हैल्लो… तुम्हारा बेटा रेप केस में पकड़ा गया है. फाइल तैयार हो गई है. अगर मामला खत्म करना चाहते हो तो चालान भरना पड़ेगा… और इस तरह लोग डर कर चालान भर देते हैं और साइबर अपराधियों के जाल में फंस जाते हैं. साइबर ठग कुछ इस तरह लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं. इस तरह के फोन कॉल के माध्यम से लोगों को डरा धमका कर उनसे उनकी मेहनत की कमाई लूट रहे हैं. अगर आपके पास भी इस तरह के कॉल आते हैं तो सतर्क हो जाएं. इस खबर को पढ़ें और समझें कि कैसे आजकल साइबर ठग लोगों की कमाई पर हाथ साफ कर रहे हैं.
ठगी की इस तकनीक को साइबर क्राइम की भाषा में डिजिटल अरेस्ट या डिजिटल हाउस अरेस्ट कहते हैं. आइए, डिजिटल हाउस अरेस्ट को आसान भाषा में समझते हैं और जानते हैं कि आखिर कैसे हम इस तरह के फ्रॉड को पहचानें और अगर गलती से हम इसके शिकार हो गए हैं तो हमे क्या करना चाहिए? इन सब को लेकर हमने साइबर अधिवक्ता अनिकेत पीयूष से बातचीत की है. अनिकेत ने बताया…
क्या है डिजिटल हाउस अरेस्ट?
डिजिटल हाउस अरेस्ट ऑनलाइन ठगी का एक ऐसा तरीका है, जिसमें साइबर अपराधी पीड़ितों को धोखा देने के लिए उनको नकली पुलिस स्टेशन, नकली पुलिस पदाधिकारी और नकली सीबीआइ ऑफिसर बनकर ऑडियो या वीडियो कॉल करता है. AI की मदद से जेनरेटेड आवाज से पीड़ितों को डराते-धमकाते हैं. पीड़ितों को कहा जाता है कि आपका बेटा रेप या ड्रग्स केस में पकड़ा गया है. उसको छुड़ाना चाहते हो तो इतने रुपये देना होगा. डराने के लिए बैकग्राउंड में पिटाई जैसी आवाज फोन कॉल पर सुनाई देती है. ऐसे में पीड़ित डर जाता है और साइबर अपराधी के बताए यूपीआइ आइडी पर रुपये भेज देता है.
इससे पहले कि हम डिजिटल हाउस अरेस्ट को और विस्तार से समझें, यहां यह जान लेना बहुत जरूरी है कि कानून में इस तरह का कोई शब्द नहीं है. डिजिटल अरेस्ट साइबर अपराधियों के द्वारा इस्तेमाल की जाने वाला एक टर्म है.
डिजिटल अरेस्ट दो शब्दों से मिल कर बना है. इसका मतलब होता है ऑनलाइन माध्यम से ठगों द्वारा गिरफ्तार होना या उसके जाल में फंसना. इसमें फंसे हुए व्यक्ति को डरा कर, धमकी देकर या लालच देकर घंटों या कई दिनों तक कैमरे के सामने बने रहने के लिए मजबूर किया जाता है, जिससे वह घबराहट में ठगों को अपनी कई निजी जानकारी दे देता है. इसी का इस्तेमाल कर पीड़ित के अकाउंट से पैसा निकालना, उसके नाम से फर्जी काम करना या पैसे ट्रांसफर कराने जैसे ठगी को अंजाम दिया जाता है.
