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कहां से दें रोज-रोज फसल में पानी

मुसीबत . आग उगलती धूप व पछुआ हवा किसानों पर बरपा रही कहर फसल को बचाने में बढ़ रही लागत राज किशोर कटिहार : आग उगलती धूप फसलों को व्यापक नुकसान पहुंचा रही है. फसलें सूख रही हैं. किसान फसल को बरबाद होते देख अपना सिर पीट रहे हैं. अप्रैल माह में इस तरह की […]

मुसीबत . आग उगलती धूप व पछुआ हवा किसानों पर बरपा रही कहर
फसल को बचाने में बढ़ रही लागत
राज किशोर
कटिहार : आग उगलती धूप फसलों को व्यापक नुकसान पहुंचा रही है. फसलें सूख रही हैं. किसान फसल को बरबाद होते देख अपना सिर पीट रहे हैं. अप्रैल माह में इस तरह की आग उगलती धूप किसानों ने कभी देखी नहीं थी. धूप से बचाने के लिए फसलों को पानी चाहिए. नदी-तालाब सूख जाने की वजह से पटवन भी किसान करने से वंचित हो रहे हैं. जहां पटवन का साधन है.
किसान हर दो-तीन दिन में पटवन कर रहे हैं. ऐसे में फसल की लागत खर्च बढ़ने से किसान परेशान हो रहे हैं. कई किसानों ने तो पैसे के अभाव में फसलों को धूप में सूखने के लिए पूरी तरह से छोड़ दिया है. चूंकि उनके पास पटवन के लिए पूंजी नहीं है. ऐसे में किसान आसमान की तरफ नजरें गड़ाये बैठे हैं कि कब इंद्र देवता मेहरबान होंगे और बारिश होगी. दरअसल कटिहार जिले में केला, मखाना, मछली, मक्का की खेती बड़े पैमाने पर होती है. इन फसलों को उपजाने में पानी की जरूरत पड़ती है.
पिछले वर्ष कम पानी होने की वजह से पहले से ही तालाब, नदी में पानी कम था. ऊपर से सूर्य देवता के उग्र रूप के कारण तालाब, नदी सूख गये हैं. जहां सालों भर पानी रहता था, वहां सूखा पड़ गया है. नहर में पानी नहीं छोड़ा गया है. इसके कारण किसानों के सामने विकट समस्या उत्पन्न हो गयी है कि अपनी फसलों को कैसे धूप के प्रकोप से बचायें. यही स्थिति सब्जी की खेती करने वाले किसानों की भी है. प्रभात खबर ने किसानों की हो रही परेशानी की पड़ताल की और जानने का प्रयास किया है कि यदि किसान फसलों को नहीं बचा पाते हैं, तो उन्हेंकितना नुकसान होगा तथा इसका क्या असर स्थानीय बाजार पर पड़ेगा.
मखाना की खेती हुई प्रभावित
जिले में मखाना की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. मखाना की खेती नकदी फसल के रूप में जानी जाती है. मखाना की खेती पानी के बीच ही होती है. खेत में कम से कम दो से तीन फीट पानी हमेशा रहना चाहिए. इसके अलावा गहरे तलाब, नदी, धार में भी इसकी खेती की जाती है.
मखाना की खेती कोढ़ा, फलका, डंडखोरा, कदवा, आजमनगर, प्राणपुर आदि में बड़े पैमाने पर होती है. कड़ी धूप के कारण कई जगहों पर पर मखाना की खेती पूरी तरह से बरबाद हो गयी है. किसान मखाना की खेती में पानी ही उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं. खासकर छोटे तबके के किसान त्राहिमाम कर रहे हैं. बड़े किसान फसल को बचाने की जद्दोजहद कर रहे हैं, लेकिन यह स्थिति ज्यादा दिनों तक झेलने की स्थिति में किसान नहीं है.
कदवा के मखाना उत्पादक किसान हरेंद्र साह कहते हैं कि अप्रैल माह में ऐसी धूप हमने नहीं देखी थी. धूप से मखाना की फसल को बचाना मुश्किल हो रहा है. रोज उसमें पटवन कर पानी डालना पड़ रहा है. इससे लागत खर्च बढ़ता जा रहा है. बारिश नहीं हुई तो मखाना की खेती चौपट हो जायेगी. इससे करोड़ों का नुकसान जिले के किसानों को होगा. तालाब, नदी, धार आदि के सूखने की वजह से मछली पालन की स्थिति कटिहार में काफी खराब हालत में पहुंच चुकी है. मछली उत्पादन करने वाले लोग मछली को बचाने के लिए परेशान है. पानी कम होने की वजह से मछली पालन करने वाले लोग परेशान है. लोग गंगा नदी पर पूरी तरह से निर्भर होकर रहे गये हैं. लोकल मछली का रेट आसमान छू रहा है. मार्केट में लोकल मछली का बड़ा बाजार है. लोग लोकल मछली ही खाना पसंद करते हैं.
उत्पादन का असर पड़ेगा मार्केट पर
जिस तरह मौसम ने करवट लिया है इससे खासकर किसान परेशान है. फसल धूप से बरबाद हो रहा है. फसल बचाने में लागत बढ़ रहा है. किसान कर्ज तले डूबे जा रहे हैं. इसका असर आने वाले दिनों में मार्केट पर साफ दिखने लगेगा. महंगाई बढ़ेगी और लोगों के घर का बजट बिगड़ेगा. हालांकि अभी ही कड़ी धूप का असर सब्जी मार्केट पर पड़ना शुरू हो गया है. यही हाल रहा तो स्थिति और बिगड़ेगी.

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