चौसा. शिक्षा के अधिकार की बातें अब सिर्फ कागजों में रह गयी हैं, क्योंकि चौसा प्रखंड में आज भी दर्जनों मासूम बच्चे स्कूल की बजाय होटल, गैरेज, दुकानों व चाय ठेलों पर काम करने को मजबूर हैं. छह से 14 वर्ष की उम्र के ये बच्चे, जिनकी जिंदगी किताबों और खेलकूद के बीच बीतनी चाहिए थी, वे थाली धोते, पंचर बनाते व झाड़ू-पोछा करते नजर आते हैं.सरकार जहां एक ओर सर्व शिक्षा अभियान के तहत हर बच्चे को स्कूल से जोड़ने का दावा करती है, वहीं जमीनी हकीकत इसके बिल्कुल उलट है. बाल श्रम अधिनियम की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही है. स्थानीय प्रशासन व जनप्रतिनिधि आंखें मूंदे बैठे हैं. श्रम संसाधन विभाग, जो इस पर अंकुश लगाने के लिए जिम्मेदार है, वह पूरी तरह से निष्क्रिय नजर आ रहा है. गरीबी व आर्थिक तंगी की मार झेल रहे परिवारों के लिए ये बच्चे आज कमाई का जरिया बन गए हैं. चौसा प्रखंड के होटलों, ट्रैक्टर गैरेजों व चाय दुकानों में ऐसे दर्जनों नाबालिग बच्चे आसानी से देखे जा सकते हैं, जो महज एक हजार से तीन हजार रुपये महीने की मजदूरी पर दिन-रात काम कर रहे हैं. हाथों में पड़े छाले, थकान से बोझिल आंखें और स्कूल जाने की हसरत इन बच्चों की हालत बयां करती हैं. स्थानीय सामाजिक संगठनों का कहना है कि उन्होंने कई बार इस मुद्दे को अधिकारियों के संज्ञान में लाने की कोशिश की, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई. यदि यही हाल रहा, तो चौसा के ये बच्चे शिक्षा के मंदिर में कदम रखे बिना ही जीवन की जंग लड़ते रहेंगे. जरूरत है अब सिर्फ जागरूकता की नहीं, बल्कि ठोस कार्रवाई की. वरना मासूम बचपन यूं ही होटल और गैरेज की भट्ठियों में झुलसता रहेगा. — सभी पदाधिकारी परीक्षा ड्यूटी में है. जल्द ही सभी होटल व गैरेज में छापेमारी की जाएगी. यदि कहीं भी बालश्रम की शिकायत देखी जाएगी तो सख्त कार्रवाई की जाएगी. प्रवीण कुमार, श्रम प्रर्वतन पदाधिकारी, चौसा
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