मुजफ्फरपुर
नया टोला स्थित थियोसोफिकल लॉज में दो दिवसीय बज्जिका पेंटिंग कार्यशाला का आयोजन किया गया. उदघाटन सुजनी कला के लिए पद्मश्री से सम्मानित निर्मला देवी ने किया.दिल्ली से आयी बज्जिका पेंटिंग की कलाकार कंचन प्रकाश, चितरंजन सिन्हा कनक, बज्जिका इतिहासकार उदय नारायण सिंह, केदार प्रसाद गुप्ता, आचार्य चंद्रकिशोर पराशर, डॉ पुष्पा गुप्ता, डॉ उषा किरण, मधुमंगल ठाकुर, डॉ हरि किशोर प्रसाद सिंह, संजू ने अपने विचार रखे. मुख्य अतिथि उदय नारायण सिंह ने कहा कहा बज्जिका पेंटिंग का संबंध प्रागैतिहासिक काल से है. उस समय लोग अपनी गुफाओं की पहचान के लिए इसके बाहर चित्र बनाते थे. समयानुसार कबीलों से होते हुए यह कला पहचान बनी.वैशाली और चेचर की पुरातात्विक खुदाई से प्राप्त मिट्टी के बर्तनों पर विभिन्न प्रकार की कला कृति मिली. कलाकृतियां आज बज्जि पेंटिंग के नाम से जानी जा रही है. इस बज्जि पेंटिंग को पुनर्जीवित करने का श्रेय शहर की बेटी कंचन प्रकाश को जाता है. इनकी पेंटिंग भारत के संग्रहालय की ही शोभा नहीं है, बल्कि इटली, फ्रांस व बेल्जियम के संग्रहालय को भी चार चांद लगा रही है. चित्तरंजन सिन्हा ने कहा कि वह दिन दूर नहीं, जब बज्जि पेंटिंग अपना खोया सम्मान प्राप्त करेगा. केदार प्रसाद गुप्ता ने कहा अब बज्जिका व बज्जि पेंटिंग ने रफ्तार पकड़ ली है, यह किसी से रूकने वाला नहीं है. आचार्य चंद्रकिशोर पराशर ने कहा कि कंचन प्रकाश द्वारा यह एक अच्छी शुरुआत है. निश्चित रूप से इससे बज्जिका व बज्जि पेंटिंग देश ही नहीं विदेशों में भी जानी जायेगी. मौके पर बज्जिका विकास मंच के गणेश प्रसाद सिंह मुख्य रूप से मौजूद थे.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

