कटिहार: शहर में चलने वाले रिक्शा चालकों को दो वक्त की रोटी जुटाने को लेकर जद्दोजहद कर रहे हैं. यह हाल तीन वर्ष पूर्व रिक्शा चालकों की ऐसी नहीं थी. लेकिन आधुनिक परिवेश बदलने के साथ ही इनकी दुनिया भी बदल कर रख दी. हर कोई कभी न कभी रिक्शा की सवारी जरूर किये होंगे. इशारा करते ही रिक्शा का आपके पास आ जाना. आप का बोझ उठाते हुए आपको आपके गंतव्य स्थान तक पहुंचाने पर मजदूरी के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाना, यह आपको बखूबी याद होगा. रिक्शा की सफर और उनकी पोपो की आवाज धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है.
शहर में कान को झनझना देने वाले हॉर्न की आवाज वाले टोटो उनकी जगह ले रही है. लेकिन अभी भी शहर में कई ऐसे रिक्शा चालक हैं, जो कोई 20 वर्षों से तो कोई 10 वर्षों से भी रिक्शा खींच रहा है. हालांकि अब आपको कोई चमचमाती रिक्शा बाजार में देखने को नहीं मिलेगी. क्योंकि रिक्शा की जगह अब ई-रिक्शा ने अपनी जगह बना ली है. लेकिन शहर में अभी भी कई ऐसे रिक्शा चालक है जो कई वर्षों से रिक्शा खीचकर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं. लेकिन अब ऐसे रिक्शा चालकों का दो वक्त की रोटी भी जुटा पाना मुश्किल हो गया है. सड़कों के किनारे रिक्शा चालक इसी आस में अपने रिक्शा लगाए बैठे रहते हैं कि कोई इशारा करके उन्हें अपने पास बुला ले और कुछ मजदूरी निकल जाये, ताकि परिवार वालों के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ हो सकें. लेकिन ऐसा हो नहीं रहा.
Also Read: COVID-19 Bihar : पटना के इन 14 प्राइवेट अस्पतालों में आइसोलेशन वार्ड तैयार, कोरोना मरीजों के इलाज की राशि को लेकर डीएम ने दिए निर्देश
रिक्शा चालक बबलू प्रसाद साह, गणेरी साह, श्रवण, हरदेव प्रसाद बताते हैं कि रिक्शा चालकों की हालत ऐसी हो गई है कि पूरे दिन 100 से सवा सौ की मजदूरी कमा पाते हैं. जबकि यह हाल पहले नहीं था. जब बाजार में टोटो नहीं उतरे थे तो हर रिक्शा चालक कम से कम 300 की मजदूरी तो जरूर कमा लेते थे. पूरे परिवार का भरण पोषण बड़े ही अच्छे से हो जाता था. टोटो ने तो हमारी जान ही निकाल दी. लॉकडाउन से पहले भी दो वक्त की रोटी का जुगाड़ हो जाता था. लेकिन जब से करोना काल में लॉकडाउन लगा है. बस शहर की चक्कर ही काटते रहते हैं. सवारी न के बराबर मिलती है. पूरे दिन परिश्रम के बाद हाथ में 100 रुपैया आता है. ऐसे में बच्चों की पढ़ाई तो दूर की बात परिवार का भरण पोषण भी कैसे किया जाये.
शहर में ई रिक्शा की बात करें तो शहर में तकरीबन 300 की संख्या में ई-रिक्शा का परिचालन हो रहा है. ई रिक्शा चालकों में कई चालक तो ऐसे हैं. जो पहले रिक्शा चलाते थे. लेकिन आधुनिकता के दौर में उन्होंने अपनी रोजगार के माध्यम को बदलते हुए ई रिक्शा को अपना जीवन यापन का स्रोत बना लिया. कई युवा इस रोजगार से जुड़ चुके है. लोग अब रिक्शा की सवारी न करके ई-रिक्शा की सवारी करना ही बेहतर मानते हैं. कम पैसे में ज्यादा समय न लगते हुए अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचने का एक अच्छा माध्यम ई-रिक्शा बन चुका है. जिसे लोग ज्यादा पसंद कर रहे हैं. ऐसे में रिक्शा की सवारी पर लोगों का ज्यादा ध्यान नहीं है
Posted By : Thakur Shaktilochan Shandilya