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नवविवाहित दूल्हे का पर्व कोजागरा की तैयारी में जुटे मिथिलावासी

मिथिलांचल का लोक पर्व कोजागरा 16 अक्टूबर को धूमधाम से मनाया जाएगा.

नवविवाहित दूल्हे के घर पहुंचने लगे हैं मेहमान महंगाई के बाद भी मखाना की खूब कर रहे खरीदारी कोजागरा की रात आसमान से होती है अमृत वर्षा मधुबनी . मिथिलांचल का लोक पर्व कोजागरा 16 अक्टूबर को धूमधाम से मनाया जाएगा. मिथिला के नवविवाहित दूल्हों के घर कोजागरा को लेकर उत्सवी माहौल देखा जा रहा है. घरों में दूल्हे के ससुराल से आने वाले भीड़ को लेकर चर्चाएं होनी शुरू हो गयी है. रिश्तेदारों और कुटुंब के आने का सिलसिला भी शुरू हो गया है. वहीं दूसरी ओर कोजागरा को लेकर बाजार में भी चहल-पहल बढ़ गई है. शहर में जहां-तहां मखाना की दुकानें सज चुकी है. लोग बांस का डाला एवं वस्त्र की खरीदारी में व्यस्त हैं. मिथिला की लोक संस्कृति में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. वर के ससुराल से जब सारी सामग्री आ जाती है तो गांव या समाज को आने का न्योता दिया जाता है. वर को ससुराल से आए वस्त्र पहनाए जाते हैं. घर की महिलाएं आंगन में अष्टदल कमल का अरिपन देती हैं. इस पर चुमाओन का डाला रख वर के चुमाओन की विधि पूरी की जाती है. कोजागरा के अवसर पर समाज के लोगों में मखाना-बताशा और पान बांटने की खास परंपरा है. डाला की है विशिष्टता वैसे तो मिथिला में विवाह के अवसर पर डाला सजाकर ही चुमावन किया जाता है, लेकिन कोजागरा का डाला प्रसिद्ध है. अवसर पर लगभग पांच से छह फुट व्यास वाले बांस से बने डाला पर धान, मखाना, पांच नारियल, पांच हत्था केला, छाछ, पान की ढोली, मखाना की माला, जनेऊ, सुपारी, इलायची और अड़ांची से सजा कलात्मक वृक्ष, पांच प्रकार की मिठाई की थाली, छाता, छड़ी व वस्त्र, चाांदी की कौड़ी सहित अन्य सामग्रियों की सजावट देखते ही बनती है. इसी डाला से वर का चुमाओन करने की परंपरा है. बड़ा डाला रहने से इसे 10-10 की संख्या तक महिलाएं उठाकर चुमाओन की विधि संपन्न करती हैं. बाजार में बढ़ी चहल-पहल कोजगरा के समय क्या बड़े व क्या छोटे हर कोई मखाना की खरीदार में जुटे हैं. नव विवाहिता के घरों में भार स्वरूप सामाग्री भेजने के लिए वस्त्र, मखाना, पान, बांस का डाला की खरीदारी एवं मिठाई बनवाने एवं खरीदारी में जुटे हैं. बतादें कि जो मखाना पिछले साल 600 से 800 रुपए बिक रहा था. वह इस साल 1200 से 1800 रुपए बिक रहा है. ऐसे सामान्य मखाना 12 किलो का बैंग की कीमत 950 रूपये, 10 किलो का बैग की कीमत 1150 रूपये, 8 किलो का बैग की कीमत भी 1300 रुपए है. वहीं 7 किलो का बैंग की कीमत 1800 रूपये बिक रहा है. अगर विगत वर्ष की बात करे तो दुर्गा पूजा तक 500 से 620 रुपए प्रति किलो बिकने वाले मखाना का दर कोजगरा के समय 650 से 860 रुपए किलो बिका था. मखाना मिथिला में कोजगारा पर्व के लिए खास है. मखाना-बताशा और पान बांटने की है परंपरा बता दें कि कोजागरा पर्व मुख्य रूप से ब्राह्मण एवं कर्ण कायस्थ समाज में मनाया जाता है. मिथिला के नवविवाहित दूल्हों के घर कोजागरा को लेकर उत्सवी माहौल के साथ ही रिश्तेदार और कुटुंब के आने का सिलसिला भी शुरू हो गया है. कोजागरा पर्व के अवसर पर दूल्हे के ससुराल से पान, मखाना, नारियल, केला आदि सामान भार स्वरूप एवं दूल्हे के लिये नव वस्त्र आदि आता है. जिसके बाद घर के बुजुर्ग मंत्र के साथ दूर्वाक्षत देकर दूल्हे को आशीर्वाद देते है. माता लक्ष्मी की होती है पूजा दरअसल कोजागरा पर्व अश्वनी मास की पूर्णिमा यानी शरद पूर्णिमा को मनाया जाता है. इस दिन प्रदोष काल में माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है. साथ ही नवविवाहित दूल्हे का चुमावन कर नवविवाहिता के समृद्ध और सुखमय जीवन के लिए प्रार्थना की जाती है. इसके बाद लोगों के बीच मखान बतासा आदि बांटे जाते हैं. कोजागरा की रात्रि में जागरण का विशेष महत्व है. कौड़ी खेलने की है परंपरा मान्यता के अनुसार कोजागरा की रात धरती पर माता लक्ष्मी के आगमन के साथ ही आसमान से अमृत वर्षा होती है. विदित हो कि पूरे वर्ष में शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा सबसे अधिक शीतल और प्रकाशमान प्रतीत होता है. शरद पूर्णिमा की शीतल रात में पीसे अरवा चावल के घोल से आंगन में बने अरिपन पर दूल्हे का चुमान ससुराल से आए धान और दूब से किया जाता है. इसके बाद जीजा, साला, देवर और भाभी के बीच कौड़ी का खेल खेला जाता है. नवविवाहितों के यहां जश्न का रहता है माहौल आश्विन की पूर्णिमा यानी शरद पूर्णिमा मिथिला के लिए खास है. इस दिन विशेष पर्व कोजागरा मनाया जाता है. यह बुधवार को है. इसे लेकर उत्साह का माहौल है. चांदनी रात में नवविवाहितों के यहां जश्न का माहौल रहेगा. लोगों में मखाना व पान बांटने के साथ ही कई पारंपरिक आयोजन होंगे. महिलाओं का चलता है हास परिहास इसके बाद वर साला या भावज के साथ चांदी की कौड़ी से पचीसी खेलता है. इस दौरान महिलाओं का हास-परिहास का दृश्य चलता रहता है.अवसर पर वर के सिर पर छाता तान दिया जाता है. उसी समय पांच ब्राह्मण दुर्वाक्षत देकर आशीर्वाद देते हैं. कहीं-कहीं मैथिली गीत-संगीत की भी महफिल सजती है.

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