कटिहार : हर पांच वर्ष में आम चुनाव होते है. आम चुनाव के जरिए देश में सरकारें बनती है. पर आम लोगों से जुड़ी कई ऐसे बुनियादी जरूरतें है, अब तक पूरा नहीं हुई है. इस बार भी लोकसभा चुनाव का माहौल बनने लगा है. कटिहार संसदीय क्षेत्र में भी 18 अप्रैल को मतदान होना है. ऐसे में बुनियादी जरूरतों से जुड़े सवाल भी उठने लगे है.
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चुनावी एजेंडे में आखिर क्यों नहीं होता महिलाओं व बच्चों के पोषण का मुद्दा
कटिहार : हर पांच वर्ष में आम चुनाव होते है. आम चुनाव के जरिए देश में सरकारें बनती है. पर आम लोगों से जुड़ी कई ऐसे बुनियादी जरूरतें है, अब तक पूरा नहीं हुई है. इस बार भी लोकसभा चुनाव का माहौल बनने लगा है. कटिहार संसदीय क्षेत्र में भी 18 अप्रैल को मतदान होना […]
मसलन, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, पोषण, सड़क पुल-पुलिया जैसी जन सरोकार के मुद्दे व बुनियादी जरूरतों को लेकर लोग गंभीर है. प्रभात खबर आसन्न लोकसभा चुनाव के मद्देनजर आम जनमानस से जुड़ी समस्याएं एवं उनकी जरूरतों के सवाल को सामने लाने की मुहिम में जुटी हुयी है.
इसी कड़ी में जिले में पोषण की स्थिति से पाठकों एवं विभिन्न राजनीतिक दल के नेताओं को रूबरू कराते हुए उसके समाधान की अपेक्षा भी रखते है. उल्लेखनीय है कि पोषण के मामले में कटिहार की स्थिति अत्यंत खराब है. नवजात शिशु, बच्चे, किशोरी व महिलाओं में न केवल पोषण के प्रति समझ कम है. बल्कि कुपोषण के शिकार भी है.
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे चार की रिपोर्ट के अनुसार कटिहार जिले के 6-23 महीने की आयुसमूह के हर 10 में से 9 बच्चे को पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता है. जिले में बच्चों के पोषण एवं स्वास्थ्य की स्थिति राष्ट्रीय मानक की तुलना में ठीक नहीं है. एनएफएचएस-चार के अनुसार जिले के 6 से 23 महीने के बच्चों में से मात्र 7.9 प्रतिशत को ही पर्याप्त पोषण प्राप्त हो रहा है.
यह सर्वविदित है कि प्रारंभिक वर्षों में कुपोषण का सीधा संबंध मातृ स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है. प्रसव पूर्व माता के देखभाल और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को पौष्टिक आहार नहीं मिलने के कारण जिले में बच्चों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. जिले में सिर्फ 33 प्रतिशत महिलाओं को ही प्रसव पूर्व देखभाल की सेवा उपलब्ध हो पाती है. साथ ही एक तिहाई बच्चों का जन्म घर पर ही होता है.
स्वास्थ सेवाओं के अलावा अधिकांश लोगों के पौष्टिकता से संबंधित ज्ञान का अभाव है. इस सर्वे के अनुसार कटिहार जिले में तीन वर्ष से कम उम्र के लगभग दो-तिहाई बच्चों का जन्म के पहले घंटे में परंपरागत प्रथाओं के कारण स्तनपान नहीं कराया जाता है.
दरअसल चुनाव में ऐसे बुनियादी जरूरत बड़ा मुद्दा नहीं बन पाता है. आरोप-प्रत्यारोप में जन सरोकार का मुद्दा गुम हो जाता है. जबकि पोषण के क्षेत्र में जितनी बजट का प्रावधान होना चाहिए. उतना बजट नहीं मिलता है.
दो तिहाई बच्चे में है खून की कमी
एनएफएचएस-चार के अनुसार कटिहार जिले में 6-59 महीने की उम्र में लगभग दो तिहाई बच्चे यानी 61.3 प्रतिशत बच्चे एनीमिया से पीड़ित हैं. जबकि 15-49 आयु वर्ग समूह की गर्भवती महिलाओं में 57.8 प्रतिशत एनीमिया से ग्रसित है.
यह इस बात की ओर इशारा करता है की पीढ़ी दर पीढ़ी कुपोषण चक्र बना हुआ है. सर्वे रिपोर्ट बताते हैं कि बिहार में केवल 6.5 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं ने गर्भावस्था के दौरान सौ दिनों या उससे अधिक दिनों तक आयरन और फोलिक एसिड की दवा का सेवन किया.
इस सर्वे रिपोर्ट के अनुसार बच्चों के बीच कुपोषण की जानकारी का आधार उम्र के अनुसार कम ऊंचाई, ऊंचाई के अनुसार कम वजन, उम्र के अनुसार कम वजन के आधार पर बच्चों के कुपोषण का आकलन किया गया है. पिछले सर्वे के अनुसार 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में सकारात्मक परिवर्तन आया है.
फिर भी राज्य में 45.1 प्रतिशत बच्चे कम वजन वाले है. इस सर्वे के ताजा रिपोर्ट के अनुसार बाल स्वास्थ्य और पोषण में बिहार राज्य काफी सकरात्मक काम किया है. इस रिपोर्ट के मुताबिक 60 प्रतिशत संस्थागत प्रसव हो रहा है. जबकि बच्चों के समग्र विकास के लिए बाल पोषण की स्थिति अपेक्षाकृत ठीक नहीं है.
पोषण की कमी का यह है मुख्य कारण
बाल कुपोषण बच्चों के जीवन में बहुत बड़ा क्षति है, जो आगे चलकर किशोरावस्था एवं वयस्क अवस्था पर प्रभाव डालता है. आंगनवाड़ी केंद्रों से गर्भवती एवं शिशुवती महिलाओं को पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक आहार कम महिलाओं को ही मिल पाता है.
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