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चुनावी संग्राम से मुंगेर में कांग्रेस आउट, भविष्य की राजनीति पर संकट

आजादी के बाद लगभग दो दशक तक मुंगेर कांग्रेस का गढ़ रहा और तत्कालीन मुंगेर ने बिहार को कई बड़े नेता दिए.

मुंगेर विधानसभा चुनाव 2025

राणा गौरी शंकर, मुंगेर

आजादी के बाद लगभग दो दशक तक मुंगेर कांग्रेस का गढ़ रहा और तत्कालीन मुंगेर ने बिहार को कई बड़े नेता दिए. एक ओर जहां मुंगेर के हवेली खड़गपुर से जीतकर पहली बार डॉ श्रीकृष्ण सिंह बिहार के मुख्यमंत्री बने थे. वहीं बिहार कांग्रेस कमेटी के पहले अध्यक्ष नंदकुमार सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह, विधानसभा अध्यक्ष त्रिपुरारी सिंह, राजो सिंह जैसे नेता का यह कार्य क्षेत्र रहा, लेकिन 2025 के इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपनी लुटिया समेट ली, जबकि तीन दशक बाद 2020 में जमालपुर विधानसभा से कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी और अजय कुमार सिंह विधायक बने थे, लेकिन इस बार के चुनाव में जिले के किसी भी विधानसभा में कांग्रेस के प्रत्याशी मैदान में नहीं हैं.

तीन दशक बाद जमालपुर विधानसभा में चखा था जीत का स्वाद

मुंगेर को कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है. आजादी के बाद मुंगेर ने पूरे प्रदेश अर्थात तत्कालीन बिहार और झारखंड का नेतृत्व किया. बिहार केशरी डॉ श्रीकृष्ण सिंह का मुंगेर जहां कर्म स्थल रहा और वे 1952 में हुए बिहार विधानसभा के पहले चुनाव में हवेली खड़गपुर से जीत कर राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने. वहीं तारापुर विधानसभा से बासुकीनाथ राय, मुंगेर से निरापद मुखर्जी और जमालपुर से योगेंद्र महतो जैसे नेता कांग्रेस के विधायक बने थे. यह सिलसिला 1957 और 1962 के चुनाव में भी कायम रहा. 1957 में मुंगेर से कांग्रेस के निरापद मुखर्जी, तारापुर से बासुकीनाथ राय, हवेली खड़गपुर से नरेंद्र सिंह व जमालपुर से योगेंद्र महतो विधायक बने थे, लेकिन 1967 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने कई सीटों को गवां दिया. 1967 में जहां मुंगेर से जनसंघ के रविशचंद्र वर्मा विजयी हुए थे. वहीं तारापुर से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के विजय नारायण प्रशांत, हवेली खड़गपुर से शमशेर जंग बहादुर सिंह एवं जमालपुर से भागवत प्रसाद यादव संसोपा के विधायक बने. इसके बाद से ही मुंगेर जिले में कांग्रेस की स्थिति डगमगाने लगी. मुंगेर विधानसभा में कांग्रेस के अंतिम विधायक 1972 में प्रफुल्ल कुमार मिश्र बने थे, जबकि हवेली खड़गपुर में 1985 में राजेंद्र प्रसाद सिंह कांग्रेस के अंतिम विधायक रहे, लेकिन तारापुर विधानसभा में कांग्रेस ने 1990 में अपना अस्तित्व कायम रखा और कांग्रेस के अंतिम विधायक शकुनी चौधरी बने थे, जबकि जमालपुर विधानसभा का राजनीतिक गणित ने 1967 में ही कांग्रेस पार्टी को विदा कर दिया था.

अजय कुमार सिंह के कार्यों से संतुष्ट नहीं थी जनता

लंबे समय तक जिले में कांग्रेस किसी भी नेता को विधायक नहीं बना पायी. मुंगेर विधानसभा से कई बार पार्टी ने प्रभात कुमार मिश्र को टिकट दिया, लेकिन वे जीत दर्ज नहीं करा पाये. लगभग पांच दशक तक जमालपुर विधानसभा में कांग्रेस के कोई भी विधायक नहीं रहे और जब वर्ष 2020 के चुनाव में महागठबंधन के तहत कांग्रेस ने अजय कुमार सिंह को उम्मीदवार बनाया तो राजनीतिक उठा-पटक के बीच कांग्रेस प्रत्याशी ने विजयी दर्ज की, जो जिले में पार्टी के लिए संजीवनी का काम किया, लेकिन कांग्रेस विधायक का कार्यकलाप क्षेत्र में पार्टी को मजबूती प्रदान नहीं कर पाया, जबकि लंबे समय तक कांग्रेस विधायक ही पार्टी के जिलाध्यक्ष भी रहे. पिछले दिनों जब वोट अधिकार यात्रा के तहत राहुल गांधी मुंगेर पहुंचे थे तो कई स्तर पर कांग्रेस एवं महागठबंधन के लोगों ने विधायक के कार्यों पर नाराजगी व्यक्त की थी. उसी समय से ये माना जा रहा था कि अजय कुमार सिंह को इस बार जमालपुर से उम्मीदवारी पर संकट उत्पन्न होने वाला है और इसी का परिणाम रहा कि कांग्रेस पार्टी ने अपनी जीती हुई सीट सहयोगी दल इंडियन इस्क्लूसिव पार्टी को सौंप दिया. अब हालात यह है कि जिले के चुनावी संग्राम में कांग्रेस का अस्तित्व महागठबंधन के मंच पर झंडा बैनर तक ही सिमट कर रह गया है.

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