मधुबनी.
जिले में कालाजार मरीजों की खोज के लिए विशेष अभियान की शुरुआत 9 जून से होगी. इसके लिए विभाग की ओर से तैयारी शुरू कर दी गयी है. 15 जून तक चलने बाले इस अभियान के लिए आशा कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दिया जाएगा, ताकि आशा कार्यकर्ता घर-घर जाकर कालाजार मरीजों की खोज करेगी. अभियान जिले के 17 प्रखंडों के 37 गांवों में चलाया जाएगा. जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. डीएस सिंह ने बताया कि विभाग हाउस टू हाउस कालाजार, पीकेडीएल और एचआईवी बीएल की जांच के लिए माइक्रो प्लान तैयार कर ली गई है. जिले के 17 प्रखंड में 38 हजार लोगों की जांच की जाएगी. इसके लिए 9500 घरों को चिन्हित किया गया है. अभियान में 37 आशा एवं 38 आशा फैसिलिटेटर , ब्लॉक स्तर के सुपरवाइजर और जिला स्तर के मॉनिटर शामिल होंगे. आशा कार्यकर्ता वर्ष 2022 से अप्रैल 2025 तक के रिपोर्ट के आधार पर उनके घरों के चारों ओर 200 से 250 घरों में संभावित मरीजों की पहचान करेगी. मरीजों की खोज कालाजार प्रभावित प्रखंडों में पूर्व में प्रतिवेदित मरीजों के घर के 500 मीटर के परिधि में होगा. क्षेत्र में अभियान की सफलता के लिए प्रचार-प्रसार किया जाएगा.हर पीएचसी पर मुफ्त जांच की सुविधा उपलब्ध
हर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर कालाजार जांच की निःशुल्क सुविधा उपलब्ध है. कालाजार किट आरके-39 से 10 से 15 मिनट के अंदर टेस्ट हो जाता है. हर सेंटर पर कालाजार के इलाज में विशेष रूप से प्रशिक्षित एमबीबीएस डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मी उपलब्ध हैं.रोगी को मिलता है आर्थिक सहायता
कालाजार से पीड़ित रोगी को मुख्यमंत्री कालाजार राहत योजना के तहत श्रम क्षतिपूर्ति के रूप में आर्थिक सहायता दी जाती है. बीमार व्यक्ति को राज्य सरकार की ओर से 6600 रुपये व केंद्र सरकार की ओर से 500 रुपये दिये जाते हैं. यह राशि बीएल (ब्लड रिलेटेड) कालाजार रोगी को दी जाती है. चमड़ी से जुड़े कालाजार (पीकेडीएल) मरीजों को केंद्र सरकार की ओर से 4000 रुपये दिये जाते हैं.कालाजार के यह है कारण
वीबीडीएस पुरुषोत्तम कुमार ने बताया कि कालाजार मादा फाइबोटोमस अर्जेंटिपस (बालू मक्खी) के काटने से होता है. जो लीशमैनिया परजीवी का वेक्टर या ट्रांसमीटर है. किसी जानवर या मनुष्य को काट कर हटने के बाद उस जानवर या मनुष्य के खून से युक्त है, तो जिसे वह काटेगा. वह व्यक्ति संक्रमित हो जायेगा. इस प्रारंभिक संक्रमण के बाद के महीनों में यह बीमारी और अधिक गंभीर रूप ले सकता है. जिसे आंत में लिशमानियासिस या कालाजार कहा जाता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है