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न निबंधन, न प्रमाण पत्र, सड़क पर बगैर सुरक्षा मानकों की दौड़ रहीं एंबुलेंस

सड़कों पर दौड़ रहीं 25 से अधिक एंबुलेंस, इनमें मात्र 10 से 15 निबंधित

– डीटीओ कार्यालय व जिला स्वास्थ्य विभाग के पास नहीं है प्राइवेट एंबुलेंस का कोई डाटा

– सदर अस्पताल से लेकर पीएचसी,सीएचसी के समीप बे-रोकटोक खड़ी रहती है निजी एंबुलेंस – जिले में चल रहा है फर्जी एंबुलेंस का गोरखधंधा, सुविधा व सुरक्षा मानकों का नहीं हो रहा पालनखगड़िया. जिले के अधिकांश प्राइवेट एंबुलेंस के पास निबंधन और प्रमाण पत्र नहीं है. सड़क पर बगैर सुरक्षा मानकों का एंबुलेंस दौड़ रही है. हैरत की बात, तो यह है प्राइवेट एंबुलेंस की डाटा ना तो जिला परिवहन विभाग के पास है ना तो जिला स्वास्थ्य विभाग के पास है. जिसके कारण फर्जी एंबुलेंस का गोरखधंधा खूब फल फूल रहा है. सदर अस्पताल से लेकर पीएचसी,सीएचसी के समीप बे-रोकटोक निजी एंबुलेंस खड़ी रहती है. इन एंबुलेंस के पास ना तो आवश्यक चिकित्सा उपकरण, प्रमाणित ईएमटी व पैरामेडिक्स, उचित पंजीकरण, लाइसेंस, स्ट्रेचर, डिफिब्रिलेटर, ईसीजी मॉनिटर, सक्शन यूनिट, सर्वाइकल कॉलर, और व्हीलचेयर जैसे उपकरण नहीं रहता है. एंबुलेंस वाहन का रंग चमकीला सफेद नहीं होता है और ना ही एंबुलेंस शब्द उल्टा लिखा नहीं होता है.

बिना लाइफ सपोर्ट उपकरण व सुरक्षा मानकों के दौड़ रही एंबुलेंस

परिवहन, यातायात और स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही के कारण शहर में निजी एंबुलेंस का गोरखधंधा फल-फूल रहा है. इस गोखर धंधे में जिला मुख्यालय से लेकर प्रखंड मुख्यालय तक दो दर्जन से अधिक एंबुलेंस लगी है, जो न तो एंबुलेंस के तौर पर परिवहन विभाग में निबंधित हैं और न उनके पास स्वास्थ्य विभाग का कोई प्रमाण पत्र है. बावजूद नीली बत्ती लगा मॉडिफाई एंबुलेंस हूटर बजाती सड़कों पर दौड़ रही है. हद तो यह है कि बिना लाइफ सपोर्ट उपकरण और सुरक्षा मानकों वाले इन एंबुलेंस पर न तो मरीज सुरक्षित हैं और न ही उनके परिजन, ये खुलेआम सरकार को राजस्व का और मरीज को आर्थिक चूना लगा रहे हैं.

रुपये की लालच में मरीज को सरकारी अस्पताल में नहीं पहुंचाकर, ले जाते निजी अस्पताल

जिले में एंबुलेंस का धंधा तेजी से फल-फूल रहा है. इसके पीछे निजी एंबुलेंस चालक व मालिक का निजी अस्पतालों में मरीजों को पहुंचा कर मोटी रकम कमाना एक मात्र उद्देश्य है. निजी एंबुलेंस चालक मरीज को सरकारी अस्पताल के बदले बेगूसराय, भागलपुर, पटना के निजी अस्पतालों में पहुंचा कर वहां से मोटी रकम वसूल करते हैं. चालक मरीज और उसके तीमारदारों को इतना डरा देते हैं कि वे जहां बोलते हैं, उसी निजी अस्पताल में मरीज जाने को तैयार हो जाते हैं. इस गोरखधंधे में मोटी कमाई देखकर लोग विभिन्न प्रकार के वाहनों को मॉडिफाइ कर बिना परिवहन विभाग में एंबुलेंस के लिए निबंधित कराये और स्वास्थ्य विभाग से प्रमाण पत्र लिए मानकों के ताख पर रख कर इस खेल में शामिल हो रहे हैं.

