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पारू थाना पर तिरंगा फहराते हुए शहीद हुए थे तीन क्रांतिकारी

पारू थाना पर तिरंगा फहराते हुए शहीद हुए थे तीन क्रांतिकारी

22 अगस्त, 1942 को पारू थाना पर आंदोलनकारियों पर चलायी गयी गोली

क्रांतिकारी अनुराग सिंह, योद्धा सिंह और छकौड़ी लाल साह ने दी थी शहादत

तीन क्रांतिकारियों की शहादत पर विशेष

उपमुख्य संवाददाता, मुजफ्फरपुर. 1942 की अगस्त क्रांति में उत्तर बिहार के कई क्रांतिवीरों ने देश की आजादी के लिये अपने प्राणों को उत्सर्ग कर दिया. स्वतंत्रता आंदोलन की गति को तेज करने के लिये मुजफ्फरपुर के सभी प्रखंडों में क्रांतिवीरों ने अपने शौर्य का परिचय देकर अंग्रेज सैनिकों की होश उड़ा दी. इसी क्रम में 22 अगस्त को पारू थाना पर रघुनाथपुर के श्रीधर शर्मा, कमलपुरा के शिवमंगल शर्मा, मझौलिया के शमसुल होदा व लाल मोहम्मद, गरीबा के मधुमंगल शर्मा, भगवानपुर सेमरा के गंगा साह, काजी मोहम्मदपुर के शेख रहमतुल्लाह, कटारू के रुचा दूबे सहित दाउदपुर,कुबौली, रतवारा समेत कई गांवों से हजारों की संख्या में आंदोलनकारी हाथ में तिरंगा और भारत मां की जय का नारा लगाते हुए पारू थाना पहुंचे. लगातार आंदोलनकारियों की कार्रवाई को देखते हुये उस दिन कलक्टर एम जेड खान भी पारू थाना पहुंचे और आंदोलनकारियों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया. इस गोलीबारी में तीन आंदोलनकारी अनुराग सिंह, योद्धा सिंह और छकौड़ी लाल साह शहीद हो गये. सैकड़ों की तादाद में लोग जख्मी और घायल हुए. आफाक आजम की पुस्तक ””””””””””””””””मुजफ्फरपुर से”””””””””””””””” में इन क्रांतिकारियों का जिक्र किया गया है. इन्हीं शहीदों के नाम पर पारू थाना के समीप शहीद स्मारक बनाया गया है.

अगस्त क्रांति से आंदोलित हो गये गांवों में युवा

महात्मा गांधी ने 9 अगस्त 1942 को बंबई के ग्वालिया टैंक मैदान में भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की थी. इस आंदोलन में भारत छोड़ो का नारा महात्मा गांधी को समाजवादी विचारधारा वाले स्वतंत्रता सेनानी युसूफ मेहर अली ने दिया था. यह नारा इतना प्रचलित हुआ कि पूरे देश में अंग्रेजी हुकूमत की नींव को हिला कर रख दिया. इस आंदोलन की खबर मिलते ही पूरे जिले में उग्र आंदोलन शुरू हो गया. 12 अगस्त को जिला के लालगंज थाना पर तिरंगा झंडा फहराने गई भीड़ पर गोली चलाये जाने से गांव गांव में आक्रोश उबल पड़ा. सीतामढ़ी स्टेशन से स्वराजी रेल गाड़ी चली, सभी स्टेशन पर छात्रों के झुंड चढ़ जाते और अगले स्टेशन पर उतर कर बाजार में हड़ताल कराते और स्कूलो में पहुंच कर छात्रों को क्रांति की प्रेरणा देते. इसी वर्ष 15 अगस्त को रतनपुरा, शेरना, ढेमहा, कुशी और कांटी के सैकड़ों लोगों ने कांटी रेलवे स्टेशन की पटरी को फिर से तोड़ दिया. इस कांड में सबसे ज्यादा बहादुरी चतुर्भुज प्रसाद ने दिखायी थी. इसी दिन रेवा रोड में सरैया पुल क्षतिग्रस्त किया गया. यहां पगहिया, रेपुरा और बसंतपुर में सड़कें काटी गयीं और टेलीग्राफ के तार काट दिये गये. 16 अगस्त को मीनापुर थाना पर जुब्बा सहनी के नेतृत्व हो रहे आंदोलन पर वहां के दारोगा लुईस वालर ने गोली चलायी, जिसमें बांगुर सहनी शहीद हो गये. इस जुल्म से आक्रोशित होकर जुब्बा सहनी और उनके साथियों ने दारोगा लुईस वालर को पकड़ कर थाने में जिंदा जला दिया. इस इल्जाम में जुब्बा सहनी को भागलपुर जेल में 11 मार्च 1944 को फांसी दी गयी.

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