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Jehanabad : पीएमसीएच रेफर होेने के बाद पांच घंटे तक सदर अस्पताल में तड़पता रहा हर्षित

पटना-गया राष्ट्रीय राजमार्ग 22 पर रविवार की सुबह उमता के पास दो बाइकों की टक्कर में गंभीर रूप से घायल इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र हर्षित राज की मौत ने सदर अस्पताल की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिये हैं.

जहानाबाद.

पटना-गया राष्ट्रीय राजमार्ग 22 पर रविवार की सुबह उमता के पास दो बाइकों की टक्कर में गंभीर रूप से घायल इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र हर्षित राज की मौत ने सदर अस्पताल की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिये हैं. हर्षित की जान कथित तौर पर इसलिए चली गयी क्योंकि पीएमसीएच रेफर किए जाने के बावजूद उसे समय पर उच्च चिकित्सा केंद्र नहीं पहुंचाया गया. वह करीब पांच घंटे तक सदर अस्पताल के बेड पर तड़पता रहा. दुर्घटना रविवार सुबह करीब 4:30 से 5 बजे के बीच हुई. गंभीर रूप से घायल हर्षित को करीब सात बजे सदर अस्पताल लाया गया. प्राथमिक उपचार के बाद उसकी हालत लगातार बिगड़ने लगी. डॉक्टरों ने सुबह 8:03 बजे उसे पीएमसीएच पटना रेफर कर दिया. उस समय उसकी सांस तेजी से चलने लगी थी, जिसे मेडिकल भाषा में ‘गैस पिंग’ कहा जाता है. चिकित्सकीय मानकों के अनुसार, हेड इंजरी के मामलों में तुरंत सीटी स्कैन और जरूरत पड़ने पर ब्रेन सर्जरी की आवश्यकता होती है, जो बड़े अस्पतालों में ही संभव है. इसके बावजूद रेफर होने के बाद भी हर्षित को तत्काल पटना नहीं भेजा गया. अस्पताल प्रशासन का कहना है कि घायल के साथ भेजने के लिए कोई परिजन मौजूद नहीं था और अस्पताल के पास ऐसा कोई स्टाफ नहीं है, जो मरीज के साथ रेफर अस्पताल जा सके. वहीं पुलिस का कहना है कि यह जिम्मेदारी अस्पताल प्रबंधन की है. इस आपसी जिम्मेदारी के टकराव में हर्षित की जान चली गयी. अपराह्न करीब एक बजे, जब उसके मामा निशांत कश्यप सदर अस्पताल पहुंचे, तब उसे पीएमसीएच के लिए रवाना किया गया. पटना पहुंचने पर डॉक्टरों ने हर्षित को मृत घोषित कर दिया. परिजनों का आरोप है कि यदि समय रहते हर्षित को पीएमसीएच पहुंचा दिया जाता, तो उसकी जान बच सकती थी. उन्होंने इसे अस्पताल प्रशासन की घोर लापरवाही बताया. यह मामला सरकार द्वारा प्रचारित ‘गोल्डन ऑवर’ की अवधारणा पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है, जिसमें दुर्घटना के बाद पहले एक घंटे को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. यह कोई पहला मामला नहीं है. सदर अस्पताल में इससे पहले भी ऐसे उदाहरण सामने आ चुके हैं, जहां परिजन के अभाव में गंभीर घायलों को रेफर अस्पताल नहीं भेजा गया और वे इलाज के अभाव में दम तोड़ते रहे. जरूरत है कि जिला प्रशासन स्थायी व्यवस्था बनाए, ताकि लावारिस या अकेले घायल मरीजों को समय पर उच्च चिकित्सा केंद्र पहुंचाया जा सके और भविष्य में किसी हर्षित की जान यूं न जाए.

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