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मातृ और शिशु मृत्यु दर में कमी लाने की है जरूरत : सीएस

जिले में मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करने के उद्देश्य से बुधवार को सदर अस्पताल में सुमन कार्यक्रम पर आधारित कार्यशाला का आयोजन किया गया.

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मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाने को ले सुमन कार्यक्रम पर कार्यशाला आयोजित

सुमन कार्यक्रम: सुरक्षित मातृत्व की दिशा में एक प्रभावी पहलकिशनगंज जिले में मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करने के उद्देश्य से बुधवार को सदर अस्पताल में सुमन कार्यक्रम पर आधारित कार्यशाला का आयोजन किया गया. इस कार्यशाला की अध्यक्षता जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ देवेंद्र कुमार ने की, जबकि सिविल सर्जन डॉ. राजेश कुमार ने मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के लिए अधिकारियों को कई महत्वपूर्ण निर्देश दिए. इस कार्यशाला में स्वास्थ्य, शिक्षा, जीविका एवं आईसीडीएस विभाग के जिला एवं प्रखंड स्तरीय अधिकारी शामिल हुए. कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य गर्भवती महिलाओं एवं नवजात शिशुओं की मृत्यु दर में कमी लाने के लिए प्रभावी उपायों पर चर्चा करना था.

सुमन कार्यक्रम: सुरक्षित मातृत्व की दिशा में एक प्रभावी पहल

जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ देवेन्द्र कुमार ने बताया की सुमन (सुरक्षित मातृत्व आश्वासन) कार्यक्रम केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई एक महत्वाकांक्षी योजना है, जिसका उद्देश्य मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को नियंत्रित करना है. इस कार्यक्रम के तहत गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं को निःशुल्क एवं गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं.उन्होंने बताया कि सुमन कार्यक्रम का मुख्य लक्ष्य गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं की मृत्यु दर को कम करना है. इसके तहत महिलाओं को प्रसव पूर्व जांच, सुरक्षित प्रसव, प्रसव के बाद देखभाल और नवजात शिशु के स्वास्थ्य से संबंधित सभी आवश्यक सेवाएं निःशुल्क प्रदान की जाती हैं. उन्होंने यह भी बताया कि सरकार ने इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए आशा कार्यकर्ताओं को भी जोड़ा है. यदि कोई आशा कार्यकर्ता मातृ मृत्यु की सूचना टोल फ्री नंबर 104 पर देती हैं, तो उन्हें 1000 रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जाती है. वहीं, मृत्यु की सूचना दर्ज कराने पर 200 रुपये अतिरिक्त प्रोत्साहन राशि दी जाती है.

मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए जरूरी कदम

सिविल सर्जन डॉ राजेश कुमार ने कहा कि मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को नियंत्रित करने के लिए सबसे अधिक जरूरी है प्रसव पूर्व जांच (एंटीनटल चेकअप).उन्होंने कहा, “यदि गर्भावस्था के दौरान सही समय पर जांच हो और संभावित जोखिमों का पता लगाकर उचित प्रबंधन किया जाए, तो मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को काफी हद तक रोका जा सकता है. इसलिए सभी सरकारी व निजी अस्पतालों को किसी भी मातृ एवं शिशु मृत्यु की सूचना तुरंत जिला स्वास्थ्य विभाग को देनी चाहिए, ताकि ऐसे मामलों की समीक्षा कर आगे की रोकथाम की जा सके. “

प्रसव के 24 घंटे बाद सबसे अधिक होती है मातृ मृत्यु

जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ देवेन्द्र कुमार ने बताया राज्य में गर्भावस्था के दौरान 5 प्रतिशत माताओं की मृत्यु हो जाती है.प्रसव के 7 दिनों के भीतर 20 प्रतिशत महिलाओं की मृत्यु होती है.लगभग 5 प्रतिशत मौतें प्रसव के एक सप्ताह के अंदर दर्ज होती हैं.उन्होंने कहा कि मौत के कारणों की गहन पड़ताल कर उचित समाधान निकालना जरूरी है. इसके लिए रिपोर्टिंग सिस्टम को सुदृढ़ करना होगा.

मैटरनल डेथ सर्विलांस एंड रेस्पांस प्रक्रिया से रोकी जा सकती हैं मौतें

कार्यशाला में मैटरनल डेथ सर्विलांस एंड रेस्पांस प्रक्रिया पर भी चर्चा की गई. यह एक सतत प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से मातृ मृत्यु के कारणों की पहचान, सूचना और समीक्षा कर आवश्यक सुधार किए जाते हैं.विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार साल 2.7 करोड़ नवजात शिशुओं की मौत जन्म के 7 दिनों के भीतर हो जाती है.2.6 करोड़ नवजातों की मौत जन्म के 28 दिनों के अंदर हो जाती है.डॉ राजेश कुमार ने कहा कि “यदि मातृ एवं शिशु मृत्यु के मामलों को रिपोर्ट किया जाए और उनके कारणों की समीक्षा की जाए, तो सही रणनीति अपनाकर इन घटनाओं को रोका जा सकता है. अस्पतालों में समय पर रेफरल, ब्लड बैंक की उपलब्धता और प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों की तैनाती से मृत्यु दर को कम किया जा सकता है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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