मोहनिया सदर.. प्रखंड मुख्यालय परिसर में अवस्थित बाल विकास परियोजना पदाधिकारी (सीडीपीओ) कार्यालय भवन 42 वर्ष की अवस्था में ही जर्जर प्राप्त हो चुका है. छत व लटक बिम के प्लास्टर का बड़ा हिस्सा टूट-टूट कर गिर रहा हैंख् फिर भी इस कार्यालय में कार्यरत सभी कर्मी अपनी जान जोखिम में डाल कर कार्य करने को विवश है. प्रखंड में संचालित 238 आंगनबाड़ी केंद्रों में कार्यरत सेविका व सहायिकाओं की प्रत्येक माह में एक दिन समीक्षा बैठक आयोजित की जाती है, जिसमें सभी सेविका व सहायिका दो पालियों में उक्त भवन के सभागार में उपस्थित होती हैं. उनको हमेशा इस बात का डर बना रहता है कि ऐसा न हो कि उनके सिर पर टूटकर प्लास्टर का एक बड़ा भाग गिरे और वह घायल हो जाये. कर्मचारी भी हमेशा अपने कार्यावधि में डर के साये में दिन बिताते हैं. उक्त कार्यालय भवन के सभी कमरे पूरी तरह जर्जर है ऐसा नहीं है कि संबंधित अधिकारी अपने विभागीय अधिकारी सहित अन्य वरीय अधिकारियों को इस समस्या से अवगत नहीं कराते हैं. आलम तो यह है कि वरीय अधिकारियों को इस मामले में पत्र लिखते-लिखते कलम की स्याही खत्म हो गयी लेकिन अधिकारियों ने एक नहीं सुनी. लेकिन हकीकत तो यह है कि शायद वरीय अधिकारियों को भी किसी अनहोनी का इंतजार है. # 1983 में बनाया गया था उक्त कार्यालय सन 1983 में बाल विकास परियोजना कार्यालय का निर्माण हो चुका था. यहां पहली बार 18 मई 1984 को मोहनिया के प्रथम सीडीपीओ के रूप में सत्येंद्र नाथ श्रीवास्तव ने योगदान किया था. वर्ष 1984 से 2001 के बीच बिहार प्रशासनिक सेवा के 13 अधिकारी सीडीपीओ के प्रभार में लंबे समय तक कार्यरत रह चुके है. 1984 से अब तक यहां 30 सीडीपीओ आये और गये, लेकिन उक्त भवन के रंग रोगन व मरम्मत को लेकर शायद बहुत कम लोगों ने ही ध्यान दिया. यदि समय-समय पर उक्त भवन की मरम्मत और रंगरोगन का कार्य सुचारू रूप से कराया जाता, तो इतनी कम उम्र में ही यह भवन अपनी पहचान खोने के कगार पर नहीं पहुंचता. वैसे तो प्रखंड में 243 आंगनबाड़ी केंद्र है, लेकिन उसमें 238 आंगनबाड़ी केंद्र संचालित हैं. इसमें कार्यरत महिला कर्मी प्रत्येक माह में एक दिन समीक्षा बैठक के लिए उक्त भवन के सभागार में उपस्थित होती हैं. # तेज हवा चलते ही लगने लगता है डर सीडीपीओ कार्यालय में कार्यरत कर्मी बताते हैं कि जैसे ही तेज हवा का झोंका, आंधी व तेज बारिश आती है डर लगने लगता है कहीं ऐसा न हो कहीं यह जर्जर भवन गिर न जाये और हम सभी असमय ही काल का निवाला बन जाये, लेकिन करें भी तो क्या नौकरी तो करना ही है. लेकिन हम लोगों के जीवन के बारे में सोचने वाला कोई नहीं है कि किस तरह हम लोग जान हथेली पर लेकर पूरा दिन इस जर्जर कार्यालय में बिताते हैं. छत की प्लास्टर का बड़ा भाग कब टूट कर सिर पर गिर जायेगा और अप्रिय घटना घटित हो जायेगी, यह समझ पाना भी काफी मुश्किल होता है. कार्य तो किया जाता है लेकिन डर के साये में. # बारिश में सिर व रेकड़ बचाना मुश्किल महिला व पुरुष कर्मी बताते हैं कि बारिश के दिनों में छत से इस कदर पानी टपकता है कि किसी तरफ जगह नहीं बचती है जहां पानी नहीं टपकता हो, समझ में नहीं आता है की कर्मी छत से टपक रहे पानी से खुद को बचाएं या फिर कार्यालय में रखे हुए कागजातों को किसी तरह पॉलीथिन लगाकर गुजारा किया जाता रहा है. बारिश के समय उक्त भवन के चारों तरफ जलजमाव हो जाता है, कब यह जर्जर भवन धराशायी हो जायेगा कह पाना काफी मुश्किल होता है. # बोलीं प्रभारी सीडीपीओ इस संबंध में पूछे जाने पर प्रभारी सीडीपीओ कुमारी रेखा ने कहा कि यह तो सच्चाई है कि भवन बिल्कुल जर्जर हो चुका है. छत के प्लास्टर का बड़ा-बड़ा हिस्सा टूट कर गिरते रहता है. भवन को लेकर पूर्व में भी कई बार वरीय अधिकारियों को लिखित दिया गया है, लेकिन कुछ नहीं किया जा रहा है. # जर्जर भवन में जान जोखिम में डालकर कार्य करते है कर्मी, तेज हवा चलते ही लगने लगता है डर # वरीय अधिकारियों को पत्र लिखते-लिखते सूख गयी स्याही, नहीं सुनते अधिकारी
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