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कन्हैयाचक गांव में 1875 ई० से होती आ रहीं हैं मां काली की पूजा

दूर दराज से पहुंचते हैं भक्तगण, मां करतीं है मन्नते पूर्ण, विसर्जन के दिन पटाखे की आतिशबाजी की परंपरा

दूर दराज से पहुंचते हैं भक्तगण, मां करतीं है मन्नते पूर्ण, विसर्जन के दिन पटाखे की आतिशबाजी की परंपरा परबत्ता. नगर पंचायत के कन्हैयाचक गांव स्थित मां काली की महिमा अपरंपार है. यहां पूजा और नाटक का मंचन अंग्रेज जमाने से होता आ रहा है. लोगों का कहना है कि कन्हैयाचक गांव में मां काली मंदिर की स्थापना 1875 ई में हुई थी. उस समय मिट्टी और खपरैल के मंदिर में पूजा-अर्चना शुरू किया गया था. इसमें तत्कालीन हरिनाथ सिंह का योगदान था. बाद के कुछ वर्षों में मां के आशीर्वाद से जब लोग सम्पन्नता की ओर बढ़ते गया तो मां पक्का काली मंदिर बना. इसके बाद मां काली की पूजा बड़ी धूमधाम से होने लगी. 1938 ईस्वी में मां काली नाट्य कला की स्थापना हुई उस समय के नाट्य कला परिषद से जुड़े स्मृति शेष भुवनेश्वर मिश्र माने जाते हैं. नाट्य कला परिषद कन्हैयाचक गांव में जितने भी पूर्व में डायरेक्टर आए सभी ने अपना अमिट छाप छोड़ दिया है. नाट्य कला परिषद के चर्चित डायरेक्टर स्मृति शेष जगदंबा गुरुजी, तारणी शर्मा, सहदेव शर्मा, गोखले चौधरी भी अपनी अमिट छाप छोड़ गए हैं. मां काली की शक्ति असीम है जो लोग मां के सामने मन्नते रखते हैं वह पूरा हो जाता है. काली पूजा में दूर-दराज से भक्तगण मां की दरबार में पहुंचते हैं. मां काली की कृपा से गांव में संपन्नता बढ़ी. जिस कारण दो वर्ष पूर्व पुरानी मंदिर को तोड़कर नया भव्य मंदिर बनाया गया. मंदिर का मुख्य द्वारा दक्षिणेश्वर है. इस मंदिर में मां काली की प्रतिमा स्थापित की जाती है. 20 अक्टूबर को मां की प्रतिमा पिंडी पर विराजमान किया जाएगा. साथ ही ”” विधवा”” नामक नाटक का मंचन किया जाएगा. 21 को दिन में विशेष पूजन एवं संध्या में महाआरती , रात्रि में ”” परशुराम”” नामक नाटक का मंचन एवं 22 अक्टूबर को पुरानी परंपरा के तहत पटाखे से आतिशबाजी के साथ प्रतिमा विसर्जन किया जाएगा. मंदिर की विशेषता 18 अप्रैल 2022 को भूमि पूजन के साथ मंदिर का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ था. एक करोड़ 55 लाख की लागत से नवनिर्मित मंदिर का कार्य पांच नवंबर 2023 संपन्न हुआ. भव्यता को चार चांद लगाने के लिए राजस्थान एवं कई दूसरे प्रदेशों से पत्थर मंगवाकर उस पर खूबसूरत नक्काशी बंगाल के कारीगर के द्वारा उतारा गया है. जो आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. नवनिर्मित मंदिर के लिए कोलकाता के वास्तु कला के जानकार एवं कुशल इंजीनियरों से मंदिर का नक्शा तैयार करवाया गया था. मंदिर के ऊपर तीन छोटे जबकि एक बड़े गुंबज का निर्माण किया गया है. मंदिर की कुल ऊंचाई करीब 80 फीट होगी. मंदिर में एक मुख्य द्वार गर्भ गृह को खूबसूरत बनाने के लिए नक्काशी के अलावा प्राकृतिक रोशनी मिलती रहे इसका भी ख्याल रखा गया है. इस मंदिर के निर्माण में ग्रामीण एवं समिति के सदस्यों में जबरदस्त उत्साह देखा गया.

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