दर्शन परिषद्, बिहार के 47वें अधिवेशन का हुआ समापन
मधेपुरा.
भारतीय दर्शन अपने आप में अद्भुत व अद्वितीय है. इसके कारण ही दुनिया में हमारी पहचान रही है और हमें विश्वगुरु की प्रतिष्ठा प्राप्त है. दर्शन के बिना भारत की आत्मा अधूरी है. उक्त बातें मगध विश्वविद्यालय, बोधगया के कुलपति प्रो एसपी शाही ने कही. वे मंगलवार को दर्शन परिषद्, बिहार के 47वें वार्षिक अधिवेशन के संपूर्ति सत्र में मुख्य अतिथि के रूप बोल रहे थे. कार्यक्रम का आयोजन नालंदा खुला विश्वविद्यालय, नालंदा के तत्वावधान में किया गया. कुलपति ने कहा कि अप्प दीपो भव अपने आपमें संपूर्ण जीवन-दर्शन है. यदि हम ऐसा कर सके, तो हमसे कुछ भी असंभव नहीं है. उन्होंने कहा कि हमें नया भारत बनाने के लिए आगे आना चाहिये. आज अमेरिका हमें धमकता है. चीन हमसे दो वर्ष बाद आजाद हुआ, लेकिन हमसे साठ वर्ष आगे निकल गया है. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में दर्शन को महत्व दिया गया है. इससे पुनः नालंदा, विक्रमशिला व तक्षशिला जैसी गरिमा वापस लानी है.दर्शन को री-कंस्ट्रक्ट करने की जरूरतआयोजन के संरक्षक सह एनओयू के कुलपति प्रो रवींद्र कुमार ने कहा कि दर्शन को री-कंस्ट्रक्ट करने की जरूरत है. इसमें केवल शास्त्रीय विमर्श नहीं हो, बल्कि समसामयिक समस्याओं के समाधान की दिशा में भी प्रयास किया जाय. उन्होंने कहा कि दर्शन का मुख्य उद्देश्य मानव जीवन को दुखों से मुक्ति दिलानी है. इसलिये दार्शनिकों को जीवन व जगत की समस्याओं के समाधान के लिए प्रयास करना चाहिये.
कारवां मजबूती से आगे बढ़ रहाकार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अध्यक्ष प्रो पूनम सिंह ने कहा कि दर्शन परिषद् की 75 वर्षों की गौरवशाली यात्रा में कई उत्तर- चढ़ाव आये हैं, लेकिन अब यह कारवां मजबूती से आगे बढ़ रहा है. महासचिव प्रो श्यामल किशोर ने कहा कि विगत एक दशक में परिषद का आयाम विस्तृत हुआ है. आज यहां लगभग एक दर्जन व्याख्यान और डेढ़ दर्जन पुरस्कार दिए जा रहे हैं. आने वाले दिनों में पटना में दर्शन-भवन बनाने की योजना है.
चार सौ प्रतिनिधियों ने लिया भागप्रो वीणा कुमारी ने आयोजन सचिव का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया. उन्होंने बताया कि इस अधिवेशन में बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश सहित पूरे भारत के लगभग चार सौ प्रतिनिधियों ने भाग लिया. दो प्रतिभागी म्यान्मार के भी शामिल हुये. मौके पर श्रवण कुमार मोदी, दीपिका कुमारी व डॉ स्वस्तिक दास ने फीडबैक दिया. अतिथियों का स्वागत कुलसचिव प्रो अभय कुमार सिंह ने कहा कि यह कार्यक्रम एनओयू में शैक्षणिक सक्रियता की दिशा में मील का पत्थर की तरह है. आने वाले दिनों में और भी अकादमिक आयोजन होंगे. समापन सत्र का संचालन डॉ चितरंजन और धन्यवाद ज्ञापन डॉ किरण पांडेय ने किया. मौके पर पूर्व कुलपति प्रो नीलिमा सिन्हा, उपाध्यक्ष प्रो शैलेश कुमार सिंह, संयुक्त सचिव ने प्रो किस्मत कुमार सिंह, प्रो पूर्णेन्दु शेखर, प्रो अवधेश कुमार सिंह, प्रो नागेन्द्र मिश्र, प्रो महेश्वर मिश्र, डॉ विजय कुमार, प्रो एन पी तिवारी, डॉ नीलिमा कुमारी, डॉ सुधांशु शेखर, डॉ. नीरज प्रकाश आदि उपस्थित थे.
15 पुरस्कार वितरितमौके पर 15 पुरस्कार प्रदान किये गये. विभिन्न विभागों के लिए छह प्रो केपी वर्मा स्मृति पुरस्कार प्रदान किये गये. इनमें डॉ रमेश कुमार विश्वकर्मा, मुजफ्फरपुर, डॉ सुधा जैन, वाराणसी, डॉ प्रत्यक्षा राज, सहरसा, नितेश कुमार, मुंगेर, डॉ चंद्रेश्वर प्रसाद सिंह, मुजफ्फरपुर व डॉ मिथिलेश कुमार झा, पटना के नाम शामिल है. विभिन्न विभागों में छह डॉ विजय श्री स्मृति युवा पुरस्कार प्रदान किये. इसमें हेमंत कुमार, पटना, ज्ञानेंद्र कुमार पटना, डॉ प्रियंका सरकार, दरभंगा, डॉ विनय कुमार पांडे, धनबाद, डॉ दिव्या पांडे, हिसुआ तथा सबा निशा, भागलपुर को पुरस्कृत किया गया. प्रो सोहन राज लक्ष्मी देवी तातेङ सर्वश्रेष्ठ शोध पत्र पुरस्कार डॉ आशुतोष कुमार सिंह, रीवा, श्रीमती किरण देवी खटेड लाडनू सर्वश्रेष्ठ शोध पत्र पुरस्कार, मधुलिका, पटना, श्रीमती दयवंती देवी, स्मृति सर्वश्रेष्ठ शोध पत्र पुरस्कार डॉ बिरेंद्र कुमार भारती, आरा तथा पूज्यश्री देवराहा बाबा कौशल किशोर सिंह स्मृति सर्वश्रेष्ठ शोध पत्र पुरस्कार सौरभ कुमार चौहान मधेपुरा को दिया गया.
दो समानांतर संगोष्ठियां आयोजिततीसरे दिन पूर्वाह्न 09:30 बजे से अपराह्न 12:00 बजे तक दो समानातर सत्रों में दो संगोष्ठियां आयोजित की गयी. दोनों संगोष्ठियों को मिलाकर लगभग 20 शोध-पत्र प्रस्तुत किये गये. प्रथम संगोष्ठी विकसित भारत की दार्शनिक संकल्पनाएं की अध्यक्षता प्रो पूर्णेन्दु शेखर, दरभंगा और समन्वयन डॉ पयोली ने किया. द्वितीय संगोष्ठी शब्द प्रमाण : भारतीय संदर्भ विषय पर आयोजित की गयी. इसकी अध्यक्षता प्रो किस्मत कुमार सिंह, आरा ने किया और समन्वयक की भूमिका डॉ विजय कुमार, मुजफ्फरपुर ने निभायी.
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