बेलदौर : अगर जुनून और जज्बा हो तो कोई भी लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है. इसकी मिसाल है अकहा गांव के दिलीप कुमार. अकहा गांव निवासी दिलीप 90 प्रतिशत से अधिक नि:शक्त रहने के बावजूद भी अपनी नि:शक्तता को बोझ नहीं बनने दिया. दिलीप ने समाज के बच्चों को सशक्त करने में अपनी बची जिंदगी को लगा दिया है. वह खुद की परवाह किए बगैर सुदूर ईलाके माली पंचायत के अकहा गांव मे 23 वर्षों से बच्चों को शिक्षा का दान देकर बच्चों को शिक्षित करने में लगे हुए हैं.
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नि:शक्त दिलीप समाज के बच्चों को कर रहे सशक्त
बेलदौर : अगर जुनून और जज्बा हो तो कोई भी लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है. इसकी मिसाल है अकहा गांव के दिलीप कुमार. अकहा गांव निवासी दिलीप 90 प्रतिशत से अधिक नि:शक्त रहने के बावजूद भी अपनी नि:शक्तता को बोझ नहीं बनने दिया. दिलीप ने समाज के बच्चों को सशक्त करने में अपनी […]
दिलीप समाज के 30 महादलित बच्चों को पहली से आठवीं तक की मुफ्त में शिक्षा देते हैं. दिलीप से शिक्षा प्राप्त करने वाले कई छात्र इंजीनियर शिक्षक समेत कई सरकारी कर्मी बन चुके हैं. इनमें ऋतुराज एवं अनंत कुमार इंजीनियर है. जबकि प्रीतम कुमार शिक्षक हैं. इसी तरह मिथिलेश कुमार किसान सलाहकार जबकि प्रदीप सदा, विजय सादा, पंकज रजक टोला सेवक के पद पर कार्यरत है.
दिलीप को शिक्षा का मसीहा कहते हैं ग्रामीण
ग्रामीणों ने बताया कि दिलीप की जिंदगी दुखों से भरी रही. दिलीप ने संघर्ष कर अपने जीवन को एक मोड़ दिया है. इधर दिलीप ने बताया कि 1992 में मैट्रिक परीक्षा दी. रिजल्ट निकलने से पूर्व ही उन्हें पैर में पैरालिसिस मार दिया. धीरे धीरे कमर से नीचे का भाग काम करना बंद कर दिया. रिजल्ट निकला और वह प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुए.
1994 में उनके पिता राजेंद्र सिंह की बीमारी से मौत हो गई. वर्ष 1998 में उनकी शादी भी हुई लेकिन नि: शक्तता को देख पत्नी भी साथ छोड़ कर चली गई. तब भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. बिस्तर पर सदा सोये रहने वाले दिलीप ने अपनी शिक्षा को ही अपना आधार बनाया.
और वो गरीब असहायक बच्चों को शिक्षा प्रदान करने लगे. उन्होंने बताया कि बीते 23 वर्षों से वे बच्चों के बीच शिक्षा का दीप जला रहे हैं. इधर गिरिश कुमार रंजन ने बताया कि ज्ञान गरीबी अमीरी ,जात पात के भेद नही समझती. इसे शारीरिक रूप से नि:शक्त दिलीप ने साकार कर दिखाया. जो शिक्षा विदों के लिऐ भी प्रेरणास्रोत बन गया है.
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