मोतिहारी.ऑनलाइन रियल मनी गेमिंग एप की जाल में फंसकर जिले के 30 से 40 प्रतिशत से अधिक टीन एजर्स व यूथ अपना करियर बर्बाद कर रहे हैं. अपने माता- पिता के द्वारा देखे गए डॉक्टर, इंजीनियर, आइएएस व आइपीएस बनाने के सपना पर पानी फेर रहे हैं. आलम यह है कि जिले में 14 से 30 साल के बीच के हर 10 लड़कों में से तीन – चार ऑनलाइन गेमिंग के जाल में फंस चुके हैं. रियल टाइम में ज्यादा- ज्यादा रुपये कमाने की चाह में लड़के अपने मां बाप के अकाउंट खाली कर दे रहे हैं. बर्बाद होने के बाद यूथ के सुसाइड तक पहुंचने की नौबत आ रही है या घर छोड़ ग रहे हैं. बच्चे कम उम्र में हीं हाइपर टेंसन के शिकार हो रहे हैं. इन गेम की लत इतना जकड़ लिया कि कई यूथ गेम में पैसा लगाने के चक्कर में अपराध के दलदल में फंस रहे हैं. साइबर थाने में 2023 से अब तक ऑनलाइन गेमिंग एप के जाल में फंसे 60 से अधिक बच्चों के परिजन पहुंचे हैं. जहां साइबर इंस्पेक्टर राजीव कुमार ने बताया कि बच्चों की काउंसलिंग की थी. इंट्रैक्शन सेशन में 10 में से करीब चार बच्चों ने ऑनलाइन गेम खेलने की बात स्वीकार की थी.
तमिलनाडु में 18 साल से कम उम्र के बच्चे को रियल मनी गेमिंग पर है बैन
तमिलनाडु सरकार ने रियल मनी गेमिंग एप को लेकर एक अध्यादेश जारी किया था. इसमें बताया था रियल मनी गेमिंग प्लेटफॉर्म को रात के 12 बजे से सुबह के पांच बजे तक बंद रखना होगा नाबालिगों के ऑनलाइन रियल मनी गेमिंग एप खेलने पर प्रतिबंध, मेमिग एप के आकाउंट बनाने के लिए यूजर्स का ही केवाइसी, लॉगिन का आधार आधारित सत्यापन का उपयोग, लगातार एक घंटे से अधिक गेम खेलने पर पॉप अप की चेतावनी का मैसेज, खेलने के समय के बारे में हर 30 मिनट पर फिर से मैसेज, कंपनियों को ऑनलाइन गेमिंग नशे की लत हो सकती है चेतावनी देनी होगी. पैसा जमा करें तो एप को उनकी खर्च की लिमिट व पुरानी हिस्ट्री दिखानी होगी.गेमिंग एप में पैसा लगाने को सूद पर देते हैं रुपयेटीन एजर व यूथ को ऑनलाइन गेमिंग एप की लत लगने पर जब पैसा नहीं मिलता है तो उनको रुपये देने के लिए सूदखोर भी उपलब्ध है. यूथ को 10 से 20 रुपये सैकड़ा पर रुपये उपलब्ध करवा देता है. इसके एवज में उनसे सादे स्टाम्प पर दस्तखत लेता है. ऑनलाइन गेमिंग में लगे रुपये की वसूली को लेकर सूदखोर प्रोटेक्शन गैंग का भी सहारा लेते हैं. जब मामला परिजन तक पहुंचता है तो उनको रुपये देना पड़ता है.क्या कहते हैं मनोचिकित्सक
ज्यादातर समय गेम खेलने में बीताने,पढ़ाई में मन नहीं लगना, गेम खेलने की आदत पर नियंत्रण नहीं होना, गेम बंद कराने पर चिखना, समान इधर उधर फेंकना, एनजाइटी व डिप्रेशन के लक्षण आदि सामने आ रहे हैं. इस तरह के लक्षण हो तो चिकित्सक से सलाह लें. कहा कि यहां प्रति सप्ताह चार से पांच 10 से 16 साल के बच्चे काउंसेलिग को पहुंच रहे हैं. ऐसे बच्चों पर अभिभावक भी ध्यान दें.डॉ नरेश यादव, मनोचिकित्सक, मोतिहारीक्या कहते हैं अधिकारी.
ऑनलाइन गेमिंग के चक्कर में बच्चे व यूथ बर्बाद हो रहे हैं. कई परिजन उनके पास अपने बच्चे को लेकर आते हैं. बोलते है कि गेम में पैसा लगाकर अकाउंट खाली कर दे रहा है. माता- पिता अपने बच्चों पर निगरानी रखें.राजीव कुमार, साइबर इंस्पेक्टर
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