16.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

देश की आजादी के लिए क्रांतिकारियों ने किया था प्राणों को न्योछावर

The revolutionaries sacrificed their lives for the freedom

भारत छोड़ो आंदोलन दिवस पर विशेष

मुजफ्फरपुर. 1857 से 1947 तक के स्वतंत्रता संग्राम में देश के कई वीरों ने आजादी के सपने को पूरा करने के लिए कुर्बानी दी. आजादी के दीवाने वारिस अली, खुदीराम बोस, सरदार भगत सिह, राजगुरु, सुखदेव, बैकुंठ शुक्ल, भगवान लाल जैसे कई वीरों ने भारत माता के लिए अपने प्राण न्योछावर किये तो कई सेनानियों ने देश की आजादी के लिए जीवन भर संघर्ष किया और आधी उम्र जेल में बिताई. इनका सपना बस एक ही था कि देश को अंग्रेजों से आजादी मिले. खुदीराम बोस ने जब 1908 को स्वतंत्रता आंदाेलन का पहला बम धमाका किया तो लोगों में सुप्त पड़ी देशभक्ति की भावना जाग गयी और इनसे प्रेरणा लेकर कई नौजवान देश को आजाद कराने के लिए स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गये. इन क्रांतिकारियों के एक्शन का ही असर था कि आठ अगस्त, 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई. इस मौके पर पढ़िए उत्तर बिहार के दो प्रमुख क्रांतिकारी योगेंद्र शुक्ला और बैकुंठ शुक्ला के योगदान पर रिपोर्ट :

बैकुंठ शुक्ल ने देश की गद्दारों के साथ लिया था

बदला

अमर शहीद बैकुंठ शुक्ल ने देश की आजादी के लिये अपने प्राणों की आहूति दी थी. इनका जन्म 15 मई 1907 को मुजफ्फरपुर (वर्तमान वैशाली जिला) के जलालपुर, लगना गांव में हुआ था. इनके पिता का नाम रामबिहारी शुक्ल था. बैकुंठ शुक्ल 10वीं तक शिक्षा प्राप्त की थी. इनका विवाह सारण के गड़रवा के मोहम्मदपुर गांव की राधिका से 11 मई1927 को हुआ. यह अपने ग्रामीण महान स्वतंत्रता सेनानी योगेंद्र शुक्ल के संपर्क में आकर स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए. 1926 के बाद चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह हाजीपुर के गांधी आश्रम पहुंचे. यहीं पर बैकुंठ शुक्ल की भेंट इन महान क्रांतिकारियों से हुई उसके बाद वह इनके सक्रिय सहयोगी बन गये. एक तरफ महात्मा गांधी के नेतृत्व में अहिंसा के रास्ते आंदोलन चल रहा था, वहीं दूसरी तरफ चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी एक्शन पर यकीन रखते थे. बैकुंठ शुक्ल भी इन्हीें विचारों को मानने वाले थे. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव पर अंग्रेजी सत्ता उलटाने का अभियोग लगाकर 23 मार्च 1931 को लाहौर में फांसी दे दी गयी. इस कांड के मुख्य सरकारी गवाह फनींद्र नाथ घोष थे, इनकी गवाही को आधार बनाकर भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी दी गई थी. बाद में अंग्रेजी हुकुमत ने सरकारी संरक्षण में फणींद्र नाथ घोष को चंपारण के बेतिया शहर के मीना बाजार में एक दुकान खुलवा दिया. बैकुंठ शुक्ल को जब मालूम हुआ की गद्दार फणींद्र नाथ घोष बेतिया में व्यापार कर रहा है तो अपने साथी चंद्रमा सिंह के साथ 9 नवंबर, 1932 को बेतिया पहुंचे. वही पर बैकुंठ शुक्ल ने कुल्हाड़ी से काट कर उसकी हत्या कर दी. छह जुलाई 1932 को वह गिरफ्तार हुये. इतिहासकार आफाक आजम कहते हैं कि बैकुंठ शुक्ल का मुकदमा मुजफ्फरपुर के सत्र न्यायधीश टी लूवी की अदालत में शुरू हुआ. इस मुकदमे का ट्रायल मोतीहारी जेल में हुआ. साक्ष्य के अभाव में चंद्रमा सिंह बरी किये गये और बैकुंठ शुक्ल को फांसी की सजा सुनाई गयी. इस फैसले के खिलाफ बैकुंठ शुक्ल ने पटना उच्च न्यायलय में अपील दायर किया लेकिन वहां भी निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए फांसी की सजा बहाल रखी. 27 साल की उम्र में 14 मई 1934 को गया जेल में उन्हें फांसी दे दी गयी. योगेंद्र शुक्ल के रिश्ते में भतीजे अधिवक्ता अरुण कुमार शुक्ला ने कहा कि बैरिया बस स्टैंड का नाम शहीद बैंकुंठ शुक्ल के नाम पर तो हो गया है, लेकिन

