-हिंदी पत्रकारिता दिवस पर जमुई में मीडिया की भूमिका पर विचार गोष्ठी आयोजित
जमुई. हिंदी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर नगर परिषद स्थित आनंद विहार कॉलोनी, सिरचंद नवादा में समाज के प्रति मीडिया की जवाबदेही और उत्तरदायित्व विषय पर एक विचार गोष्ठी आयोजित की गयी. कार्यक्रम की अध्यक्षता केकेएम कॉलेज के स्नातकोत्तर अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो डॉ गौरी शंकर पासवान ने की. अपने अध्यक्षीय संबोधन में प्रो. पासवान ने कहा कि मीडिया लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, जो समाज का दर्पण होता है. उन्होंने कहा, “जब यह दर्पण विकृत हो जाता है, तो समाज भ्रमित हो जाता है. लोकतंत्र के लिए स्वतंत्र, निष्पक्ष और जवाबदेह मीडिया उतना ही आवश्यक है, जितना कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका. उन्होंने कहा कि सच बोलो डंके की चोट पर बोलो निडर और निष्पक्ष पत्रकारिता का मूल मंत्र है, लेकिन आज के दौर में इसे निभाना कठिन और चुनौतीपूर्ण हो गया है. “पत्रकारिता का धर्म है ताकतवर से भी सच कहना और निर्भीकता से तथ्य प्रस्तुत करना.मीडिया के दृष्टिकोण से ही समाज का निर्माण होता है
प्रो.पासवान ने कहा कि मीडिया की दृष्टि से ही समाज का चित्र बनता है. यही वजह है कि पत्रकारिता की भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है. उन्होंने हिंदी पत्रकारिता दिवस की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए बताया कि 30 मई 1826 को पंडित युगल किशोर शुक्ल ने कोलकाता से ”उदंत मार्तंड” नामक हिंदी अखबार की शुरुआत की थी. यही दिन हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है. उन्होंने कहा कि यह दिन पत्रकारिता के मूल्यों, संघर्षों और सामाजिक प्रतिबद्धता को याद करने का अवसर देता है. जब मीडिया अपने उत्तरदायित्व से विमुख हो जाती है, तो लोकतंत्र की जड़ें हिल जाती हैं.आपातकाल से लेकर सीमाओं तक निभायी भूमिका
प्रो पासवान ने यह भी कहा कि मीडिया ने समय-समय पर देश और समाज के लिए अद्भुत कुर्बानियां दी हैं चाहे वह आपातकाल के दौरान सेंसरशिप के खिलाफ लड़ाई हो या सीमावर्ती क्षेत्रों में जान की बाज़ी लगाकर रिपोर्टिंग करना. उन्होंने कहा कि यह विरासत तभी सार्थक होगी, जब मीडिया निर्भीक, निष्पक्ष और जनपक्षधर बनेगा.सच्ची पत्रकारिता वही जो असुविधाजनक सच कहे
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए शिक्षक दिनेश मंडल ने कहा कि मीडिया को नीर-क्षीर विवेकी होना चाहिए. उन्होंने कहा कि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ होने के नाते मीडिया की जवाबदेही अत्यधिक है. सच्ची पत्रकारिता वही है, जो असुविधाजनक सच भी कह सके. ऐसी पत्रकारिता समाज की अंतरात्मा को झकझोर देती है. उन्होंने कहा कि समाज पत्रकारों से निष्पक्षता, ईमानदारी और जिम्मेदारी की अपेक्षा रखता है. जब कलम बंद हो जाती है, तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है