ठाकुरगंज. शारदीय नवरात्र को लेकर हर तरफ उत्साह का माहौल है. रविवार को महालया का पर्व मनाया गया. हिंदू शास्त्र के अनुसार पितृ पक्ष की अमावस्या के दिन ही महालया मनायी जाती है. मान्यता के अनुसार, महालया के दिन पितरों की विदाई के साथ पितृपक्ष का समापन होता है. देवी पक्ष की शुरुआत होती है. इस दिन विधि विधान से माता दुर्गा की पूजा अर्चना कर उन्हें अपने घर आगमन के लिए निवेदन किया जाता है. बताते चले ठाकुरगंज में रविवार को महालया के दिन भक्तिमय माहौल देखा गया. नवरात्र शुरू होने से एक दिन पहले रविवार को महालया पर शहर का माहौल भक्तिमय हो गया है. वहीं सोमवार को नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री का पूजन का कलश स्थापन किया जाएगा. मान्यता के अनुसार महालया के दिन मां दुर्गा धरती लोक पर आती हैं. इस दिन देवी भगवती का विधि विधान से पूजा-अर्चना कर उनका भव्य स्वागत किया जाता है. महालया संस्कृत के दो शब्दों महा और आलय से मिलकर बना है. जिसका मतलब -देवी का महान निवास होता है.
मां के आगोमोनी का उत्सव है महालया
इस दौरान हरगौरी मंदिर के पुजारी जयंतो गांगुली का कहना है कि महालया आगोमनी का उत्सव है. दुर्गा पूजा बेटी के घर वापसी का उत्सव है. दुर्गा सप्तशती में ऋषि मुनियों ने स्तुति की है. स्त्रीयः समस्ताः सकलि जगत्सुर अर्थात जगत में जहां भी नारी की मूर्ति है, वह महामाया का ही जीवंत विग्रह है. इसी को आधार मानते हुए बंगाली समुदाय ने बेटी के घर आने की खुशी को जाहिर करने के लिए आगोमनी गीतों की रचना की. इन्हीं गीतों व श्री दुर्गा सप्तशती के विशिष्ट श्लोकों का संकलन कर ऑल इंडिया रेडियो ने सन 1931 में महिषासुर मर्दिनी कार्यक्रम का प्रसारण शुरू किया, जो महालया के साथ इस प्रकार जुड़ गया कि महालया के प्रातः वीरेंद्र कृष्ण भद्र की आवाज में चंडी पाठ सुनना एक परंपरा बन गयी है. हर तरफ देवी के आगमन का संदेश गूंजने लगता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

