:: लीची जैसी फसल की खेती के लिये जिले में उपयुक्त पायी गयी मिट्टी :: राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र ने रिसर्च के बाद विकसित किया ग्राफ्टेड पौधा :: पौधा लगाने के तीन साल बाद ही पेड़ों पर आ जायेगा फल उपमुख्य संवाददाता, मुजफ्फरपुर जिले में अब थाइलैंड और वियतनाम की तर्ज पर लौंगन की खेती की जायेगी. यह फसल लीची जैसी होती है. इसका उत्पादन लीची की समाप्ति के बाद जुलाई और अगस्त में होता है. राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र ने रिसर्च कर मुजफ्फरपुर की भूमि को इस फसल के लिये उपयुक्त पाया है. वैसे तो पौधा लगाने के बाद फसल होने में करीब पांच से सात साल लग जाते हैं, लेकिन अनुसंधान केंद्र में लौंगन का ग्राफ्टेड पौधा विकसित किया है. इस पौधे से तीन साल में ही वृक्ष तैयार हो जायेगा और लौंगन की फसल होने लगेगी. एक पेड़ से करीब एक सौ किलो फसल होने की संभावना व्यक्त की जा रही है. यहां इस फल के पौधे की नर्सरी विकसित की गयी है. इच्छुक किसान यहां से पौधे लेकर खेतों में लगा सकते हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि लौंगन की खेती लीची के साथ मिश्रित खेती के रूप में भी की जा सकती है, जिससे किसानों को साल भर आय मिले. लौंगन के पेड़ों में अप्रैल में फूल आते हैं और फल जुलाई के अंत से अगस्त के पहले सप्ताह तक पक कर तैयार हो जाते हैं. इस फसल को लेकर किसान उत्साहित हैं. आने वाले समय में लीची के साथ इसकी खेती की जायेगी.किसानों को खेती का दिया जायेगा प्रशिक्षण लौंगन की खेती के लिये राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र में किसानों को प्रशिक्षित किया जायेगा. देश और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसकी मार्केटिंग की भी तैयारी की जायेगी. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि इस फल में विटामिन सी, प्रोटीन और एंटी-ऑक्सीडेंट्स प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं, जो इसे लीची से भी अधिक पौष्टिक बनाते हैं. इसे औषधीय गुणों और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए भी जाना जाता है. इसकी मांग अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बढ़ रही है और इसे जैम, शरबत और अन्य पेय पदार्थों के लिए भी उपयोग किया जा रहा है. लौंगन का पौधा लगाने वाले किसान बबलू शाही ने कहा कि लौंगन की खेती की शुरुआत कर रहे हैं. फसल अच्छी हुई तो इसका विस्तार करेंगे. राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ विकास दास ने कहा कि लौंगन की नर्सरी विकसित की गयी है. यहां की भूमि इसकी खेती के लिये उपयुक्त है. इससे किसानों की आय बढ़ेगी.
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