सड़कों पर दौड़ रहीं 25 से अधिक एंबुलेंस, इनमें मात्र 10 से 15 निबंधित

प्राइवेट अस्पताल संचालक की माने तो जिले में दो दर्जन से अधिक प्राइवेट एंबुलेंस सड़क पर दौड़ रही है. लेकिन, इसमें 10 से 15 एंबुलेंस की निबंधित है. बताया जाता है कि एंबुलेंस मरीजों को खासकर उपकरण व दवा की व्यवस्था नहीं रहता है. सिर्फ सायरन व एंबुलेंस लिखा रहता है. बताया कि एंबुलेंस के चालक भी अनट्रेंड रहते हैं. चालक के पास अनुभव भी नहीं रहता है. ना ही एंबुलेंस में ईएमटी कर्मी रहते हैं. अस्पताल ले जाने के व्यक्त मरीज की स्थिति बिगड़ती है तो भगवान भरोसे ही चालक ले जाते हैं. बताया कि सदर अस्पताल के आस-पास एंबुलेंस खड़ी रहती है. हद तो यह है कि टाटा विक्टा, सुमो, ओमनी, बोलेरो को मॉडिफाइ कर एंबुलेंस बना सड़कों पर दौड़ाया जा रहा है.

ये हैं एंबुलेंस के नियम जिनकी नहीं होती जांच

एंबुलेंस चालक के साथ एक कंपाउंडर जरूरी.

एबुलेंस का रजिस्ट्रेशन परिवहन विभाग देता है, लेकिन जिला स्वास्थ्य अधिकारी का स्वीकृति पत्र अनिवार्य.

एंबुलेंस में प्राथमिक उपचार की सामग्री, सीधे खुलने वाला स्ट्रेचर होना चाहिए.

एंबुलेस में दो मरीजों को लाने के लिए पर्याप्त व्यवस्थाएंबुलेंस में जीपीएस भी जरूरी है.

इसलिए फल-फूल रहा एंबुलेंस का धंधा

एंबुलेंस चालक रास्ते में परिजन को बहला-फुसलाकर निजी अस्पतालों में भेज देते हैं. संचालकों को भागलपुर,बेगूसराय व पटना के निजी अस्पतालों से कमीशन मिलता है. ये नियमी के खिलाफ कई बार यात्री सवारियों को भी बैठाकर लाते व ले जाते हैं.

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एंबुलेंस में आवश्यक उपकरण

प्राथमिक चिकित्सा के लिए पट्टियां, गॉज़, सिरिंज और विभिन्न प्रकार की दवाएं. जीवन समर्थन उपकरण डिफिब्रिलेटर, ईसीजी मॉनिटर और सक्शन यूनिट. अन्य उपकरण स्ट्रेचर, सर्वाइकल कॉलर, व्हीलचेयर और वेंटिलेटर.

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एंबुलेंस कैसी होनी चाहिए

चालकों के पास भी आपातकालीन वाहन चलाने के लिए विशेष प्रशिक्षण होना चाहिए. एंबुलेंस का बाहरी रंग चमकीला सफेद होना चाहिए. बाहरी हिस्से पर एक नीला स्टार ऑफ लाइफ प्रतीक होना चाहिए. वाहन में सभी चिकित्सा उपकरणों को रखने के लिए पर्याप्त जगह होनी चाहिए. योग्य कर्मचारी में प्रमाणित ईएमटी व पैरामेडिक्स होना चाहिए.

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कहते हैं सिविल सर्जन

सिविल सर्जन डॉ. नरेन्द्र कुमार ने बताया कि सदर अस्पताल में निजी एंबुलेंस लगाने पर पूरी तरह प्रतिबंध है. अस्पताल के आसपास भी निजी एंबुलेंस को नहीं लगाया जाना है. फर्जी एंबुलेंस की जांच परिवहन विभाग द्वारा की जानी है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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