डिजिटल अरेस्ट इन दिनों इतना बढ़ गया है जिसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि सिर्फ बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में बीते आठ महीने में 120 से अधिक लोगों को साइबर अपराधियों ने डिजिटली अरेस्ट करके दो करोड़ से अधिक रुपये की ठगी कर ली. मुजफ्फरपुर में डिजिटल अरेस्ट कर ठगी करने का सबस बड़ा मामला जुलाई 2024 में सामने आया था, जिसमें ठगों ने एक व्यवसायी से करीब 90 लाख रुपए ठग लिए थे. पढ़िए इस मामले को…
थाने में प्राथमिकी दर्ज कराते हुए पीड़ित ने बताया, “आठ जुलाई 2024 को मैं अपने मित्र के घर गया था. यहां मुझे एक नंबर से आइवीआर कॉल आया. उसमें सूचना दी गयी कि मेरे नंबर की सेवा समाप्त हाे रही है. अधिक जानकारी और ग्राहक सेवा अधिकारी से बात करने के लिए नौ दबाएं. नौ दबाते ही कॉल एक व्यक्ति ने उठाया. उसने अपने आप को ट्राई का अधिकारी बताया. कहा कि दो घंटे बाद मेरा नंबर बंद कर दिया जाएगा. साथ ही मेरे आधार नंबर से दूसरी सिम जारी होने की बात भी कही. उस सिम से अवैध मैसेज भेजा जा रहा है और उसको लेकर मुंबई के तिलक नगर थाने में प्राथमिकी दर्ज हुई है. बातचीत के दौरान उसने मुझे झांसे में लेकर कॉल को दूसरे नंबर पर ट्रांसफर कर दिया. इसके बाद मेरे वाट्सएप पर एक वीडियो कॉल आया और पुलिस की वर्दी पहने एक व्यक्ति ने अपने आप को मुंबई के तिलक नगर थाने का पदाधिकारी बताकर मेरा बयान दर्ज किया. कथित पुलिस अधिकारी ने मुझे यह बताया कि मेरे आधार कार्ड का उपयोग कर केनरा बैंक में एक अकाउंट खोला गया है. उस बैंक खाता का इस्तेमाल किसी नरेश गोयल मनी लांड्रिंग केस के लिए किया गया है. इसमें ढाई करोड़ का अवैध लेनदेन हुआ है. उसी केस में मेरे (दिनेश कुमार के) नाम से सुप्रीम कोर्ट से अरेस्ट वारंट जारी हुआ है. मुझे तिलक नगर थाने में उपस्थित होने को कहा गया. जब मैंने मुंबई आने में असमर्थता जताई तो कहा कि जो ट्रांजेक्शन मेरे केनरा बैंक के खाते से हुआ है. उसका सत्यापन करवाना होगा. इसके लिए उसने एक लिंक भेजा. इसपर क्लिक करते ही मुझे एक पीडीएफ प्राप्त हुआ. इसके अतिरिक्त नरेश गोयल मनी लांड्रिंग केस से संबंधित एक डॉक्यूमेंट भी भेजा. कानूनी कार्रवाई और अरेस्ट वारंट का भय दिखाकर उस अधिकारी ने 247 बैंक खातों की सूची भेजी. इसमें से कुछ बैंक खातों में मुझसे कुल 89 लाख 90 हजार रुपये ट्रांसफर करवा लिया. प्रत्येक ट्रांजेक्शन के बाद मुझे साइबर ठग इडी विभाग का एक रशिद भेजता था. पैसा लेने के बाद से उससे संपर्क नहीं हुआ तो मुझे ठगी का एहसास हुआ. फिर मैंने साइबर क्राइम पोर्टल और थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई.“
डिजिटल अरेस्ट को कैसे पहचानें?
यदि आपको भी कभी अंजान नंबर से फोन आता है तो सतर्क हो जाएं. यह ठग की चाल भी हो सकती है. हालांकि, आपको घबराने की जरूरत नहीं है. फोन कॉल आपके परिचय वालों की भी हो सकती है. ऐसे समय में आपको खुद टेस्ट लेना होगा कि यह कॉल फ्रॉड है या नहीं. कुछ तरीके नीचे दिए गए हैं, जो अक्सर साइबर ठग डिजिटल अरेस्ट को अंजाम देने के लिए प्रयोग में लाते हैं. इसे ध्यान से पढ़ें और तरीके को याद रखें…
– फोन पर अनजान नंबर से व्हाट्सएप/ साधारण कॉल आता है.
