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आत्मा के शुद्ध ज्योर्तिमय निरामय रूप को प्राप्त करें : महाश्रमण

आत्मा के शुद्ध ज्योर्तिमय निरामय रूप को प्राप्त करें : महाश्रमण फोटो – मधेपुरा 05 कैप्शन -कुहासे के बीच सिंहेश्वर पहंुचे जैन धर्म तेरापंथ धर्म संघ के 11 वें गुरू आचार्य श्री महाश्रमण फोटो – मधेपुरा 01 कैप्शन – सिंहेश्वर मंदिर परिसर में तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम की ओर से संचालित मेडिकल वैन में चिकित्सा के […]

आत्मा के शुद्ध ज्योर्तिमय निरामय रूप को प्राप्त करें : महाश्रमण फोटो – मधेपुरा 05 कैप्शन -कुहासे के बीच सिंहेश्वर पहंुचे जैन धर्म तेरापंथ धर्म संघ के 11 वें गुरू आचार्य श्री महाश्रमण फोटो – मधेपुरा 01 कैप्शन – सिंहेश्वर मंदिर परिसर में तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम की ओर से संचालित मेडिकल वैन में चिकित्सा के लिए कतारबद्ध महिलाएं – जैन धर्म तेरापंथ धर्म संघ के 11 वें गुरू आचार्य श्री महाश्रमण पहंुचे सिंहेश्वर स्थान – सद्भावना का संदेश लेकर चले संत ढाई हजार किमी का सफर पैदल कर चुके हैं पूरा प्रतिनिधिसिंहेश्वर, मधेपुरा. सिंहेश्वर मंदिर परिसर स्थित प्रतिमा सिंह धर्मशाला में जैन संप्रदाय के तेरापंथ धर्म के 11वें गुरू आचार्य श्री महाश्रमण जी बृहस्पतिवार को श्रद्धालुओं को आत्मा और शरीर के अलग-अलग स्वरूप की व्याख्या की. प्रवचन करते हुए आचार्य ने कहा कि हमारा शरीर अशुचिपूर्ण और अशाश्वत है. आत्मा एक अपेक्षा से शाश्वत है. शरीर विनाशधर्मा होता है. आत्मा शरीर से भिन्न है. हमारे भीतर का चैत्य पुरूष जाग कर देहासक्ति से मुक्त हो कर आत्मा की ओर प्रयाण करे. हमारे राग द्वेष कमजोर हों. यदाकदा आदमी को गुस्सा आ जाता है. ऐसे संत महात्मा भी मिलते हैं जिन्हें गुस्सा आ जाता है. जिस हृदय में अहिंसा प्रतिष्ठित हो जाती उसके पास वैराग्य हो जाता है. उन्होंने कहा कि संत का हृदय नवनीत तुल्य होता है. कवि ने कह तो दिया लेकिन यह उपमा पूर्णतया ठीक नहीं. क्योंकि नवनीत तो स्वयं तप्त होने पर पिघलता है. पर संत तो दूसरे के भी संतप्त होने पर पिघल जाते हैं. धर्म गुरू संत और धर्म की शरण में आने वाला व्यक्ति के भी इस अशाश्वत देह से छुटकारा प्राप्त कर सकता है. जो त्यागी और ज्ञानी पुरूष होते हैं वे गुरू कल्याणकारी हो सकते हैं. हम वर्तमान के साथ भविष्य के बारे में भी सोचें. हम इस जन्म के बारे में ही नहीं परलोक और मोक्ष के बारे में भी चिंतन करें. शरीर पांच प्रकार के बताये गये हैं. औघोरिक शरीर वाला ही मोक्ष की साधना शुरू कर सकता है. देवता समृद्ध और ऐश्वर्य संपन्न होते हैं. पर वैक्रिया शरीर से मोक्ष की साधना नहीं कर सकते हैं. मोक्ष प्राप्ति के लिए शरीर मात्र से छूटना जरूरी है. यह देहवास अशुचिपूर्ण है. ऐसे गंदगी से युक्त शरीर के प्रति भी राग हो जाता है. 19वें तीर्थंकर मल्लिनाथ जो महिला या स्त्री तीर्थंकर थी. उनके प्रति भी कितने राजाओं को राग हो गया था. बारह भाावनाओं में से एक है अशौच भावना. हम अशौच भावना का आलंबन लेकर शरीर की आसक्ति से मुक्त बनें. आत्मा के शुद्ध ज्योर्तिमय निरामय रूप को प्राप्त करें. यह मान्य है. कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया. —————–सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति का संदेश ले पहुंचे हैं आचार्य श्री महाश्रमण प्रतिनिधिसिंहेश्वर, मधेपुरा.जैन संप्रदाय के तेरापंथ धर्म के 11वें गुरू आचार्य श्री महाश्रमण जी बृहस्पतिवार को अपनी पैदल यात्रा के क्रम में सिंहेश्वर स्थान पहुंचे. आचार्य श्री सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति का संदेश लेकर पूरे भारत के साथ नेपाल और भूटान में पैदल 15 हजार किलोमीटर की अहिंसा यात्रा पर निकले हैं. शुक्रवार को वह करीब ढाई हजार किलोमीटर की यात्रा पूरी कर सिंहेश्वर पहंुचे. विगत नौ नवंबर 2014 को नयी दिल्ली के लाल किले से आचार्य श्री ने अपनी यात्रा आरंभ की थी. उन्होंने पूरे विश्व में इस संदेश को प्रचारित प्रसारित करने का संकल्प लिया है. उनकी अहिंसा यात्रा का काफिला भारत के 18 राज्यों से होकर गुजरेगा. सिंहेश्वर मंदिर परिसर स्थित प्रतिमा सिंह धर्मशाला एवं आस्था भवन में धर्मगुरूओं ने पड़ाव डाला है.—————पांच सौ रोगियों की हुई चिकित्सा प्रतिनिधिसिंहेश्वर, मधेपुरा.सिंहेश्वर मंदिर परिसर में तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम की ओर से संचालित मेडिकल वैन में बृहस्पतिवार को चिकित्सा के लिए कतारबद्ध हो कर लोगों ने अपनी चिकित्सा करायी. इस शिविर में करीब पांच सौ रोगियों की नि:शुल्क चिकित्सा की गयी. गौरतलब है कि जैन संप्रदाय के तेरापंथ धर्म के 11वें गुरू आचार्य श्री महाश्रमण जी बृहस्पतिवार को सिंहेश्वर स्थान मंदिर परिसर में ठहरे. उनके साथ मेडिकल वैन यूनिट भी है. विगत एक महीने से आचार्य श्री महाश्रमण मुनि की पैदल यात्रा के साथ चल रहे गुलाबबाग के पंकज डाडा ने बताया कि आचार्य जी के साथ पूरी रसोई, चलंत शौचालय सहित पूरी सामग्री भी रहती है ताकि कहीं भी पड़ाव डाला जा सके. आचार्य श्री पैदल ही यात्रा करते हैं. उनके साथ पूरे भारत से पच्चीस से अधिक तेरापंथ की इकाई भी साथ चल रही है. उन सभी की अपनी रसोई भी साथ रहती है. इस मौके पर स्थानीय व्यवसायी दिलीप खंडेलवाल भी सेवा में लगे रहे.

Prabhat Khabar Digital Desk
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