गया जी जेल का नाम

अभी तक उनके नाम पर नहीं रखा गया है. इसके लिये हमलोगों की लड़ाई जारी है.

16 साल जेल में रहे योगेंद्र शुक्ला, गांधी जी बुलाते थे योगीराज

किसान परिवार में जन्में योगेंद्र शुक्ला उन महान स्वतंत्रता सेनानियों में से हैं, जिन्होंने देशभक्ति और समाजवाद से कभी समझौता नहीं किया. इनका जन्म 1896 में मुजफ्फरपुर के जलालपुर, लंगना गांव (वर्तमान जिला वैशाली) में हुआ था. इनके पिता का नाम गण्णू शुक्ला एवं उनके दो छोटे भाई युगल किशोर शुक्ला और जुमेश्वर शुक्ला थे. इन्होंने प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव से प्राप्त कर बीबी कॉलेजियेट स्कूल में दाखिला लिया. यहीं पर वह स्वतंत्रता सेनानियों के संपर्क में आयें. आचार्य कृपलानी से प्रभावित होकर समाजवादी विचारधारा के समर्थक हो गये. महात्मा गांधी से इनकी भेंट यहीं हुई. उसके बाद यह स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हो गये. वह साबरमती आश्रम में भी जाकर गांधीजी के साथ रहे. गांधीजी उन्हें प्यार से योगीराज कहते थे. योगेंद्र शुक्ला महान क्रांतिकारी भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के निकटतम सहयोगी रहे. वह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के संस्थापक सदस्यों में से एक थे. अंग्रेजी हुकूमत ने अक्टूबर 1932 में योगेंद्र शुक्ला का नाम क्रांतिकारियों की सूची में डाल दिया. इस सूची में बसावन सिंह, श्यामनंदन नारायण, ईश्वर दयाल सिंह, केदारमणि शुक्ला जैसे अनेक स्वतंत्रता सेनानियों का नाम था. इस मामले में योगेंद्र शुक्ला को दिसंबर 1932 में सजा सुनायी गयी और उन्हें कालापानी, सेल्यूलर जेल, अंडमान-निकोबार भेज दिया गया. इस जेल में उन्हें और उनके साथियों के साथ अमानवीय व्यवहार करके प्रताड़ित किया जाता रहा. तंग आकर उन्होंने वहां भूख हड़ताल शुरू कर दी. अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें वापस हजारीबाग जेल भेज दिया. जेल से रिहाई के बाद उन्होंने कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर लिया, उन्हें मुजफ्फरपुर जिला कांग्रेस का उपाध्यक्ष बनाया गया. कुछ समय बाद जयप्रकाश नारायण और अन्य समाजवादियों के साथ मिलकर कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया. स्वतंत्रता आंदोलन में लगातार सक्रिय रहने के कारण फिर गिरफ्तार किये गये. तब इन्हें हजारीबाग जेल में रखा गया. 1942 में बीमार जयप्रकाश नारायण को लेकर अपने साथियों के साथ जेल की दीवार कूद कर फरार हो गये. बाद में फिर गिरफ्तार हुये और 1946 में रिहा किये गये. अपने जीवन के 16 साल से ज्यादा जेल में गुजारे. 1958 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के तरफ से बिहार विधान परिषद् के सदस्य चुने गए, इस पद पर वह 1960 तक रहे. बाद में उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा. पटना मेडिकल कॉलेज में इलाज चलता रहा. 11 नवंबर 1966 को उनकी मृत्यु हो गयी.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

Vinay Kumar
Vinay Kumar
I am working as a deputy chief reporter at Prabhat Khabar muzaffarpur. My writing focuses on political, social, and current topics.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel