मुजफ्फरपुर/बेतिया : पश्चिम चंपारण के एक छोटे-से गांव हरसरी के युवा रवि प्रकाश ने दुनिया में भारत का सिर ऊंचा किया है. रवि प्रकाश ने 25,000 डॉलर (करीब 18 लाख रुपये) का ‘ब्रिक्स-यूथ इनोवेटिव अवॉर्ड’ जीता है. आइसीएआर-नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट, बेंगलुरु (एनडीआरआइ) के पीएचडी छात्र रवि को यह पुरस्कार कच्चे दूध को अत्यधिक ठंडा करने वाली स्वदेशी तकनीक के आविष्कार के लिए मिला है.
रवि के नैनो फ्ल्यूड बकेट आविष्कार की कहानी ‘प्रभात खबर’ ने एक अगस्त, 2019 को पहले पेज पर प्रकाशित की थी. इस बकेट में दूध रखने पर महीनों खराब नहीं होता है. रवि प्रकाश चौथे ब्रिक्स- युवा वैज्ञानिक मंच, 2019 के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की ओर से ब्राजील भेजे गये 21 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे. विभाग ने एक फेसबुक पोस्ट में कहा कि मंच में भारत ने 25,000 डॉलर का प्रथम पुरस्कार जीता. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने ट्वीट किया, ‘भारत ने ब्राजील में छह से आठ नवंबर, 2019 के दौरान ब्रिक्स युवा वैज्ञानिक मंच के सम्मेलन में प्रथम पुरस्कार जीता.
आइसीएआर-एनडीआरआइ के पीएचडी छात्र रवि प्रकाश को यह पुरस्कार मिला.’ इस टेक्नोलॉजी के जरिये कच्चे दूध का तापमान आधे घंटे में 37 डिग्री सेल्सियस से सात डिग्री सेल्सियस किया जा सकता है. इससे दूध का स्टोरेज करके दूरदराज इलाकों में जरूरत के हिसाब से भेजा जा सकता है.
नरकटियागंज के निकट हरसरी गांव के अरविंद कुमार द्विवेदी और अरुंधती देवी के पुत्र रवि प्रकाश द्विवेदी को इसी खोज के लिए विज्ञान एवं प्रोद्यौगिकी मंत्रालय ने 10 लाख रुपये की सहायता दी थी. वह राष्ट्रपति के हाथों भी पुरस्कृत हो चुके हैं. आइआइटी, मुंबई में आयोजित इंडिया इनोवेशन ग्रोथ प्रोग्राम में उनके इस आविष्कार का चयन किया गया था.
बोले रवि प्रकाश, किसानों व डेयरी संचालकों को होगा फायदा
रवि प्रकाश ने प्रभात खबर से कहा कि ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान मैंने भारत का प्रतिनिधित्व किया. इस सम्मेलन में ब्राजील, रसिया, इंडिया, चाइना और साउथ अफ्रीका के 20-20 युवा वैज्ञानिकों ने भाग लिया. सम्मेलन के दौरान 100 में से पांच का दोबारा कॉन्टेस्ट हुआ, जिसमें भारत को पहला पुरस्कार मिला.
यह पुरस्कार बायो इकॉनोमी यानी नैनो मेटेरियल से खाद्य पदार्थ को बिना दवा और बीमारी के सुरक्षित रखने की तकनीक विकसित करने को लेकर मिला. मैंने जो तकनीक विकसित की है, उससे दुग्ध उत्पादन करने वाले किसान और डेयरी संचालक को फायदा होगा. जो छोटे स्तर पर दूध का उत्पादन करते हैं, लेकिन रखरखाव के अभाव में वह खराब हो जाता है, वे इसे लंबे समय तक सुरक्षित रख सकते हैं.