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दिसंबर से आ गया मार्च…फिर भी लगा न नंबर

शहर के वार्ड संख्या 14 स्थित सरकारी जमीन पर बसे गायत्री मोहल्ले के गरीबों को पुल एप्रोच रोड बनाने के लिए हटाया गया था. इन गरीबों को डीएम ने निर्देश जारी कर बासगीत परचा जारी कर कहीं और बसाने को कहा था, लेकिन, प्रशासन की ओर से अब तक इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं […]

शहर के वार्ड संख्या 14 स्थित सरकारी जमीन पर बसे गायत्री मोहल्ले के गरीबों को पुल एप्रोच रोड बनाने के लिए हटाया गया था. इन गरीबों को डीएम ने निर्देश जारी कर बासगीत परचा जारी कर कहीं और बसाने को कहा था, लेकिन, प्रशासन की ओर से अब तक इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं की गयी.
मधेपुरा : शहर में स्टेडियम से पूरब बसे गायत्री मोहल्ला में करीब तीन दर्जन परिवार बसे थे. उन्हें उजाड़ दिया गया है. एकाध घर ही बचे हैं. शहर में बने पुल का एप्रोच पथ बनाने के लिये सरकारी जमीन पर बसे इस मोहल्ले को हटाना जरूरी था. काफी लोग हटाये भी जा चुके हैं.
लेकिन इनलोगों के पास जमीन नहीं होने के कारण ये लोग सड़क किनारे ही झुग्गी बना कर रह रहे हैं. कड़ाके की ठंड साहब के भरोस पर तो गुजार ली अब धीरे-धीरे धूप में तीखापन आता जारहा है. जीवन काफी मुश्किल हो गया है. डीएम ने निर्देश दिया था कि इनलोगों को हटाने से पहले कहीं और जमीन देख कर बासगीत परचा जारी कर बसा दिया जाये लेकिन यह फाइल इस टेबुल से उस टेबुल घूम रही है. लोग वहीं के वहीं हैं.
तीस साल पहले बसा था गायत्री मोहल्ला
गायत्री मोहल्ला में करीब 35 परिवारों के घर थे. इनमें से कोई एक तो कोई दो पीढ़ी से यहां रह रहा है. बाहर से मजदूरी करने आये लोगों ने नदी के किनारे शहर से हट कर वीराने में सरकारी भूमि पर अपना घर बना लिया था. अब उनकी तीसरी पीढ़ी यहां रह रही है.
इनका मुख्य पेशा मजदूरी या खोमचा या रेहड़ी पर दुकान चलाना है. इतने वर्षों में शहर अपना आकार बढ़ाता हुआ इस मोहल्ले तक जा पहुंचा. नदी के उस पास भी बसाहट काफी बढ़ गयी और शहर के फैलाव को विस्तार देने की प्रक्रिया के तहत यहां एक पुल बनाया गया. अब इस पुल के एप्रोच रोड की राह में गायत्री मोहल्ला रोड़ा बन गया है. हालांकि इनमें से अधिकतर घर हटा दिये गये हैं.
सड़क किनारे बसे अब पड़ रहे बीमार : गायत्री मोहल्ले के लोगों को यहां से हटाया गया तो वहीं पास में वीमेंस कॉलेज से समाहरणालय जाने वाली सड़क के किनारे सिर छुपाने की जगह ढूंढ़ ली है. अब इनके लिये चिलचिलाती धूप में दिन गुजारना मुश्किल हो गया है.
किसी तरह बच्चे का पालन पोषण कर रहे है. यहां रह रही ननकी देवी ने बताया कि उनका तीन वर्षीय पुत्र मानव कुमार की ठंड से तबीयत खराब हो गयी है. ईंट का चूल्हा बना कर खाना पकाते हैं. एक वक्त का भोजन बनाते है तो बचा बचा कर खाते हैं ताकि दूसरे वक्त में बच्चों को भूखे नहीं रहना पड़े. यहीं की सुशीला देवी ने बताया कि सड़क पर प्लास्टिक की झुग्गी बना कर रहे रहे है. उनके पति संजय राय दिन भर कहीं से कुछ कमा कर लाते हैं तो घर चल पाता है. कोई कर्ज देने के लिए तैयार नहीं है. गणेश राय, मुकेश राय, मो बेबी देवी, सुनीता देवी, प्रमिला देवी, कृष्णा रानी दास ने बताया कि बच्चे बीमार पड़ रहे है.
जमीन की बाट जोह रहे गरीब
यहां रह रही सिंकी देवी ने कहा साहब लोगों ने घर तुड़वा दिया. कहा था कि रहने के लिये दूसरा स्थान देंगे. अब तक बाट ही जोह रहे हैं. बच्चे से लेकर बूढ़े तक काफी परेशान हैं.
सोनी देवी, रंजू देवी, अंशु देवी, रेखा देवी, संजू देवी, सुरेश राज, राज कुमार मंडल आदि ने बताया कि उन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है. पहले नदी के पानी ने घर में रखा सब कुछ बर्बाद कर दिया. अब जब पानी सूख गया है तो बसने के लिए जमीन नहीं है. किसी तरह मेहनत मजदूरी कर परिवार के सदस्यों का भरण पोषण कर रहे है. संतोष महतो, लाल दास, सुनीता देवी, वरूण दास, मनोज कुमार, संयुक्ता देवी, पूनम देवी ने बताया कि अधिकतर झोपड़ी हटा लिये हैं. अन्य झोपड़ी हटाने साहब लोग आये थे लेकिन उनसे ठंड की दुहाई दी.
दिसंबर में ही दिया था आश्वासन
अंचलाधिकारी ने दिसंबर में ही जमीन दे दिये जाने का आश्वासन दिया था. लेकिन मार्च आ गया है और मामला कहां अटका है इसका पता नहीं. लोगों ने बताया कि उसी समय डीएम साहब से मिले थे तो उन्होंने कहा कि आप लोगों को बसाने के उपरांत ही झोपड़ी हटाया जायेगा. लेकिन अब तक कहीं रहने के लिए जगह नहीं मिली है. वहीं सीओ साहब इस मामले में रटा रटाया जवाब दे देते हैं कि काम चल रहा है.

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