मेला के साथ-साथ वॉलीबॉल प्रतियोगिता एवं नाटक का मंचन परबत्ता. प्रखंड क्षेत्र में काली पूजा के प्रति लोगों में आसीम आस्था है. तेमथा गांव में स्थित मां काली की शक्ति असीम है. ग्रामीणों ने बताया कि तेमथा गांव में आजादी के पूर्व से मां काली की पूजा होती आ रही है. तेमथा गांव में स्थापित काली मंदिर सामाजिक सहयोग की मिसाल है. यहां मां काली की पूजा का इतिहास 100 वर्षों पुरानी है. यहां आस-पास और दूसरे जिला से श्रद्धालु अपनी मन्नतें मांगने आते हैं. उनकी मनोकामना पूर्ण होने पर वे मां के दरबार में चढ़ावा चढ़ा कर अपनी आस्था का प्रमाण देते हैं. कार्तिक अमावस्या अर्थात दीपावली की रात से यहां श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है. बुजुर्गों का कहना है कि यहां के एक ग्रामीण को एक 100 वर्ष पूर्व सपना देने के बाद यहां काली लक्ष्मी सरस्वती शंकर भगवान आदि की मूर्तियां बनाया जाने लगा है. जबकि कुछ लोग कहते हैं कि स्वप्न देखने वाले गांव से बाहर रहते थे. इस स्वप्न के बाद वे गांव लौटे और मां की स्थापना में लग गए. ग्रामीणों के अनुसार पुराने समय में ग्राम राज रुपौहली तेमथा पंचायत के तेमथा गांव में मंदिर था. वर्ष 1975 से 1978 के बीच हुए गंगा के कटाव में पुराना मंदिर कटकर विलीन हो गया. वर्तमान में नगर पंचायत के तेमथा गांव में 1979 में यहां के लोगों ने मंदिर बनाया. मां की कृपा से मन्नतें मांगने वाले कई लोग सरकारी नौकरी में गए. वे लोग निश्चित रूप से काली पूजा में प्रसाद चढ़ाने आते हैं. यहां 45 वर्षों से मां काली की सेवा करते आ रहे पंडित प्रमोद मिश्र ने बताया कि मां की महिमा अपरम्पार है. मां काली सबकी मुरादें पूर्ण करती है. पूजा के साथ साथ भव्य मेला का आयोजन किया जाता है. इस मेला में कई खेल प्रतियोगिता का आयोजन के साथ साथ नाटकों का मंचन किया जाता है. मेला कमेटी के अध्यक्ष रायबहादुर यादव, सचिव नारद यादव, कोषाध्यक्ष हरदेव कुमार ने बताया कि पूजा पाठ के अलावा मेला आयोजन, एवं वॉलीबॉल प्रतियोगिता आदि में कमेटी के साथ-साथ लोगों का भरपूर सहयोग मिलता रहा है.
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