जमालपुर. आनंद मार्ग प्रचारक संघ की सांस्कृतिक संस्था रावा की ओर से संध्याकाल में प्रभात संगीत प्रस्तुत की जा रही है. जिसमें कलाकारों द्वारा संस्कृत, अंग्रेजी, बांग्ला, हिंदी और अन्य भाषाओं में संगीत प्रस्तुत किया जाता है. साथ ही प्रभात संगीत पर आधारित नृत्य का भी प्रदर्शन किया जाता है. आनंद मार्ग की सांस्कृतिक संस्था के आचार्य ओंकारेश्वर आनंद अवधूत ने बताया कि आज से लगभग 7000 वर्ष पूर्व भगवान सदाशिव ने सरगम का आविष्कार किया गया. जो मानव मन के सूक्ष्म अभिव्यक्तियों को प्रकट करने का सहज रास्ता खोल दिया था. 14 सितंबर 1982 को झारखंड राज्य के देवघर में आनंद मार्ग के प्रवर्तक भगवान श्री आनंदमूर्ति जी ने प्रथम प्रभात संगीत बंधु हे निए चलो बांग्ला भाषा में दिया. उन्होंने बताया कि 8 वर्ष 1 महीना 7 दिन के छोटे से अवधि में उन्होंने 5018 प्रभात संगीत का अवदान मानव समाज को दिया. आशा के इस गीत को गाकर कितनी जिंदगियां संवर गयी. प्रभात संगीत के भाव, भाषा, छंद, सुर एवं लय का अद्वितीय एवं अतुलनीय है. संस्कृत, बांग्ला, उर्दू, हिंदी, अंगिका, मैथिली, मगही और अंग्रेजी भाषा में प्रस्तुत प्रभात संगीत मानव मन में ईश्वर प्रेम के प्रकाश फैलाने का काम करता है. संगीत साधना में तल्लीन साधक को एक बार प्रभात संगीत रूपी अमृत का स्पर्श पाकर अपनी साधना को सफल करना चाहिए. इस पृथ्वी पर उपस्थित मनुष्य के मन में ईश्वर के लिए उठने वाले हर प्रकार के भाव को सुंदर भाषा में प्रस्तुत कर दिया गया है. उन्होंने कहा कि कोई भी मनुष्य जब पूर्ण भाव से प्रभात संगीत के साथ खड़ा हो जाता है तो रेगिस्तान भी हार हो जाता है. संगीत तथा भक्ति संगीत दोनों को ही रहस्यवाद से प्रेरणा मिलती रहती है. जितनी भी सूक्ष्म तथा देवी अभिव्यक्तियां हैं. वह संगीत के माध्यम से ही अभिव्यक्त हो सकती है. मनुष्य जीवन की यात्रा विशेष कर आध्यात्मिक पगडंडिया प्रभात संगीत के सुर से सुगंधित हो उठता है. संगीत नंदन विज्ञान है और प्रभात संगीत इसी के अंतर्गत आता है. नंदन विज्ञान का अर्थ है दूसरों को आनंद देना और दूसरों से आनंद लेना.
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