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नालंदा :बड़गांव में सांब ने की थी साधना और दिया था अर्घ, जानें पूरी कहानी

राम विलास नालंदा : बड़गांव सूर्योपासना के लिए सदियों से आस्था का प्रमुख केंद्र है. धार्मिक दृष्टिकोण से इसका बहुत महत्व है. नालंदा प्रागैतिहासिक काल से ही भगवान सूर्य की उपासना और अर्घ के लिए महत्वपूर्ण है. देश में कुल 12 प्रमुख सूर्यपीठ हैं. उन्हीं में से एक बड़गांव है. यहां प्रागैतिहासिक कालीन सूर्य तालाब […]

राम विलास
नालंदा : बड़गांव सूर्योपासना के लिए सदियों से आस्था का प्रमुख केंद्र है. धार्मिक दृष्टिकोण से इसका बहुत महत्व है. नालंदा प्रागैतिहासिक काल से ही भगवान सूर्य की उपासना और अर्घ के लिए महत्वपूर्ण है. देश में कुल 12 प्रमुख सूर्यपीठ हैं. उन्हीं में से एक बड़गांव है. यहां प्रागैतिहासिक कालीन सूर्य तालाब है. कहा जाता है कि भगवान भास्कर को अर्घ देने की परंपरा इसी बड़गांव (पुराना नाम बर्राक) से शुरू हुई थी.
यह अब लोक परंपरा बन गयी है. यहां साल में दो बार कार्तिक और चैत मास में छठ पर्व के मौके पर विशाल मेला लगता है. बड़गांव राजगीर से करीब 15 किलोमीटर उत्तर और पटना से 85 किलोमीटर दक्षिण प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय भग्नावशेष के पास है. बड़गांव का सूर्य मंदिर जितना पुराना है, उतना ही इसका धार्मिक महत्व है.
यहां बिहार के अलावा पड़ोसी राज्यों के सूर्य उपासक और छठव्रती लाखों की संख्या में आते हैं. यहां द्वापर काल का सूर्य तालाब है, जिसमें छठव्रती अर्घदान और सूर्य मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं. कहा जाता है कि इस परंपरा के अधिष्ठाता भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र राजा सांब हैं. महर्षि दुर्वासा के श्राप से उन्हें कुष्ट रोग हो गया था.
भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें बर्राक (बड़गांव) में सूर्य उपासना करने पर रोग से मुक्ति का मार्ग बताया था. पिता के बताये अनुसार राजा सांब बर्राक पहुंचे, लेकिन यहां सूर्योपासना कराने वाले पुरोहित नहीं थे. कृष्णायन ग्रंथ के अनुसार सांब ने मध्य एशिया के क्रौंचद्वीप से पूजा कराने के लिए ब्राह्मण बुलाया था.
वाचस्पति संहिता के अनुसार 49 दिनों तक बर्राक (बड़गांव) में सूर्य उपासना, साधना और अर्घदान के बाद राजा सांब को कुष्ट से मुक्ति मिली थी. कहा जाता है कि द्वापर काल में बड़गांव सूर्य तालाब के मध्य में दो कुंड थे. एक दूध से भरा होता था, दूसरा जल से.
सरोवर में अर्घ दिये जाते थे. दोनों कुंड से दूध और जल सूप पर ढारे जाते थे. आज भी सूप पर दूध और जल ढारने की परंपरा है. वह पौराणिक सूर्य तालाब जमीनदोज हो गया है. उसी तालाब के ऊपर एक बड़ा तालाब मौजूद है, जहां सूर्य उपासक स्नान और अर्घदान करते हैं.
सूर्य तालाब के उत्तर-पूरब कोने पर पत्थर का एक मंदिर था. उस मंदिर में भगवान सूर्य की विशाल प्रतिमा थी, उसका निर्माण पाल राजा नारायण पाल ने 10वीं सदी में कराया था. वर्तमान में वह मंदिर अस्तित्व में नहीं है. वह 1934 के भूकंप में ध्वस्त हो गया था. दूसरे स्थान पर बड़गांव में सूर्य मंदिर का निर्माण कराया गया है. इस मंदिर में पुराने मंदिर की सभी प्रतिमाएं स्थापित की गयी हैं. सभी प्रतिमाएं पालकालीन हैं.
किंवदंति है कि जो कोई सच्चे मन से बड़गांव में पूजा, साधना, आराधना और मनौती मांगने आता है, उसकी मनोकामना पूरी होती है. बड़गांव सूर्य तालाब में स्नान करने और भगवान भास्कर की आराधना से चर्म और कुष्ट रोग दूर हो जाते हैं. यहां मुस्लिम समुदाय के लोग भी छठ करने के लिए आते हैं. बड़गांव में छठ की छटा देखने के लिए विदेशी भी बड़ी संख्या में आते हैं.

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