– कॉल के प्रोफाइल पिक्चर में अक्सर आपको पुलिस स्टेशन जैसा बैकग्राउंड दिखाई देता है. साथ ही वर्दी पहने हुए अधिकारी की फोटो लगी रहती है.
– फोन पर आपको घर के किसी सदस्य के ड्रग्स या रेप जैसे केस में फंसे होने का डर दिखाया जाता है.
– इसके बाद डरा कर धमका कर वह आपको आपके ही घर में एक तरीके से कैद कर लेते हैं. इस दौरान वह ऑनलाइन मॉनिटरिंग करते हैं.
– बैंक अकाउंट सीज जैसी धमकी दी जाती है.
– पीड़ित को डराने लिए बैकग्राउंड से बच्चे को पीटने व चिल्लाने जैसी आवाज भी सुनाई देती है.
– इसके बाद डमी अकाउंट में पीड़ित से पैसे का ट्रांजेक्शन करवाया जाता है.
इसके अलावा भी कई तरीके हैं, जो साइबर ठग डिजिटल अरेस्ट के लिए प्रयोग में लाते हैं. अपराधी कॉल पर खुद को पुलिस, नॉरकोटिक्स, साइबर सेल पुलिस, इनकमटैक्स या सीबीआई अधिकारी होने का दावा भी करते हैं. ऐसे दावे के साथ अगर आपके पास फोन आता है तो सतर्क हो जाएं. कोई भी निजी जानकारी फोन पर देने से बचें.
कैसे जानें कि हम डिजिटल अरेस्ट के शिकार हैं?
इस प्रक्रिया की शुरुआत एक रिकॉर्डेड कॉल आने से होती है. इसमें आपके सिम या आधार कार्ड द्वारा अवैध कार्य होने की बात कही जाती है. इसके बात आगे की जानकारी के लिये 9 दबाने को कहा जाता है. अगर आपने 9 दबा दिया तो समझो डिजिटल अरेस्ट के दरवाजे पर पहुंच चुके हो. आगे फिर कोई खुद को अधिकारी होने का दावा कर के आपको डराएगा या धमकाएगा. फिर आपको किसी एक रूम में खुद को बंद कर लेने की बात कहेगा. यदि डरकर आप उसकी बात मानते हैं और वह जैसा कहता है वैसा करते हैं तो समझिये आप डिजिटल हाउस अरेस्ट के शिकार हो चुके हैं.
डिजिटल अरेस्ट के तुरंत बाद क्या करें? कहां से मिलेगी मदद?
डिजिटल अरेस्ट के चंगुल में फंसे लोग अक्सर यह चाहते हैं कि कैसे भी हो यह मामला घर के बाहर नहीं जाना चाहिए. समाज में उनकी छवि खराब हो सकती है. इसलिए पीड़ित किसी से साझा करने से डरता है. साथ ही वह इसकी शिकायत भी नहीं करना चाहता है. लेकिन, हमें इन सब चिजों से बचना है. ऐसा ही एक मामला मुजफ्फरपुर में देखने को मिला था जब साइबर अपराधियों ने एक प्रोफेसर की पत्नी को डिजिटल अरेस्ट कर लिया था. सीबीआइ का अधिकारी बनकर साइबर अपराधी महिला को कॉल किया. बोला कि एक टैटू वाली महिला की तलाश है. उससे आपका चेहरा मिलता है. फिर, उनको डरा धमका कर कमरा बंद करवा लिया. टैटू दिखाने के लिए कपड़े उतारने को कहा. रोने की आवाज सुनकर परिवार के सदस्यों ने दरवाजा तोड़कर उसकी जान बचायी थी. अगर ऐसी डिजिटल अरेस्ट की स्थिति में आप हैं या कभी पड़ जाते हैं तो घबराएं नहीं. डरना बिल्कुल भी नहीं है. यहां से आप मदद ले सकते हैं…
- सबसे पहले 1930, जो राष्ट्रीय साइबर अपराध हेल्पलाइन नंबर है. इस टॉल फ्री नंबर पर साइबर अपराधों की शिकायत की जा सकती है. यहां आपको हर संभव मदद की जाएगी. यहां शिकायत करने का फायदा यह होगा की अधिकारी तुरंत जो आपने पैसे भेजे हैं. उस अकाउंट को फ्रिज करवा देगी. जिससे आपका पैसा सुरक्षित हो जाएगा. आप टॉल फ्री नंबर के साथ इसके आधिकारिक वेबसाइट cybercrime.gov.in पर भी शिकायत दर्ज करा सकते हैं.
