गोगरी. अनुमंडल क्षेत्र सहित जिले में मोटे अनाज की खेती कर अन्नदाता किसान अपना भविष्य आर्थिक रुप से संवार सकते हैं. इसके लिए कृषि विभाग एवं केवीके के वैज्ञानिक खरीफ महाअभियान के माध्यम से प्रखंड के किसानों को जागरुक कर रहे हैं. मालूम हो कि गोगरी अनुमंडल के इलाके की भूमि में मोटे अनाज की खेती के लिए किसान पूर्व में भी सीधे मानसून की पानी पर ही निर्भर रहते थे. कृषि वैज्ञानिक डॉ विपुल कुमार मंडल ने महा अभियान के क्रम में कहा कि कम लागत में मोटे अनाज की खेती कर बेहतर उत्पादन प्राप्त कर किसान अपनी आमदनी बढ़ा सकते है. इन फसलों की बुआई से लेकर पकने तक अधिक सिंचाई की जरूरत अन्य फसलों के अनुपात कम होती है. इसके कारण मोटे फसल की खेती ग्लोबल वार्मिंग से लड़ाई में मददगार साबित हो रहे हैं. इस इलाके की भूमि में मोटे अनाज की खेती सीधे मानसून की पानी पर ही निर्भर है. कई बार मानसून समय से आती है तो कई बार देर से पहुंचती है. कई बार कई क्षेत्र सूखे की स्थिति बन आती है.
ज्वार व बाजरा की खेती को मिल रहा है बढ़ावा
ज्वार-बाजरा की खेती के लिए कृषि विभाग द्वारा बढ़ावा भी दिया जा रहा है. वहीं इसकी खेती कर किसान अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार ला सकते हैं. कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि किसान मोटा अनाज ज्वार, बाजरा, कोदो, मडुआ आदि की खेती कर अपनी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ रख सकते हैं. यह अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष (श्रीअन्न) के तहत किसानों को जानकारी देते हुए कहा कि मोटा अनाज का क्रेज विश्व स्तर बढ़ने लगा है. इसके के कारण विश्व स्तर पर इसकी खेती करने को लेकर व्यापक रूप से प्रचार प्रसार किया जा रहा है. निश्चित रूप से मोटे अनाजों की खेती कर उत्पादन करना किसानों के हित में उत्पादन व आमदनी की दृष्टिकोण से बेहतर साबित होंगे. उन्होंने बताया कि इस तरह की खेती में लागत के साथ खर्च भी कम होता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

