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तिल की खुशबू से महका मधेपुरा

मकर संक्राति बस अब छह दिन दूर रह गयी है और मधेपुर शहर में तिलकुट का बाजार सज चुका है. भुने तिल व गुड़ की खुशबू से वातावरण सुगंधित हो रहा है. रेवड़ी, गजक व विभिन्न तरह के तिलकुट की बिक्री उफान पर है. लोग अभी से ही इन तिलकुटों का स्वादन कर रहे हैं. […]

मकर संक्राति बस अब छह दिन दूर रह गयी है और मधेपुर शहर में तिलकुट का बाजार सज चुका है. भुने तिल व गुड़ की खुशबू से वातावरण सुगंधित हो रहा है. रेवड़ी, गजक व विभिन्न तरह के तिलकुट की बिक्री उफान पर है. लोग अभी से ही इन तिलकुटों का स्वादन कर रहे हैं.
मधेपुरा : बाजार में कतरनी चुड़ा, काला तिल, उजला तिल व गुड़ की डिमांड अभी से बढ़ गयी है. चुड़ा मिलों में आर्डर की लंबी लाइन लगी हुई है. वहीं खुदरा दुकानदार शक्कर का भारी स्टॉक कर लिये है. हालांकि इस वर्ष आम लोगों के लिए मकर संक्रांति का पर्व खुशनुमा रहेगा. इस वर्ष तिलकुट की कीमत काफी कम है. इसका कारण तिल और चीनी की कीमत में गिरावट आना है.
वहीं सिंहेश्वर से यहां दुकान लेकर आये मुकेश साह कहते हैं कि विगत वर्ष थोक भाव में तिल की कीमत 180 रूपये थी वहीं इस वर्ष केवल 120 से 140 रुपये किलो है. हालांकि चीनी की कीमत पिछले साल 34 रूपये किलो थी तो इस साल भी इसी के आस-पास है. इसका असर तिलकुट की कीमत पर भी पड़ा है. दुकानदारों ने बताया कि जिस तिलकुट की कीमत पिछले साल 320 रुपये किलो थी, इस वर्ष 240 रुपये किलो बिक रही है.
खोया मिक्स तिलकुट पिछले वर्ष 400 रूपये किलो था लेकिन इस वर्ष 275 से 300 रुपये किलो तक उपलब्ध है. बाजार में इस वर्ष गुड़ तिलकुट 200 रुपये, गजक 250 रुपये व खोया मिक्स 300 से चार सौ तक उपलब्ध है. त्योहार को सुंदर बना रहे तिल और गुड़ के ये कारीगर : लोग अभी से ही इन तिलकुटों का आस्वादन कर रहे हैं. लेकिन इस स्वाद के पीछे उन कारीगरों का हाथ है जो गया तथा अन्य जगहों से यहां आ कर तिलकुट बना रहे हैं.
गया जिले के निरहुआ गांव से कारीगरों का दल मधेपुरा पिछले आठ वर्ष से यहां आ कर अपने हाथों का जादू बिखेर रहा है. दल के कारीगर कहते हैं कि इस एक सेडेढ़ महीने के काम के लिए वे लोग पूर साल प्रतीक्षा करते हैं. वहीं कारीगर केशव कुमार कहते हैं कि यह सिर्फ एक से डेढ़ महीने का बाजार नहीं, उनके एक साल की उम्मीद है. दल के ही अन्य लोगों का कहना है कि मधेपुरा के लोगों ने उनके काम की कद्र की है. इसलिए हर साल वे यहां पहुंचते हैं. केशव को इस वर्ष की कमाई से घर की मरम्मत कराना है. वहीं पकंज इस बार अपने बिटिया का दाखिला अच्छे स्कूल में करायेंगे. सुनील इस बार खेती के लिए लिया गया कर्ज चुकायेंगे. इस एक माह के बाजार से सबकी अपनी जरूरत और उम्मीदें हैं.
हर वेरायटी होती है मौजूद : पहले लोग तिलकुट के लिए बाहर के बाजार पर निर्भर थे. कोई पटना तो कोई गया से तिलकुट मंगाया करते थे. लेकिन अब मधेपुरा में ही तिलकुट की हर वेराइटी मौजूद है. गणपति तिलकुट भंडार के संचालक ने कि जब नौ वर्ष पहले उन्होंने यह काम शुरू किया था तो गुणवत्ता पहली चुनौती थी. इसके लिए उन्होंने गया के कारीगर से संपर्क किया. राजकिशोर साह भी विगत छह वर्ष से गया के कारीगरों से ही तिलकुट दुकान चलाते हैं.
बढ़ रहा है तिलकुट बाजार : मधेपुरा में दिनों दिन तिलकुट का बाजार बढ़ता जा रहा है. पांच साल पहले जहां एक – दो दुकानें ही थी वहीं इस वर्ष एक दर्जन से अधिक दुकानें हैं. खगडि़या के प्रेमसागर इस वर्ष पहली बार मधेपुरा पहंुचे हैं. उन्होंने बताया कि उन्हें पता चला कि मधेपुरा में तिलकुट की काफी बिक्री होती है. प्रेमसागर सामान्य दिनों में खेती और पढ़ाई करते हैं. इस एक महीने की कमाई से खेती के लिए उन्नत यंत्र खरीदने की सोच रहे हैं.

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