Bihar News: बिहार के किशनगंज जिले के दल्लेगांव पंचायत में बना मेची नदी पर पुल विकास का प्रतीक बनने के बजाय स्थानीय लोगों के लिए एक अभिशाप बन गया है. साल 2023 में बनकर तैयार हुए इस पुल का एप्रोच रोड आज तक नहीं बन पाया है. पुल होकर गुजरने का रास्ता नहीं, और रास्ता नहीं तो ज़िंदगी की सबसे ज़रूरी चीजें- शादी, इलाज, अंतिम संस्कार सब प्रभावित हो रही हैं.
रिश्ते भी अब रास्तों से तय होते हैं
पंचायत के दल्लेगांव, बैगनबाड़ी, तेलीभिट्टा और भवानीगंज जैसे गांवों के युवाओं को शादी के प्रस्ताव नहीं मिल रहे. ग्रामीण बताते हैं, “लोग साफ कहते हैं- सड़क नहीं तो रिश्ता नहीं.” गांव की बेटियों को ससुराल ले जाना, परिवार के लिए एक चुनौती बन गया है, क्योंकि रास्ता नहीं, बस खतरे से भरी नदी है.
अंतिम यात्रा भी बनी जंग
स्थानीय जनप्रतिनिधियों का कहना है कि, “आज़ादी के 78 साल बाद भी हमारा इलाका मुख्यधारा से जुड़ नहीं पाया.” गांव का कब्रिस्तान नदी के उस पार है. बरसात के दिनों में शवों को नाव से ले जाकर रेत पर आधा किलोमीटर तक कंधे पर ले जाना पड़ता है. नदी की तेज़ धार कई बार शव यात्रा को मौत का सफर बना देती है.
गर्भवती महिलाएं और मरीज सबसे ज्यादा प्रभावित
नदी पार बसे गांवों की गर्भवती महिलाओं को नाव से अस्पताल ले जाया जाता है, और कई बार रास्ते में ही प्रसव हो जाता है. एंबुलेंस सेवा उपलब्ध नहीं, नाव ही एकमात्र सहारा है. कुछ साल पहले एक महिला की डिलीवरी के दौरान मौत के बाद लोगों ने 2019 में लोकसभा चुनाव का बहिष्कार तक कर दिया था. प्रशासन ने पुल तो बनवा दिया, लेकिन अधूरा ही छोड़ दिया.
सवाल वहीं- विकास कहां है?
यह अधूरा पुल न सिर्फ विकास की असफलता का प्रतीक है, बल्कि उन लाखों लोगों की रोज़मर्रा की लड़ाई का भी प्रमाण है, जो अब भी बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं. दल्लेगांव का पुल सिर्फ अधूरा नहीं है, ये एक पूरे क्षेत्र के अधूरे वादों और टूटी उम्मीदों की तस्वीर है.