– आर्द्र भूमि संरक्षण संगोष्ठी में पर्यावरणविद ने व्यक्त किया विचार कटिहार शहर के मिरचाईबाड़ी स्थित जनलक्ष्य कार्यालय में शनिवार को पर्यावरणविद एवं संगठन के सदस्यों के बीच आर्द्र भूमि संरक्षण पर एक दिवसीय संगोष्ठी आयोजित की गयी. संगोष्ठी ने पर्यावरणविदों ने बताया कि कटिहार के गोगाबिल झील को भारत सरकार के पर्यावरण विभाग द्वारा रामसर स्थलों की सूची में शामिल किया जाना गौरव का विषय है. इससे उत्पन्न नये संभावनाओं पर विचार विमर्श किया गया. वक्ताओं ने कहा कि गोगाबिल झील को बहुत पहले ही रामसर स्थलों की सूची में शामिल किया जाना चाहिए था. रामसर स्थलों की सूची में आने के लिए जो अहर्ता होती है. वह गोगाबिल झील पूरा करती है. वक्ताओं ने यह भी कहा कि वर्ष 1971 में रामसर, ईरान के अधिवेशन में सभी प्रतिभागी देशों ने आर्द्रभूमि के महत्व को समझकर स्थलों की पहचान व संरक्षण के लिए प्रशासनिक रूपरेखा तैयार की थी. आर्द्रभूमि जैव-विविधता के केन्द्र हैं. जीवन एवं जीव संतुलन के लिए महत्त्वपूर्ण हैं. आर्द्रभूमि जलवायु, भूजलस्तर कार्बन एवं नाइट्रोजन चक्र, दृष्टि चक्र का नियंत्रण करते है. जलीय जीव जनाओं के पोषण का मुख्य श्रोत है. अमदाबाद, कटिहार स्थित गोगाबील झील को विश्व के महत्वपूर्ण आर्द्रभूमि की सूची में 94 वां रामसर स्थल के रूप में सूचिबद्ध किया जाना सरकार का सराहनीय कदम है. पर्यावरण विद, पक्षीविद, शोधकर्ता व पर्यटकों के हित एवं स्थानीय समुदाय के उत्थान के लिए रामसर स्थल गोगानील को व्यापक जैविक उत्थान एवं पक्षी विहार के रूप में विकसित किए जाने की अपार सम्भावनाएं है. गोगाबिल परिसर में किए गए कोई भी विकास कार्य को पर्यावरण एवं पक्षियों के हित तलाश कर ही अनुमति हो और इसके लिए पर्यावरणविद का मार्गदर्शन अपेक्षित है. जनलक्ष्य द्वारा पूर्व में भी विभिन्न मंचों पर इस विषय को उठाया गया है. संबंधित विभागों एवं कार्यालयों को गोगाबिल विकास परियोजना का स्वरूप पर आलेख समर्पित किया गया है. पर्यावरणविद डॉ टीएन तारक, डॉ राज अमन सिंह, डॉ पीसी दास, गोगाबिल सामुदायिक रिजर्व के अजीत कुमार प्रज्ञ, गोगाबिल संरक्षण आरक्ष के हरेराम पाण्डेय, रियासुद्दीन, धर्मेंद्र कुमार, जनलक्ष्य के सदस्य एवं कार्यकर्ता शामिल होकर अपने-अपने विचार प्रस्तुत किया.
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