मधुबनी.
ईंट-भट्ठों की तपती आंच हो, खेतों की कड़ी मेहनत या शहरों की अनदेखी गलियों में पसीना बहाते असंगठित मजदूर. इनके श्रम से समाज की नींव मजबूत होती है, लेकिन जीवन की अनिश्चितता के आगे यह वर्ग अक्सर असहाय रह जाता है. ऐसे में सरकार ने असंगठित मजदूरों की स्वाभाविक मृत्यु पर 50 हजार रुपये सहायता राशि देने का निर्णय, केवल आर्थिक मदद नहीं बल्कि मानवीय संवेदना का प्रतीक बनकर सामने आया है. योजना के तहत पंजीकृत असंगठित मजदूर की स्वाभाविक मृत्यु होने पर उसके आश्रितों को निर्धारित सहायता राशि दी जाती है, ताकि अचानक टूटे परिवार को संभलने का सहारा मिल सके. यह राशि अंतिम संस्कार से लेकर रोजमर्रा की जरूरतों तक, उस खालीपन को कुछ हद तक भरने का प्रयास करेगी, जो एक कमाने वाले के जाने से पैदा होता है. यह पहल उन हाथों के लिए है, जो दिन-रात मेहनत करते हैं, पर भविष्य की सुरक्षा से वंचित रहते हैं. योजना का उद्देश्य न केवल आर्थिक राहत देना है, बल्कि यह भरोसा जगाना भी है कि कठिन समय में सूबे की सरकार उनके साथ खड़ी है.मजदूरों के आश्रितों को जगी उम्मीद :
असंगठित क्षेत्र के मजदूर, जो अपने पसीने से समाज की इमारत खड़ी करते हैं, अक्सर सुरक्षा के दायरे से बाहर रह जाते हैं. ऐसे में बिहार शताब्दी असंगठित कार्य क्षेत्र कामगार और शिल्पकार सामाजिक सुरक्षा योजना 2024 लागू की गई है. इस योजना के तहत कामगार और शिल्पकार की स्वभाविक एवं दुर्घटना में मृत्यु होने पर मिलने वाली अनुदान राशि में बढ़ोतरी कर दी है. स्वाभाविक मृत्यु पर 50 हजार एवं दुर्घटना में मृत्यु पर दो लाख रुपये देने का प्रावधान किया गया है. इसे जनवरी 2024 से लागू कर दिया गया है. विदित हो कि योजना के तहत स्वाभाविक मृत्यु पर 2025-26 में दिसंबर महीने तक 325 लाभुकों ने आवेदन दिए थे. वहीं दुर्घटना में मृत्यु पर 35 आश्रितों ने आवेदन दिए. इनमें से अधिकांश आवेदकों के बैंक खाते में सहायता राशि का भुगतान कर दिया गया है. बचे लोगों को राशि भेजने की प्रक्रिया जारी है. स्वाभाविक मृत्यु पर सहायता राशि देने की व्यवस्था ने मजदूरों के आश्रितों के मन में नयी उम्मीद जगा दी है.समाज के लिए है बेहतर संदेश :
असंगठित मजदूरों के स्वाभाविक मृत्यु पर सहायता राशि की व्यवस्था समाज के लिए एक बेहतर और सकारात्मक संदेश लेकर आई है. यह पहल बताती है कि विकास केवल इमारतों और सड़कों से नहीं, बल्कि उन हाथों की सुरक्षा से भी जुड़ा है जो इन्हें आकार देते हैं. जब किसी मजदूर के जाने के बाद उसके आश्रितों को सहारा मिलता है, तो यह समाज में संवेदनशीलता और जिम्मेदारी की भावना को मजबूत करता है. यह संदेश देता है कि मेहनतकश वर्ग केवल श्रम का साधन नहीं, बल्कि सम्मान और सुरक्षा का हकदार है. ऐसी योजनाएं सामाजिक एकजुटता को बढ़ाती हैं और यह भरोसा दिलाती हैं कि संकट की घड़ी में कोई अकेला नहीं है. इस व्यवस्था से न केवल प्रभावित परिवारों को राहत मिलती है, बल्कि अन्य मजदूरों के मन में भी विश्वास पैदा होता है कि उनका भविष्य पूरी तरह अनिश्चित नहीं है. इससे समाज में विश्वास, सहयोग और मानवीय मूल्यों को बल मिलता है.असंगठित मजदूरों की स्वाभाविक मृत्यु पर सहायता राशि पाने के लिए कुछ तय नियम और शर्तें हैं- मजदूर का असंगठित श्रमिक के रूप में संबंधित विभाग/ई-श्रम/श्रम पोर्टल पर पंजीकृत होना आवश्यक है. स्वाभाविक मृत्यु (बीमारी, उम्र, सामान्य कारण) पर दी जाती है. दुर्घटना या अन्य मामलों के लिए अलग प्रावधान हो सकते हैं. पति/पत्नी, नाबालिग बच्चे या अन्य वैध आश्रित सहायता के पात्र होते हैं. मजदूर की आयु 18 से 60 वर्ष के भीतर होना जरूरी है. यह सीमा राज्य/योजना के अनुसार बदल सकती है. मृत्यु के बाद निर्धारित अवधि (जैसे 6 माह या 1 वर्ष) के भीतर आवेदन करना होता है.
मृत्यु प्रमाण पत्र, मजदूर का पंजीकरण प्रमाण, आश्रित का पहचान पत्र व बैंक खाता, संबंध प्रमाण (परिवार रजिस्टर/आधार आदि) सहायता राशि सीधे आश्रित के बैंक खाते में दी जाती है. इन नियमों का उद्देश्य यही है कि दुःख की घड़ी में मजदूर परिवार को त्वरित और पारदर्शी सहायता मिल सके.श्रम अधीक्षक दिनेश कुमार ने कहा कि यह पहल उन परिवारों के लिए संबल बनी है, जिनकी दुनिया एक कमाने वाले के जाने से अचानक ठहर जाती है. दिसंबर तक 325 स्वाभाविक मृत्यु एवं 36 दुर्घटना में मृत्यु पर उनके आश्रितों ने आवेदन दिये है. इनमें से अधिकांश को सहायता राशि भेजी गई है. यह रकम केवल पैसों का लेन-देन नहीं, बल्कि उस संवेदना का प्रतीक है, जो समाज अपने मेहनतकश नागरिकों के प्रति रखता है.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

