में जुटी है. इन गांवों की महिलाएं समूह बना कर लहठी-चूड़ी के निर्माण में जुटी हैं. इन गांवों की महिलाएं समूह बना कर लहठी चूड़ी के निर्माण में जुटी हैं. 35 से 40 महिलाओं का समूह बना कर महिलाएं आज दुल्हन सेट, थ्री सेट,
नाग सेट लहठी-चूड़ी बना रही है और प्रतिदिन 150 से 200 रुपये कमा रही है. इन चूडि़यों की क्वालिटी और आकर्षण कंपनी द्वारा निर्मित लहठी चूडि़यों से किसी भी मायने में कम नहीं है. बाजार में इन चूडि़यों की कीमत 35 रुपये से लेकर 800 रुपये तक की है. शादी ब्याह के मौके पर इन लहठी चूडि़यों की काफी मांग है. गर जब शादी-ब्याह का समय नहीं होता है तो इन लहठी चूडि़यों की मांग कम हो जाती है.
डिमांड के आधार पर होता है निर्माण :
महिलाएं इन लहठी-चूडि़यों का निर्माण डिमांड के आधार पर करती हे. तख्तरोजा व आदमपुर में निर्मित लहठी-चूड़ी की बिक्री स्थानीय स्तर पर होती है. लोग इन गांवों से खरीद कर ले जाते हैं. जिला स्तर पर लगने वाले मेलों के अलावा राज्य स्तर के मेलों में इन महिलाओं द्वारा स्टॉल लगा कर बेचा जाता है. इसके लिए जीविका द्वारा समूह को हर संभव मदद की जा रही है.
स्थानीय स्तर पर मिल जाता है कच्चा माल :
लहठी-चूड़ी निर्माण में प्रयोग किया जाने वाला कच्चा माल स्थानीय स्तर पर ही उपलब्ध हो जाता है. समूह की महिलाएं गिरियक बाजार अथवा बिहारशरीफ से कच्चा माल खरीद लेती है. इसमें उन्हें किसी प्रकार की परेशानी नहीं हैं. समूह की महिलाओं को कच्चा माल दे दिया जाता है और उसे एक रजिस्टर पर अंकित कर लिया जाता है और उसके अनुसार महिलाओं को निर्धारित मेहनताना दिया जाता है.समूह की महिलाओं में लहठी-चूड़ी के निर्माण का काफी उत्साह है, मगर मार्केटिंग की व्यवस्था नहीं होने से उनका उत्साह ठंडा पड़ रहा है. जीविका बीपीएम अखिलेश कुमार अताते हैं कि इन महिलाओं को यथासंभव सहायता उपलब्ध करायी जा रही है और उन्हें मेलों में स्टॉल उपलब्ध कराये जा रहे हैं.
क्या कहती है महिलाएं :
‘’लहठी चूड़ी बना कर गांव की महिलाएं आर्थिक रूप से सुदृढ़ हो रही है. इन महिलाओं द्वारा उत्पादित लहठी-चूड़ी की बिक्री केंद्र खोलने की व्यवस्था करने अथवा मार्केटिंग की व्यवस्था कर दी जाय तो बात ही दूसरी होती. महिलाएं जितनी चूडि़यां बतानी है, वह नहीं बिक पाने के कारण स्टॉक में पड़ी रह जाती है. चूडि़यां बिकेंगी तभी उन्हें मुनाफा मिल पायेगा.’’
रिंकु कुमारी, कल्याणी जीविका महिला चूड़ी उत्पादन समूह की सदस्य

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