- sancharsaathi.gov.in पर जाकर आप उस नंबर के खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकते हैं, जिस नंबर से आपके साथ ठगी हुई है.
- इसके अलावा आप अपने नजदीकी थाने/साइबर थाने में मामले की शिकायत दर्ज करवा सकते हैं.
डिजिटल अरेस्ट से बचने के तरीके
डिजिटल अरेस्ट के तरीके अब धीरे-धीरे बदल भी रहे हैं. ऐसे में हमें और सतर्क रहने की जरूरत है. आप कुछ बातों का ध्यान रख कर इससे बच सकते हैं…
– किसी अंजान नंबर से व्हाट्सएप कॉल आये तो उसे न रिसीव करें.
– अगर कॉल उठा लेते हैं और सामने से यदि आपके बच्चे की गिरफ्तारी की बात कहता है तो पैसा ट्रांसफर करने से पहले अपने बच्चे से बात करें.
– अगर ड्रग्स केस में फंसने या पार्सल पकड़ाने की बात कहता है तो रुपये ट्रांसफर करने से पहले संबंधित विभाग के अधिकारी से बात करें.
– अगर ऐसा कॉल आता है तो घबराएं नहीं, तुरंत साइबर हेल्पलाइन नंबर 1930 पर जानकारी दें.
– सबसे आसान तरीका है आप कॉल डिस्कनेक्ट कर दें.
– इसके अलावा आप खुद से क्रॉस चेक कर सकते हैं. ठग को गलत जानकारी दे कर.
– जमानत के नाम पर डरकर अपना ओटीपी किसी अनजान को शेयर न करें.
– किसी भी अनजान के खाते या यूपीआइ अकाउंट में रुपये जमा न करें.
– किसी के कहने पर कोई भी एप डाउनलोड न करें.
– डिजिटल अरेस्ट के झांसे में आने पर साइबर अपराधी रोजाना व्हाट्सएप नंबर पर हाजिरी लगवाते हैं. इस तरह के कोई फोन आए तो नजदीकी थाने को सूचना दें.
जो लोग कीपैड फोन का इस्तेमाल करते हैं या इंटरनेट की दुनिया से दूर हैं, ऐसा माना जाता है कि वह कुछ हद तक डिजिटल अरेस्ट की जाल से सुरक्षित हैं. वे भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं हैं.
लोगों से अपील
डिजिटल अरेस्ट के बढ़ते मामले को देखते हुए मुजफ्फरपुर साइबर डीएसपी सीमा देवी ने लोगों से अपील की है. उन्होंने कहा कि किसी भी राष्ट्रीय जांच एजेंसी या फिर पुलिस के नाम पर आपको ऑडियो या वीडियो कॉल आये तो उसको एंटरटेन ना करें. रेप, ड्रग्स समेत किसी भी तरह के केस में आपके बेटे या करीबी रिश्तेदार को पकड़ाने की बात कहें तो झांसे में ना आये. कोई भी पुलिस या राष्ट्रीय जांच एजेंसी के पदाधिकारी किसी भी आदमी को कॉल नहीं करता है. अगर इस तरह का फोन आये तो तुरंत नजदीकी थाने या फिर साइबर थाने में शिकायत दर्ज कराएं.
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