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सात ग्राम खून वो मां का साहस: ममता की अनकही लड़ाई

“मैं आज भी उस दिन को याद कर सिहर जाती हूं, अपने गांव की आशा दीदी के साथ एक नया सपना लेकर सदर अस्पताल पहुंची थी

डर, दर्द और उम्मीद के बीच एक सीख: एनीमिया को न करें नजरअंदाज

कमजोर शरीर, टूटा विश्वास, लेकिन उम्मीद ने थामा हाथ

लखीसराय. “मैं आज भी उस दिन को याद कर सिहर जाती हूं, अपने गांव की आशा दीदी के साथ एक नया सपना लेकर सदर अस्पताल पहुंची थी. अपने बच्चे को सुरक्षित जन्म देने का सपना लेकिन जब चिकित्सक ने कहा कि उनके शरीर में खून बहुत कम है और प्रसव जोखिम भरा हो सकता है, तो पैरों तले मानों जमीन खिसक गयी.

फिर थोड़ा रूककर कहती हैं कि “डॉक्टर की बात सुनते ही उनके मन में वही पल लौट आये, जब आशा दीदी हर बार उसे समझाती थीं कि उनका शरीर कमजोर हो रहा है. आयरन की गोलियां समय पर लेना कितना जरूरी है और गर्भावस्था में पोषण बिल्कुल भी नहीं छोड़ना चाहिए. आज जब वे अपने बच्चे को गोद में लेकर उसकी मुस्कान देखती है, तो उन्हें लगता है कि वे सचमुच किस्मत वाली हैं, कि उनके शरीर में सिर्फ सात ग्राम खून था, फिर भी डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मियों ने उन्हें थामा, हिम्मत बढ़ाई और जान भी बचाई और मेरे बच्चे की भी. अगर वे न होते, तो शायद आज अपने बच्चे को इस तरह सीने से लगाकर महसूस भी नहीं कर पाती”

“इसलिए किसी भी महिला को गर्भावस्था में पोषण और आयरन की गोली बिल्कुल नहीं छोड़ना चाहिए, आशा दीदी की बातों को अनसुना न करें, क्योंकि वही आपकी सुरक्षा की पहली सीढ़ी हैं” यह कहानी है ममता कुमारी की.

ममता कुमारी के पति कारू दास बताते हैं ‘त्वह पेशे से एक मजदूर है, और उसकी पहली चिंता हमेशा घर के लिए दो वक्त की रोटी जुटाने की होती थी. इसी सोच में वे इतना उलझा रहा कि अपनी पत्नी की सेहत पर पर्याप्त ध्यान ही नहीं दे पाया लेकिन इस घटना ने मेरी सोच बदल दी है.

समुदाय में अब भी बनी है भ्रम की स्थिति:

गांव की आशा पप्पी कुमारी बताती हैं कि कई महिलाएं घर में सबका खाना बनाने और खिलाने के बाद खुद आखिरी में भोजन करती हैं. पूजा-पाठ, रोजमर्रा के काम और परिवार की जिम्मेदारियों में वे अपना ध्यान सबसे अंत में रखती हैं, जिसके कारण शरीर कमजोर होता जाता है. आयरन की दवा लेने के लिए कहने पर कई महिलाएं यह कहकर मना कर देती हैं कि वे व्रत में हैं और दवा नहीं खा सकतीं. इस तरह की धारणा उन्हें गर्भावस्था से पहले ही एनीमिया की ओर धकेल देती है, लेकिन वे इसे मामूली कमजोरी समझकर नजरअंदाज करती रहती हैं. उन्हें वास्तविक खतरे का पता तब लगता है जब गर्भधारण के बाद जांच में खून की गंभीर कमी सामने आती है, इन भ्रमों को तोड़ना बहुत आवश्यक है.

एनीमिक गर्भवती महिलाओं के लिए सुरक्षित प्रबंधन

जिला कार्यक्रम प्रबंधक सुधांशु नारायण लाल बताते हैं कि सदर अस्पताल में एनीमिक गर्भवती महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए एक कंट्रोल रूम बनाया गया है, जहां से उनकी स्थिति की रोज निगरानी की जाती है. नौ से सात ग्राम खून वाली हर गर्भवती महिला को विशेष देखरेख में रखा जाता है ताकि किसी भी खतरे की स्थिति में तुरंत इलाज हो सके. वह बताते हैं कि एनएफएचएस-5 के अनुसार जिले में अभी भी बड़ी संख्या में गर्भवती महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं. एसडीजी-2 के तहत वर्ष 2030 तक एनीमिया को 50 प्रतिशत कम करने का लक्ष्य है, लेकिन इसे हासिल करने के लिए जिले को लगातार प्रयास बढ़ाने होंगे.

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